"का कहले ह मौसाजी पापा?" आकुल होके राज पूछले।
"उहे जवन बाकि लोग कहल ह। उनहू के हाथ खाली बा।" कहिके संदीप कुर्सी पे धम्म से बैठ गईले।
अब त उम्मिद के आख़री कीरण भी खतम हो गयील। राज के आँख भर गईल।
"बड़का पापा से कहल जाउं का ?" राज सकुचात कहले।
"अब इहे बाकि बा कि उनकी सामने हाथ फैलावल जाउँ। " राज के मम्मी सुशीला खिसिया के कहली "वइसे भी उनका लगे पैसा रहित त उ सयान लडकी घर मे बैठा के रखते। "
"अरे मम्मी ऊ बइठा के कहां रखले बाड़े। दीदी त नौकरी करतारी । " राज आपत्ति करत कहले।
"चुप रह तू। हमरा एतना समझ बा। लड़की के कमाई खातारे त वियाह काहे जल्दी करीहे। "
"तह लोग चुप रह त। आपन समस्या छोड़ के दूसरा के पंचायत फरियावतार लोग। " संदीप चिल्लाइले।
सब केहु चुप हो गईल।
प्रदीप और संदीप, सगा भाईं रहल लोग। पिताजी सरकारी नौकरी से रिटायर होके गाव मे जब बसले त वो समय तक दुनु जना बेरोज़गार रहे लोग पर पेंशन घर के खर्च खातिर पार्याप्त रहे और कवनों दिक्कत न रहे। वैसे त दुनु भाई पढ़े मे कॉफी तेज रहे लोग पर मनबढ़ूवि के चलतें इण्टर से जयादा ना पढ़ पावल लोग। स्वाभाव में बहुत ज्यादा अन्तर के वावजूद दुनु भाई मे एक दूसरा के प्रति हमेशा स्नेह और आदर रहल। प्रदीप जहा पद के मुताबिक धीर गंभीर और जिम्मेवार रहले वही संदीप लापरवाह ,बड़बोला, पर उ हमेशा प्रदीप के बड़ भाईं के सम्मान देस। कभी उनका कौनो बात के ना कटले। छोट भईला के वजह से माई के कुछ ज्यादा प्यार उनके हासील रहे।
जल्द ही प्रदीप के शादी हो गईल तथा संदीप के एक साल बाद। पर उनका माई के नैहर के भईला के वजह से संदीप के मेहरारू पर मॉइ के विषेश दुलार रहे । दुनू भाई सरकारी नौकरी के प्रयास मे रहे लोग। गाव से ही कम्पटीशन के तइयारी करे लोग और परीक्षा भि देउँ लोग । संदीप के शादी के एक साल बाद दुनू भाई के बाप बने के सौभग्य भि मिल गईल। पर किस्मत के धनि संदीप के बेटा भईल और साथै बिहार सरकार मे क्लर्क के नौकरी जबकि प्रदीप बेटि के बाप बनले। जहाँ प्रदीप ख़ुशी से फूले ना समात रहले, मन हि मन ओनकर माई बाबूजी मायुस रहे लोग प्रदीप के बेटि भईला से । छोटकी बहु पर त ओ लोग के और स्नेह बरसे लागल। माई बाबूजी के व्यवहार मे परिवर्तन प्रदीप और उनके मेहरारू दुनू जन के बुझाउ पर उ लोग एके कभि जाहिर न होखे दीहल। लेकिन प्रदीप के बड़ा ग्लानि होखे कि बड़ भाई घरे बइठल रहे और छोट भाई नौकरी पर रहे। उ हिम्मत न हारले और तइयारी मे लागल रहले पर एक साल बाद फिर मायूसी ही हासिल भईल। नौकरी त ना मिलल पर एगो और बेटी हो गईली। वहीँ दूसरी तरफ संदीप के दुसरा पुत्र रतन के प्राप्ति भईल। अब त उनका मेहरारू के ओनकर माई बाबूजी सर आख पर बइठा लिहल लोग जबकि बड़की पतोह खातिर बचल खुचल प्यार खतम हो गयील। बात बात पर ताना और झिड़की आम बात हो गईल। आग में घी डाले के काम करस सुशीला। एक तरफ जहा उनकर बच्चा कुल के ज़मीन पर पैर ना रखल देहल जाउं , प्रदीप की बेटी कुल रोव सन तबो सास ससूर हाथ ना लगावे। जल्दी ही प्रदीप और उनका मेहरारू उर्मिला के इ बुझा गईल कि अब घर मे गुजर मुश्क़िल बा। मजबूरी में गाव से ५० km दूर क़स्बा के एगो प्राइबेट स्कूल मे उ मास्टर के नौकरी १००० में पकड़ लेहले। जाये के तैयार भईले त माई बाबूजी उनकर परीवार भी साथै लगा दिहल लोग। पर उनका इ बुरा ना लागल। एक तरफ जहा घर के लोग उनका लड़की के वजह से उनकी हीन समझे, उनका अपनाबेटी कुल पर गर्व रहे। उनका आँख के पुतरी रहली सन उ।
