बारह बरिस ले कुकुर जिए सोरह बरिस ले जिए सियार,
अठारह बरिस से छत्रिय जिए आगे जियला के धिक्कार...
मटर के खेत की मेड़ पर बैठे टिकाधर काका आज अपनी लय में थे। खेत से मटर की साग खोंट कर चबाते चबाते आल्हा गा रहे काका को देख कर मनोहरा से रहा नही गया।वह टपक पड़ा- क्यों काका, आज तो एकदम लय में हो! कुछ देख लिए हो का?
काका मुस्कुराये- हाँ हाँ, आज सपना देखे कि तोरा नानी से बियाह कर रहे हैं। ओही से खुश हैं।
मनोहरा बोला- ठीक कहते हो काका, हमारी नानी भी जब से सुरधाम गयी है, तबसे तुमको बुला रही है बियाह करने के लिए। घबड़ाओ मत, साल दो साल में उसके पास चहुँप ही जाओगे।
काका पिनके- दूर ससुरा, हम एतना जल्दी थोड़े मुयेंगे रे। हम तो अभी जवान हैं।
मनोहर बोला- अच्छा, अच्छा! भगवान करे कि तुम दो सौ वर्ष जियो और बेटे पतोह की मार खाओ। पर आज कोई कहानी सुनाओ न काका।
काका मुस्कुराये और बोले- आज मेरा भी मन कहानी सुनाने का हो रहा था। इतिहास की कहानी सुनोगे मनोहर?
मनोहरा खुश हो गया। बोला- अरे काका, तुम जवन सुनाओगे जबरदस्त ही सुनाओगे। सुनाओ न!
काका ने कंधे पर रखी गमछी को सर पर बांधा और बोले- तो सुन बेटा। लगभग साढ़े चार सौ वर्ष पुरानी बात है, आज के मध्य प्रदेश में एक छोटा सा राज्य था गढ़ कटंगा। उसकी राजधानी थी चौरागढ़। उन दिनों चौरागढ़ पर महारानी दुर्गावती का शासन था। महारानी के पति का देहांत हो गया था और उनके पुत्र राजकुमार बीर नारायण अभी किशोर थे, सो उनको राजा घोषित करने के बावजूद शासन की जिम्मेवारी अभी भी महारानी के हाथों में ही थी। महारानी चंदेलवंश की राजकुमारी थीं, सो प्रजावत्सलता और वीरता के गुण उनको विरासत में मिले थे। उनके इन्ही गुणों के कारण प्रजा उनको देवी की तरह पूजती थी।
उस समय दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर का शासन था। यह भारत का वह काल था जब हिन्दू होना ही सबसे बड़ा गुनाह हुआ करता था। उस दौर के हिन्दू शासकों को या तो तुर्कों की अधीनता स्वीकार करनी होती थी, या सर देना होता था।हिन्दुओं के कटे सिरों का मीनार बना कर गाज़ी की पदवी प्राप्त करने वाले बाबर का पोता जलालुद्दीन अकबर अपने पूर्वजों से बहुत अलग नही था, और ऊपर से बैरम खान जैसे क्रूर सलाहकार की छाया में वह पक्का मुगल हो चला था। दिल्ली के आसपास के सभी छोटे बड़े राज्यों को गुलाम बना चुके मुगल बादशाह को जब पता चला, कि गढ़ कटंगा में एक हिन्दू स्त्री का शासन है तो वह जल उठा। एक तो हिन्दू, और ऊपर से स्त्री! वह अकबर जिसने अपनी वंश परंपरा के अनुसार अपनी बेटियों को इस तर्क पर जीवन भर अविवाहित रखा था, कि "हमसे बड़ा ऐसा कौन है जिसे हम अपनी बेटियां दें", उस अकबर के सामने एक हिन्दू स्त्री शासन करे, यह उसके लिए घोर अपमानजनक बात थी। अकबर ने तुरंत ही चौरागढ़ पर आक्रमण कर उसे लूटने के लिए असफ खां के नेतृत्व में पचास हजार की घुड़सवार फ़ौज भेजी। असफ खां एक क्रूर अरबी था जिसके लिए हिंदुओं की हत्या ही अल्लाह की इबादत थी। उसके रूप में एक राक्षस चला था चौरागढ़ की ओर।
काका दम भरने के लिए रुके तो मनोहरा पूछ पड़ा- अरे काका, आप हर बार यही अत्याचारों की कहानियां ही क्यों सुनाते हैं महाराज? कोई इश्क मोहब्बत वाली काहे नही सुनाते हैं?
