●●●कहानी●●● ●●●अमर प्रेम●●●

Update: 2017-05-28 05:48 GMT
गर्मियों की छुट्टी हुई थी, हर बार की तरह इस बार भी रोली अपनी बहन के घर से वापस गाँव आई थी इस बार उसने 12वीं की परीक्षा दी थी, पड़ोस के दिनेश चाचा के घर उनकी बहन उमा का बेटा मुकुल भी मामा के घर छुट्टी मनाने आया था। मुकुल ने शाम को मामा के बेटे रवि से गाँव घूमने की इच्छा जताई थी फिर क्या, दोनों निकल पड़े। गाँव की मरी माई के चौरे पर कोई सुंदर सी लड़की सफाई करते हुए मुकुल को दिखाई दे रही थी रवि से उसने बहाने बनाते हुए कहा- रवि उस नीम के पेड़ पास चल न; रवि ने कर्तव्य सा पालन करते हुए मुकुल को नीम के पेड़ के पास ले गया जहां रोली अपने सहेलियों संग मरी माई का चौरा साफ कर रही थी।
रोली, जिसका संगमरमरी बदन , पीपल के पत्ते सरीखे खनक की सी चाल, कोयल की कुहुक सदृश आवाज़ सुनकर मुकुल के हृदय में प्रेम की पहली किरण आज फूट गई।
कहते हैं; प्रेम और दुःख कभी दरवाजे की सांकल बजा के अंदर नहीं प्रवेश करते और आज तो सिर्फ मुकुल ने रोली को करीब से देखा भर था, वह रोली को देखकर ऐसे सपनों में खो गया जैसे कोई बिरह की प्यासी अपने पति के आने की ख़ुशी में रात भर सोचती रहती है। मुकुल और रवि दोनों वापस चले आए। अब मुकुल के मन में सिर्फ एक ही बात रह रहकर उठ रही थी वो कि किसी तरह रोली को पुनः देखने की इच्छा पूरी हो जाए, मामी ने चाय के लिए आवाज लगाई जल्दी जल्दी चाय खत्म करते हुए मुकुल ने रवि से बोला यार चल पड़ोसी मामा लोग के घर चलते हैं और दोनों निकल पड़े।
 राजेश, मनीष मामा के घर दोनों गए पर मुकुल की निगाहें उस घर को खोज रही थीं जहां उसे उसके पहले प्यार का दर्शन मात्र हो जाए, वह जल्दी जल्दी सब से मिलकर आगे बढ़ता है अचानक उसकी निगाह कोने में बने घर के दरवाजे पर पड़ती है जहां एक लड़की संध्या की अर्चना हेतु दीपक जला रही थी, ठिठुककर मुकुल ने देखा और रवि से बोला ये घर किस मामा का है यहाँ भी चलो न
दोनों पहुँचते हैं और मुकुल ने जैसे ही रोली को देखा उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे मृग को कस्तूरी मिल ही मिल गई हो, रवि ने अंदर जा के चाचा चाची की आवाज लगाई और चाचा बाहर निकले फिर चाची आयीं और मुकुल का परिचय हुआ बातचीत हुई। किसी तरह रोली की यादों के सहारे रात कटी, और
अगले दिन सुबह जगने के बाद मुकुल टहलते हुए रोली के घर पहुँच गया, आज मामा उसे घर के अंदर ले गए और सब बैठ के बातें करने लगे तबतक मुकुल की आंखों की खोज समाप्त हुई और रोली चाय लेकर पास आई फिर मामा ने रोली और मुकुल का परिचय कराया, दोनों में बातें शुरू हुई और पढ़ाई पर रुकी फिर पता चला कि रोली लखनऊ में रहती है और वह आगे की पढ़ाई की तैयारी के लिए कल चली जाएगी, मुकुल वहाँ से वापस तो आ गया पर उसे ऐसा लगा जैसे वह प्रेम की पहली परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया हो।