प्रदीप के गाव छोड़ते हि सँदीप के मल्काईन सास ससुर के मालिक बन गइलीं। रातदिन दूध के कुल्ला करस जबकि प्रदीप और उनकर परीवार गरीबी के साया मे रहे लागल पर स्वभाव के अनुरुप उ ना कभी बाप के पेंशन पे हक जतवले ना मंगले। समय बीतला के साथै जहा सँदीप के सफलता ज़ारी रहे वाहि प्रदीप के स्थिति मे कवनो खास फर्क ना आयिल हा बेटा के चाह मे ऍगो और लड़कि हो गयील और फिर उ पुत्र के उम्मींद छोड़ देहले।
हर साल प्रदीप के परिवार होली दीवाली मे घरे आवे त सुशिला और सँदीप अापन बड़हन हैसियत के दिखावा करे लोग। एक तरफ जहा उनकर दुनू लइका महन्गा महंगा कपङा पहिनसन वहि प्रदीप के बेटी साधारण। गाँव में पढ़ला के झेप के मिटावे खातिर सुशीला और सँदीप, पढ़ाई में भी अपना लड़िका के महन्गा स्कूल और कोचिंग के बढ़ चढ़ के बखान करे लोग। प्रदीप और उनकर मलिकाइन हमेशा के तरह खामोश रहे लोग काहे से कि वो लोग के लाख़ बखान के बाद भी पढ़ाइ मे प्रदीप के बेटी ही आगे लाग सन। हा ईगो बात जरूर रहे कि दुनू जना के बच्चन मे बहुत प्रेम रहे। खासकर संदीप के छोट लड़िका राज के तीनो बहिन कुल से बहुत लगाव रहे। बच्चन के युवा होत होत बाबा इयाँ स्वर्ग सिधार गईल लोग। दुनू भाई खूब धूमधाम से क्रियाकर्म कईल लोग और सँदीप के परिवार भी रहे खातिर शहर आ गईल। फिर दुनू जाना के परिवार होली दीवाली मे गांवे आवे पर परिवार एके मे रहे। पूरा गांव में दुनू भाई के प्रेम के मिसाल दिहल जाउं। हैसियत में बड़ा और बच्चन मे प्रतिद्वन्दता रखला के बाद भी संदीप, बढ भई के ओतना ही इज्जत करस। संदीप जहा बच्चन खातिर उचा ख़वाब रखले रहलन, प्रदीप के कवनो विषेश सपना ना रहे पर लडकी कुल के शहर के सबसे बड़हन स्कूल मे पढ़ावत रहले।
b.sc. कइला के बाद प्रदीप के बड़ लड़की के स्कूल मे टीचर के अवसर मिलल त प्रदीप शादि के हवाला देके मना कइलें पर उ नौकरि क लिहली और यहि से प्रदीप के किस्मत पलटीं मरलस। घर में आमदनी बढे लागल। प्रिया, उनकर बड़की बेटी साफ़ कह देले रहलि कि अबे ३/४ साल तक शादी के बात सोचे के भी नइखे। जब इ बात संदीप के परिवार के पता चलल त खूब नाक भौह सिकोडल लोग। घर के इज्जत के हवाला दिहल लोग पर प्रिया केहु के बात एक ना सुनली। दूसरी तरफ संदीप के बड़ लइका महगा प्राइवेट कॉलेज से mba कइले, पैसा के त कवनो कमी रहे ना। शुरू से ही उ बड़हन उद्योगपति बने के सपना देखले रहले। mba कईला के बाद कुछ घर के पैसा और कुछ बैंक लोन लेके आपन कंपनी चलूँ कइलें। दू साल बितत बितत कंपनी पुरा तरह से फेल हो गईल और पूरा पैसा डूब गईल . इहाँ से सँदीप के बुरा दिन शुरु भईल। मंदी के दौर में उनका लड़िका के कही नौकरि भी न मिले और उपर से बैंक के कर्ज बढ़त जात रहे। महीना के पूरा तनख्वाह बैंक के सूद देहला मे ही खतम हो जाउ उपर से छोट लड़िका के पढ़ाई जवन कि डॉक्टरी के तइयारी करत रहे। घर के बड़ा बुरा हाल रहे।
एक तरह जहा संदीप बुरी तरह कर्ज मे ड़ूब गईलें वाहि प्रदीप किहाँ जमके तरक्की होत रहे। मझली लड़की के इण्टर पास करतें हि दुनु बहिन मिलके कोचिंग खोल देहली सन जवन कि खुब चले। अतना आर्थिक परेशानी मे आएला के बाद भि सँदीप और उनकर मलिकाइन कभी एकर जिक्र प्रदीप से ना कइल लोग। करीत भी कैसे। खुद के नबाब जे समझे लोग।
संदीप खातिर, परेशानी के ए दौर मे एगो खुशखबरी छोट बेटा के डॉक्टरी के पढ़ाई मे पास भईला के ऑईल जवन कि जल्दीये फुर हो गयील। फीस भरे के पैसा संदीप के लगे ना रहे। बैंक से लेके दोस्त , मित्र रिश्तेदार सब जगह कर्ज लेबे के कोशिश कईल पर कहि बात ना बनल और आज त आखिरि उम्मिद भी खतम हो गयील जब ओनकर साढू भी पैसे देबे से ईन्कार क देहले।
"अब का होई पापा ?" खामोशी के तुरत राज पूछले।
"होई का गाव के ज़मीन बेचे के पडी। " संदीप कहले "अब इहे आखरी रास्ता बा। "
"पर गाव मे केतना शिकायत होई हमनीं के ?" सुशीला कहली " भाई साहब और दीदी के सामने क मुह रह जाइ ?"
"तू आपन मुह घूचा मे रख। राज के जिंदगी से बढ़के नइखी ए झुठ के इज्जत और शान "
सुशीला चुप हो गईली। संदीप अपना मामा के फ़ोन क के ज़मीन के ग्राहक खोजे के कह दिहले और फिर सफ़र के तैयारी करे लगले। ट्रैन अगिला दिने १० बजे रहे।
अगिला बिहाने जब उनका दरवाजा के घंटी बाजल त साढे चार होत रहे। अतना सबेरे के होई सोचत सँदीप दरवाजा खोलले त उन्का अपने आख पर विश्वास हि ना भईल ,सामने प्रदीप और प्रिया खड़ा रहे लोग। न कवनो सूचना ,ना कवनो प्लॉन फेरु कैसे आ गयील लोग। गोड़ छू के अंदर ले आईले वो लोग के। सुशीला वो लोग के देखते मिरगिया गइलीं। अब त प्रिया के कपडा देबे के परि ए चिंता से उ अउर क्रोधित रहली।
" बिना कवनो सूचना के। कवनो परीक्षा बा का ?" संदीप कहले " पहिले पता रहित त हम स्टेशन आ गईल रहिति लेबे खातिर। "
"पहिले तू इ बताव कि तु हमके आपन भाइ समझेल कि ना ?" खीस से प्रदिप कहले।
"इहो पूछे वाला बात बा। " संदीप उनका क्रोध के कारन बिना समझले कहले।
"नाही तू हमके आपन भाईं ना बूझे ल। नात अतना दिक्कत भईला के बादो तू हमसे एक बार भी ना कहले रहित. सबसे तू पैसा मंगल ह और हमसे एक बार भी ना कहल ह। काल्ह मामाजी से पता चलल कि तु गांवे जा तार ज़मीं बेचे। राज का हमार लड़िका ना ह। ओके पढ़ाई खातिर पुरखन के धरोहर बेचला के कवनों जरुरत नइखें। राज के बड़ बहिन ओके पढ़ावे खातिर पइसा लियायिल बियां। काल्ह से ही जब सूनवे ,उ बेचैन बिया। बोल केतना पैसा चाही " प्रदीप ब्रीफ़केस खोलत कहले।
संदीप और सुशीला के त बुझाइल जैसे केहु जोरदार तमाचे मरले होखी। बोले के एको शब्द ना रहे वहीँ राज के आख मे में लोर आ गयील। प्रिया के भी आँख भर गईल।
जवना बेटी के समाज और संदीप, उनकर मलिकाइन बोझ समझल लोग ,जवने बेटि खातिर प्रदीप के माईं बाबूजी उन्से आख फेर लेहल आज उहे अपना मेंहनत और काबिलियत से परीवार के इज्जत नीलाम होखी से बचा लेहलस। सच में भाई साहब कवनो पुण्य कइले होखेब कि उँहा के बेटी मिलल बा लोग और हमनि के पाप कि हमनीं के बेटी नइखी, सुशीला और संदीप बार बार इहे सोचत रहे लोग। धन्य बा बेटी के बाप।
धनंजय तिवारी