सड़क के किसी गड्ढे में बस का चक्का पड़ने से उसका सर पाइप से टकराया तो उसकी आँख खुली, उसने देखा- बस सीवान शहर को छोड़ चुकी थी। जेनरल से भी बदतर हो चुके ट्रेन के स्लीपर क्लास की दो दिन की थकाऊ यात्रा से निपट कर सीवान स्टेसन के बाहर उसने गांव की बस पकड़ी तो बस में बैठते ही नींद आ गयी थी। नींद आती भी क्यों न, युगों बाद घर आने पर भी मन में कोई उत्साह, उमंग तो था नही। जाने वह कौन सी भावना थी जो उसे गांव की तरफ खीच ले जा रही थी। वह पुरे पच्चीस वर्षों बाद वापस आ रहा था।
पाइप से सर में लगी चोट परपराने लगी थी, उसने चोट पर हाथ रख कर मलते मलते जैसे खुद से कहा- कुछ नही बदला, बिहार बिहार ही रह गया। यहां के गड्ढे कभी नही भरेंगे। फिर उसने धीरे से सर झटका तो देखा, बगल में पाइप पकड़ कर खड़ी एक अठारह उन्नीस साल की पसीने से तर बतर लड़की उसे देख कर मुस्कुरा उठी थी। वह समझ गया, बस में खड़े हो कर यात्रा करने के बावजूद भी किसी सोये हुए यात्री को चोट लगने पर मिलने वाले आनंद को नही छोड़ पायी है। वह जाने क्या सोच कर उठ गया और लड़की से कह उठा- आप बैठ जाओ बेटा...
वह शरमाई, नही अंकल आप बैठिये।
वह मुस्कुरा उठा- आप बैठ जाओ बेटा, आपको कष्ट हो रहा है। मुझे तो वैसे भी खड़े रहने की आदत है।
लड़की शायद थकी हुई थी, बैठ गयी।
वह पाइप पकड़ कर खड़े खड़े सोचने लगा। पता नही क्यों जा रहा हूँ गांव, किसको जरुरत है मेरी.... भइया भाभी सब तो अपने में मस्त होंगे। माँ बाबूजी, पता नही हैं भी या नही... और तूलिका......... क्या पता...... पता नही कितने दिनों तक मेरा रास्ता देखा होगा उसने....
उसे याद है, घर में कौन नही जानता था कि तूलिका और तुषार एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। काश किसी ने चाहा होता कि दोनों.......
वह और तूलिका का चचेरा भाई रोहन स्कूल के जमाने से ही अच्छे दोस्त थे। रोहन ने तो हमेशा चाहा कि तूलिका की शादी तुषार से हो जाये, तुषार से अच्छा लड़का दूसरा मिलना संभव नही, पर रोहन के चाहने से ही क्या होता था।
उसे याद है माँ की बात, अपनी पसंद की शादी कर सको, इसके लिए कुछ बड़ा बनना पड़ता है तुषार, एक तो तुम खुद बेकार घूम कर घर की प्रतिष्ठा पर दाग लगा रहे हो, ऊपर से एक दरिद्र की बेटी से शादी की बात, मैं मान भी जाऊँ तो कौन मानेगा??
माँ ने ठीक ही कहा था, वह मान भी गयी तो कौन माना? अबकी माँ की बात बाबूजी ने दुहराई थी। उसकी बेकारी में उसका क्या दोष थी, अस्सी और नब्बे के दशक में तो बिहार के 90% लड़के बेकार रह गए थे। नौकरियां थी कहाँ जो वह पा लेता.. फिर उसे तो ब्राम्हण होने की भी सजा भुगतनी थी।
उसके साथ थे तो बस तूलिका के पिता, उनकी बात कचोटती रही है उसे अब तक। मैं तो हर पल मनाता रहता हूँ बेटा कि तूलिका की शादी तुमसे हो जाय, पर मेरे मनाने से क्या होगा? तुम्हारे पिता तो मुझे अपने दुआर पर खड़े भी नही होने देते। और वैसे भी, मेरी औकात कहाँ जो तुम्हारे घर शादी कर सकने की सोचूं भी। वो तो तुम दोनों का स्नेह है जो..... तुम अपने पिता की बात मान लो बेटा, गांव छोड़ कर बाहर निकलो और कमाने धमाने की फ़िक्र करो... तुम अगर कुछ बन गए तो सब तुम्हारे प्यार का मान भी रख लेंगे। मेरी फ़िक्र में मत रहना बेटा, तूलिका की शादी के लिए मुझे पांच साल भी तुम्हारा इंतजार करना पड़ा तो करूँगा।
गांव छोड़ने के समय आखिरी बार जब वह मिला था तूलिका से तो बस इतना पूछ पाया- मेरा विश्वास करती हो न तूलिका?