दोनों पहुँच गए अपने अपने शहर और पढ़ाई शुरू हो गई पर मुकुल को रोली की वो बातें वो अंदाज रह रहकर याद आते रहते और वो यादों के सहारे अपनी आगे की जिंदगी के सपने बुनने लगा। फिर दीवाली की छुट्टी की घोषणा होते ही मुकुल इस बार अपने घर न जाकर मामा के घर जाने का आग्रह अपने पिताजी से फोन करता है आज्ञा मिलते ही उसकी आँखें चमक जाती हैं वह रेल से यात्रा करते हुए लखनऊ स्टेशन पर पहुँचता है तभी उसे एक लड़की दिखती है जिसके पास पहुँचकर वह हैलो करता है और दोनों के चेहरे खुशी से चमक उठते हैं, वह रोली ही थी दोनों ने बात की और मुकुल ने बताया कि वह भी मामा घर छुट्टी मनाने चल रहा है, रेल पकड़ी और चल पड़े रास्ते भर बातें खत्म ही नहीं हुईं और अब शायद रोली भी मुकुल की तरफ आकर्षण महसूस कर रही थी, रेल से उतर कर बस पकड़ी और दोनों गाँव आकर उतर गए। घर पहुँच कर रोली ने माँ पापा को मुकुल के साथ आने की बात बताई तो पापा को कुछ अटपट सा लगा और चले गए फिर माँ ने उससे पूरी बात पूछी और सुनाया कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था लोग जानेंगे तो गलत सोचने लगेंगे।
मुकुल और रोली दोनों एक दूसरे से मिलने लगते हैं और मुह्हले में खुसुर फुसुर शुरू हो जाती है । अब मुकुल ने दीपावली के दिन रोली को अपने मन की बात बता दी रोली शरमा जाती है और मुकुल के निवेदन को स्वीकार करते हुए घर चली जाती है। दोनों में अगले दो दिन पत्राचार और फिर फोन नम्बर का आदान प्रदान हो जाता है। छुट्टी खत्म होती है दोनों वापस चले जाते हैं पर फोन पर बातें होने लगती हैं दोनों जिंदगी को साथ बिताने बसाने की बातें करने लगते हैं और तीन साल निकल जाता है।
मुकुल की बैंक में नौकरी लग जाती है और रोली का स्नातक पूरा हो जाता है वह अपने गाँव वापस आ जाती है। अब रोली पिता को भार महसूस होने लगती है और शादी की बात शुरू हो जाती है, पर रोली अपने पिता से अपने मन की बात नहीं कह पाती। बात तो शुरू ही करनी थी सो उसने सारी बातें फोन पर मुकुल को बता दीं। मुकुल ने अपने माँ और पिता से यह बात बताई वे दोनों सहर्ष बेटे की खुशी के लिए बात मान गए पर दिक्कत यह थी कि रोली के घर यह बात कौन लेकर जाए, वर पक्ष जाए तो तौहीनी होगी, वधु पक्ष अभी बेखबर था इस बात से ही। फैसला हुआ कि मुकुल की मामी को अगुआ बनाया जाए, वह गईं और रोली की माँ से शादी की बात छेड़कर बातों बातों में अपनी मंशा जता आईं।
रोली की माँ ने जब यह बात अपने पति को बताई तो वह भड़क उठे, चेहरा आँखें लाल हो गईं, "क्या बात करती हो सुधा तुम्हारी मति मारी गई है?? वह हमारी बिरादरी के हैं? संसार भूल जाए पर हम कैसे भूल सकते हैं?" उमा ने कालेज के दिनों में विजय से लव मैरिज की थी वे ब्राह्मण हैं, पर जात बिरादरी में इज्जत न गिरे इसलिए मनोहर लाल चाचा ने उस शादी को आनन फानन में सबकी नजर में अरेंज मैरिज करा दी थी।
 सारी बातें छिपकर रोली सुन रही थी और रो रोकर अपने देखे एक एक सपने को तोड़ रही थी क्योंकि वह अपने पिता और बिरादरी के सम्मान के खिलाफ नहीं जा सकती थी,  रात मे उसने मुकुल को ये सारी बातें बताईं और मुकुल ने सारे प्रयास को आजमा लिया पर नतीजा और भी दूर होता जा रहा था। रोली की शादी परसों कहीं और तय होने वाली थी रात को उसने फोन पर मुकुल को बताया और सुबह ही मुकुल मामा के गाँव आ गया और शाम को दोनों वहीं मरी माई के चौरे पर मिले जहां से मुकुल के मन में पहली बार रोली के लिए प्रेमांकुरण हुआ था, मुकुल और रोली देर तक बैठे रो रोकर बातें करते रहे और अंततः रोली ने एक डिबिया खोली दोनों ने कुछ खाया और लिपट गए .......
रोली और मुकुल का प्रेम अमर हो गया था.....
अभिनव पाण्डेय 'अतुल'

Similar News

गुलाब!