काका मुस्कुरा उठे, बोले- जानते हो मनोहर, सातवीं सदी से बीसवीं सदी तक हर सदी में कम से कम एक करोड़ हिन्दुओं की गर्दन काटी गयी है। लेकिन हम लोग इतने थेथर हैं, कि मात्र बीस सालों में ही अपने ऊपर हुए अत्याचार भूल जाते हैं। मैं चाहता हूँ कि मेरे बच्चे हमेशा याद रखें कि उनके पुरुखों को कितना अत्याचार सहना पड़ा है।
मनोहर बोला- अच्छा काका, आगे सुनाओ।
काका ने गमछे से मुह पोंछ कर कहना सुरु किया- जब महारानी दुर्गावती को असफ खां के अभियान के बारे में पता चला तो वह चंदेलकुमारी गरज उठी। उसे मुगलों के बारे में खूब पता था, कि किसी भी राज्य को जीतने के बाद वे वहां की प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। उसने तुरंत ही सेना को तैयार होने का आदेश दिया,और दो घंटे के अंदर ही वह बीस हजार बहादुर सैनिकों के साथ युद्ध के लिए तैयार खड़ी थी। महारानी ने अपनी सेना के दो हिस्से किये, एक का नेतृत्व उन्होंने अपने हाथ में लिया और आश्चर्यजनक रूप से दूसरे हिस्से का नेतृत्व तेरह साल के युवराज बीर नारायण के हाथ में सौंप दिया। बीर नारायण की टुकड़ी की कमान अघोषित तौर पर महारानी के बड़े भाई चंदेल राजकुमार अमर सिंह के हाथ में थी।
दिल्ली से आ रही मुगल सेना के मार्ग में एक पहाड़ी दर्रा पड़ता था नार्धी। यहां दो तरफ से ऊँची पहाड़ियों के बीच संकरा सा रास्ता था। महारानी ने अपनी टुकड़ी को इसी रास्ते के मुहाने पर खड़ा किया और बीर नारायण की टुकड़ी को दोनों तरफ की पहाड़ियों पर बड़े बड़े पत्थरों के साथ तैयार रहने का आदेश मिला।
अगले दिन दोपहर में जब असफ खां की सेना दर्रे पर पहुची तो एकाएक दोनों तरफ से महारानी के सैनिक टूट पड़े। ऊपर से बीर नारायण के सैनिक पत्थरों की वर्षा कर रहे थे, तो रास्ते पर खड़े महारानी के सैनिक उनके अत्याचार का दंड दे रहे थे। इसके पहले कि मुगल संभल पाते, उनकी एक चौथाई सेना मारी जा चुकी थी। दिन भर चले युद्ध मे महारानी का पलड़ा बहुत भारी पड़ा था। पर मुग़ल आखिर मुगल थे। रात को जब महारानी के थके सैनिक सो रहे थे, तभी अचानक मुगलों ने तोप से हमला प्रारम्भ किया। महारानी की सेना के पास तोपें नही थी, सो वे कमजोर पड़ने लगे। हिन्दू सेना अब समझ गयी कि युद्ध जीतना संभव नही रहा, सो उन्होंने इसे जीवन का अंतिम युद्ध समझ कर तलवार भांजना प्रारम्भ किया। मुगल सेना गाजर मूली की तरह खचाखच कट रही थी, पर उनकी तोपें इसका भरपूर बदला ले रही थीं। धीरे धीरे हिन्दू कम होने लगे और महारानी घिरने लगीं। मुगल सेना उनके निकट पहुँच चुकी थी। अचानक एक तीर आ कर महारानी को घायल कर गया। महारानी समझ गयीं कि अब वे बन्दी बना ली जाएंगी। उन्हें पता था कि मुगल सेना बन्दी स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार करती है। उन्होंने पल भर सोंचा और पास खड़े सैनिक को अपना उत्तरीय देकर कहा- तेजी से युवराज के पास पहुँच कर उन्हें मेरा आशीर्वाद दो, और कहना कि माँ ने कहा है "कुल मर्यादा न टूटे"।
महारानी ने दूर पहाड़ी पर खड़े पुत्र की ओर दृष्टि फेरी और उनकी आँखों से दो बूंद आँसू टपक पड़े। मुगल उनके बहुत निकट आ चुके थे, उन्होंने कमर से कटार निकाली और अपने हृदय में भोंक लिया। वे भारतीय स्वाभिमान का ध्वज लिए अमर हो चुकी थीं।
महारानी की चादर ले कर सैनिक जब तेरह साल के युवराज के पास पंहुचा तो युवराज सब समझ गए। युवराज ने भर आई आँखों को माँ के चादर में पोंछ कर उसे अपने माथे पर बांध लिया। तेरह साल के उस बीर ने बची हुई सेना को ले कर वह युद्ध किया कि मुगल कांप उठे। पर कब तक? मुगलों की विशाल सेना के आगे संसाधन हीन सैनिक कितने देर टिकते? शाम होते होते सारे हिन्दू वीरगति प्राप्त कर चुके। बीर नारायण भी कुल मर्यादा की रक्षा करते हुए माँ के पास जा चूका था।
विजेता दल जब चौरागढ़ राजमहल पंहुचा तो वहां उनसे पहले उनकी क्रूरता का भय पहुँच चूका था। राजमहल की असंख्य स्त्रियां अपनी सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर कर चुकी थीं।
उधर अकबर अपनी एक और जीत का जश्न मना रहा था।
काका और मनोहर दोनों की आँखे भीग गयी थीं। मनोहरा ने पूछा- पर काका, लोग तो अकबर को महान कहते हैं?
काका ने गमछे से आँख पोंछते हुए कहा- यह अद्भुत देश है रे, यहां सिर्फ बौद्ध धर्म अपना लेने से कलिंग का समूल नाश करने वाला क्रूर हत्यारा अशोक महान हो जाता है, तो जजिया पर रोक लगा देने भर से क्रूर अकबर महान कहलाने लगता है। यहां झूठी महानता की गाथा गायी जाती है रे, यह अद्भुत देश है।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।