बात बहुत पहिले के ह जब यशोदा के बियाह , नरोत्तम पाठक से भईल रहे । पाठक जी एगो सामान्य परिवार से रहनी लेकिन यशोदा खूब ढनाढ्य घर से रहली । जवना बेरी शिवरी गाँव के लोग बैलगाड़ी पर चले खातिर लालायित रहत रहे ओ बेरी यशोदा के घरे एगो मोटर रहे जवना से उनकर बाबूजी दीनानाथ तिवारी जी अपना नोकरी पर जाईं । ऊहाँ के पेशा से प्रोफेसर रहनी आ बरियार रूतबा वाला आदमी रहनी ।
प्रोफेसर दीनानाथ तिवारी जी जवना काॅलेज में पढावत रहनी ओही में नरोत्तम पढत रहलें । नरोत्तम बहुत मेधावी लईका रहलें आ काॅलेज में होखेवाला हर गतिविधी में आगे रहलें जेकर परिणाम रहे कि ऊ सभे प्रोफेसर लोग के प्रिय छात्र रहलें । तिवारी जी हिन्दी के प्रध्यापक रहनी आ नरोत्तम के भी हिन्दी से बढिया लगाव रहे एसे ओ दुनू जने में बढिया जमें । नरोत्तम के पढाई के प्रति समर्पण आ लगाव देख के तिवारी जी जुड़ा जात रहनी आ बार बार कहीं कि अईसन लईका हर माई-बाप के होखे के चाहीं । बाकी अध्यापक लोग भी ऊहाँ के बात में आपन समर्थन देबे लोग ।
तिवारी जी के अब यशोदा के बियाह के चिंता होखे लागल आ ऊहाँ के नजर नरोत्तम पर रहे । ऊहाँ के ढेर लोग से एह विषय पर राय लेहनी आ सभे एक सुर में एह बात के समर्थन दिहल । तिवारी जी सब लोग से सलाह लेहला के बाद चल पड़नी नरोत्तम के घरे आ उनका बाबूजी के सामने अपना बेटी के बियाह के प्रस्ताव रखनी । पाठक जी के पता रहे कि तिवारी जी नरोत्तम के प्रोफेसर हईं आ अपना बेटा के मुँहे ऊहाँ के बारे में ढेर सुनलें रहनी त झटपट राजी हो गईनी । एके दिन के भेंट भईला में कुल्ह तय-तमान हो गईल आ अगिला दिने बियाह के दिन रखा गईल । सब लोग खुश रहे आ नरोत्तम के त खुशी के ठेकाना ना रहे ।
दिन नियराईल आ तय तिथि पर बियाह भईल । नया कनिया के अईला से सब लोग खुश रहे । यशोदा के बातचीत करे के तरीका सबसे बढिया रहे आ इहे गुण उनका के आऊर रूपवाण बना देबे । ऊ अपना से छोट के जतने सनेह करस ओतने अपना से बड़ के आदर करस । बोली में ऊ मिठास आ शांति रहे कि कबो-कबो लोग के उनका लगे जाके सुने के पड़े । नरोत्तम अईसन मेहरारू पाके अपना के धन्य बूझत रहलें आ यशोदा अईसन वर पाके अपना के सबसे खुशहाल मेहरारू बूझत रहली लेकिन यशोदा के भाग्य में इ खुशी ढेर दिन ना रहे काहे कि विधाता कुछ आऊर सोचले रहलें । दू बरिस बाद यशोदा एगो लईका के जन्म देहली आ घर में खुशी के लहर दऊड़ गईल । नरोत्तम एह खुशी के यादगार बनावे खातिर एगो भोज करावे के ठनलें त यशोदा हँ में हँ मिलवली । बस फेर का रहे ऊ चल देहलें बाजार सामान खरीदे आ समान खरीद के जब लौट के आवत रहलें तले एगो ट्रक उनका के अपना चपेट में ले लेहलस आ ऊ दौरे पर आपन प्राण तेयाग देहलें । ई समाचार जब यशोदा आ बाकी लोग जानल त घर में कोहराम मच गईल , सभे रोवे पीटे लागल आ ओही बीचे केहु कह दिहल की लईका जनम लेते बाप के खा गईल । ई बात यशोदा सुन लेहली आ ऊहो मान लेहली कि ई लईका कुलच्छनी बा आ ओही लगले ऊ ओह छोट लईका के ले आके बाप के देह पर पटकली आ ओकरा के आपन दूध तक ना पिआवे के किरीया खा लेहली । सभे ई देख के अवाक हो गईल आ जिन कहलें रहलें कि बाप के खा गईल ऊ लगलें अफसोस से आपन कपार पीटे । लोग यशोदा के लाख समझावल कि ई तहरे खून ह आ अपना खून के साथे अईसन ना कईल जाला लेकिन ऊ केहु के ना सुनली । खैर दिन बीते लागल , नरोत्तम के श्राद्ध भईल आ ओ बच्चा के पोसे के जिम्मेदारी नरोत्तम के माई के कपार पर आ गईल । यशोदा अपना लईका ओरी तकबो ना करस आ ऊहे यशोदे जे घर भर के लोग के बड़ाई के पात्र रहली अब सभे थेई-थेई करे उनका के ।
लईका बड़ होत जात रहे आ ऊ यशोदा के लगे जब जाए तब ऊ ओकरा के भगा देस लेकिन ऊ गईल ना छोड़े । यशोदा के मन भी धीरे-धीरे पसीजे लागल रहे लेकिन ऊ देखावस ना । नरोत्तम के माई उनका के कतनो समझा के थाक गईली बाकि ऊ हमेशा ओकरा के भगावते रहली ।
एक दिन ऊ लईका गाँव में घुमत रहे तले कुछ लईका के खेलत देखलस आ अपनो के खेलावे के कहलस बाकि लईका सब ई कह के भगा देहले कि हमनी के ना खेलाईब जा , तोर माई तोरा के ना मानेली , हरदम तोरा के भगावत रहेली । ऊ लईका के ई बात बड़ी खराब लागल आ ऊ घरे आके खूब रोअलस । कुछ देर बाद ऊ अपना ईया के खोजलस लेकिन ऊ जब ना भेंटईली त घर में रखल फेनाईल के तेल पी गईल आ पीयला के तुरंते बाद लागल छटपटाये । यशोदा ओकर चिल्लाईल सुन के अंगना भें अईली आ ओकरा के देख के अवाक हो गईली बाकि कठोर करेज वाली मेहरारू अपना लईका के लगे ना अईली आ ना ओकरा से ओकर चिल्लाए के कारण पूछली । हँ अतना जरूर कईली कि दुआर पर निकल के लोग के बोलवली आ लोग आके ओ लईका के अस्पताल ले गईल । डाॅक्टर जब देखलें त उनका पसेना छूटे लागल काहे कि हालत बहुत खराब रहे । यशोदा भी साथे साथे अस्पताल आईल रहली आ जब ऊ ई सुनली कि हालत बहुत खराब बा तब उनकर ममता का जाने कईसे जाग गईल आ ऊ लगली अपना लईका के ध के चिल्ला चिल्ला के रोवे आ कहे कि तू चल जईबऽ त हम केकरा सहारे जीयब । उठऽ हमार बाबू , आज से हम तहरा के खाली दुलार करब , कबो ना खिसिआईब , उठ बेटा उठ लेकिन ऊ लईका काहे के उठे जाओ । डाॅक्टर आपन पुरा प्रयास करत रह गईलें लेकिन ओ लईका के बचा ना पईलें । घर में फेर से रोअन-पीटन पड़ गईल । सारा लोग यशोदा के दोष दिहल कि जदि तनीको ऊ अपना लईका के दुलार कईले रहती त अईसन दिन का जाने ना आईत । यशोदा खूब रोअत रहली आ सभकर बात सुनत रहली । कुछ देर बाद लोग ओह लईका के गंगा किनारे लेके चल दिहल आ ओकर दाह-संस्कार कईला के बाद सभे अपना घरे लौट गईल । रात में पाठक जी के घर के सब लोग सुते गईल आ सवेरे जब उठल लोग त यशोदा के लाश अंगना में पड़ल रहे । बगल में ऊहे फेनाईल के बोतल ढीमूलाईल रहे जवन उनकर लईका पीयले रहे आ मुट्ठी में एगो कागज रहे जवना पर लिखल रहे कि #तूचलगईलऽतहमकेकरासहारे_जीयब । लोग आईल , देखल आ सभका मुँह से ईहे निकलल कि यशोदा जबान के पक्का मेहरारू रहली ह । दूध ना पिआवे के किरिया खईली त ना पिअवली आ आज बेटा के जाए से मना कईला पर ना मानल त ओकरा पीछे चल दिहली । सभका अस्पताल के बात याद आवे लाग जब ऊ कहले रहलीं कि तू चल जईबऽ त केकरा सहारे जीयब ।
आज गाँव भर के लोग उनका एक जबान के मेहरारू रहला के बड़ाई करत रहे । यशोदा फेर आपन वर्चस्व बना के आज धीरे-धीरे विदा हो गईली ।
प्रीतम
छपरा , बसडीला से ।