प्रेमगली का चौड़ीकरण.... : सर्वेश तिवारी श्रीमुख

Update: 2017-05-30 10:27 GMT
पता नही वे कैसे दिन थे, जब कबीर बाबा ने प्रेम की गली को इतनी सांकरी बताया था कि उसमे दो भी नही समा पाते थे। आज का जमाना इतना हाईटेक और बिकसित है कि प्रेम की गली में दो चार क्या, पूरा का पूरा कैम्पस समा जाता है। बस्तुतः प्रेम की गली ही एक ऐसी चीज है जिसकी चौड़ाई में कबीर के काल से आज तक लगातार बिकास हुआ है। आधुनिक राजनीत में किसी एक दल का किया हुआ हर विकास दूसरे दल को विनाश नजर आता है, पर प्रेमगली की चौड़ाई में हुए विकास पर दुनिया के सारे दल अकमत हैं।
आजादी के बाद इस गली में हुए विकास पर नजर डालें तो दीखता है कि हर वर्ष समान मात्रा में विकास हुआ है। सरकार चाहे किसी की भी रही हो विकास नही रुका, बल्कि एक दल ने तो इतना विकास कर दिया कि प्रेम की गली में जिसे न समाना चाहिए वह भी समाने लगा। यहां तक कि पुरुष की गली में पुरुष भी समाने लगे।
आजादी के बाद के दशक में जब प्रेमिका के हसीन पांवों को देख कर प्रेमी उन्हें जमीन पर न उतारने की सलाह चिठ्ठी लिख कर देता था, वो दौर अलग था। पर वह दौर बीत गया जब बन्नो की अंखिया सुरमेदानी हुआ करती थीं, अब वह दौर है जब बन्नो का स्वेटर(स्वेगर भी) भी सेक्सी हो गया। इस दौर में जो सिर्फ पैर देखे वो ससुरा काहे का हीरो, और अगर चिठ्ठी लिखने बैठ गया तो पूरी कायनात उसे गधा साबित करने में लग जाती है। यह इंटरनेट का दौर है, यह फेसबुक और वाट्सअप का दौर है। अब आप ही सोचिये, आज का प्रेमी यदि ये कहे कि- फूल मैं भेजूं दिल ये कहता है,पर तेरा पता मालूम नही, तो प्रेमिका एडिडास के सेंडल से मार के मुह न फोर देगी। अबे कैसा घचाक प्रेमी है जो प्रेमिका का पता तक नही जनता... इस चौड़ी गली वाले दौर का प्रेमी अपनी क्या गैरों की प्रेमिका का भी पता जानता है, एक क्या दस दस प्रेमिकाओं का पता जानता है। चौड़ी गली है, रास्ता मिल जाय तो घुसने में क्या दोष! एक गली में सिमित रहने से सबसे बड़ा घाटा यह है कि सफलता की गुंजाइस बहुत कम होती है। इसी कारण पुराने दौर की अधिकांस प्रेम कहानियां असफल हो जाती थीं। पर अभी दौर दूसरा है।इस दौर में प्रेमी एक साथ दस गलियों में आवेदन करता है। जहां दाल पहले गल गयी वहां पतल बिछा लिए, बाकि जगह आवेदन डाले हुए हैं। जब तक दूसरे हंडिया की दाल गलेगी, तब तक हो सकता है कि इस गली में कोई और आ जाय।प्रेमी यहां से बोरिया बिस्तर उठाता है और दूसरी जगह सेट कर जाता है।बात आध्यात्मिक भी है, आत्मा एक शरीर से निकल कर दूसरे शरीर में समाती रहती है,तो प्रेमी भी एक गली से निकल कर दूसरी गली में समा जाय तो क्या दिक्कत है? शरीर भी तो आत्मा का ही साथी है।
प्रेम गली के चौड़ीकरण में राजनीती के साथ साथ सिनेमा का भी बड़ा योगदान है। प्रेम की वह संकरी गली, जिसमे खड़ी प्रेमिका प्रेमी की किसी बात में एक छोटी मात्रा के दोष पर यह कह देती थी कि- दगाबाज तोरी बतिया ना मानूँ रे..उसको इतना चौड़ा बना देना कि "प्रेमिका नाच नाच कर कहे कि मैं करुँगी गन्दी बात" सिनेमा जगत के अतुल्य योगदान का द्योतक है। इस विकास के लिए सिनेमा के लोगों ने क्या क्या उद्योग किया है यह बताने के लिए सौ महाकाब्य लिखना पड़ेगा, थोड़े में बस यही समझिये कि इस चौड़ीकरण के लिए एक योद्धा को अपनी बीर पुत्री के साथ किसिंग सीन बनाना पड़ गया।
सब मिला जुला के यह मानना पड़ेगा कि प्रेम गली का यह चौड़ीकरण सिनेमा जगत के अतुल्य योगदान के रूप में जाना जाना चाहिए।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज

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