रोती लड़की ने कहा था, तुम्हारा विश्वास ही तो एक है मेरे पास, दूसरा है क्या? तुम मेरे हीरो हो तुषार।
तो मेरा इंतजार करना, धोखा न दूंगा, आऊंगा जरूर.....
बस का चक्का शायद फिर किसी गड्ढे में पड़ा था और पाइप से फिर चोट लगी थी, लड़की फिर मुस्कुरा रही थी। उसने कहा- बैठ जाइये अंकल, अब तो सीट खाली हो गयी है।
वह बैठा तो लड़की पूछ पड़ी- कहाँ चलेंगे अंकल?
-पता नही बेटा, फिर मुस्कुराते हुए कहा- जगन्नाथ पुर चलूँगा।
- अरे, मुझे भी तो वहीं जाना है। आपका घर वहीं है क्या? पर मैंने तो आपको कभी नही देखा।
- आपका घर वहीं है क्या बेटा?
- मेरे नाना का घर है अंकल, पर हमलोग वहां भी खूब रहे हैं। मेरे मामा नही हैं। आजकल नानाजी बीमार हैं, माँ भी वहीं गयी है।
वह कुछ अचंभित सा हुआ, पूछ पड़ा- आपके नाना का क्या नाम है बेटा?
- राजेंदर मिसिर, आप जानते हैं?
वह जैसे उछल पड़ा, तुम तूलिका की......??
-हाँ अंकल। आप मेरी माँ को जानते हैं?
-हाँ, उसने लम्बा साँस ले कर कहा, हमलोग स्कूल में साथ पढ़े थे।
कुछ देर बाद उसने पूछा- अच्छा बेटा, सीताराम पाण्डेय के घर का क्या हाल है?
- ठीक है अंकल, वे तो अब बहुत बूढ़े हो गए हैं, पर नाती पोते बहुत सेवा करते हैं उनकी।
-और माँ... मेरा मतलब उनकी पत्नी कैसी है?
-वे भी ठीक हैं अंकल, सब लोग सुखी हैं।
कुछ देर तक गुमसुम रहने के बाद उसने पूछा- आप के पिता का क्या नाम है बेटा?
- राहुल मिश्रा। मेरा गांव सोनपुर है।
वह जैसे खो गया। सोनपुर के बैजनाथ मिसिर सरपंच का बेटा राहुल, उसके स्कूल में ही पढता था। कोई क्लास ऐसा नही जिसमे दो बार फेल न हुआ हो। बड़े बाप का बेटा....
कुछ देर के बाद बस रुकी तो वह उतरने लगा। लड़की ने टोका- अंकल आपको जगन्नाथपुर न जाना था?
- नही बेटा, अब वापस लौटूंगा। गांव फिर कभी...
वह बस से उतर गया, पर उसके पीछे लड़की भी उतर आई। पूछा- अंकल एक बात पूछूँ?
उसने सर उठाया।
अंकल आप तुषार पाण्डेय हैं?
वह उसके मुह की ओर देखने लगा, तुम मुझे कैसे जानती हो।
लड़की ने देर तक उसका चेहरा निहारा, फिर उसके पैर छु कर बोली- अंकल, मेरी माँ ने आपका इंतजार किया था।
उसकी आँख भीग गयी थी। उसने जेब से हजार के दो नोट निकाल कर लड़की के हाथ में दिया और उसके सर पर हाथ रख कर भारी स्वर में कहा- अपनी माँ से कहना बेटा, मैंने भी उसे धोखा नही दिया। बस मैं हीरो नही था।
उसने सीवान की तरफ लौटती एक बस को हाथ दिया, और वापस लौट गया। पता नही क्यों....
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार