जीवन कल्पना का अथाह समुद्र है, लहर पर लहर, हर डगर-डगर पर, दिन-रात-पहर-दोपहर इसके हिलोर आते ही रहते हैं, उनमें डूबता उतराता, हिचकोले खाता मन जीवन के अपने सच के संग पापी पेट का सवाल है, व्यापार, बिजनेस, गम, हैपीनेस का बवाल है, में उलझता कब उबाऊ भी होने लगता है आज जा के पता चला कि कल भारत पाकिस्तान का फाइनल मैच है, आइसीसी चैंपियंस ट्राफी का, तो जैसे मैं नींद से जागा, कि अरे कहीं कोने में अभी भी प्यार बाकी है, जो चीख-चीख कर कह रहा है कि जीवन भले ही अनिश्चितता से परिपूर्ण है, पर यदि इसे एक खेल मान लो तो जिंदगी है खेल कोई पास, कोई फेल खिलाड़ी है कोई, अनाड़ी है कोई... तो केवल खेल ही है एक जिसमें निश्चित फाइनल है, शादी के जैसे एकदम गुड्डे-गुड़ियों के खेल के माफिक, चाहें आँधी, तूफान और इनकी फुहार गुल बहार सहेली बरखा ही क्यों न आ जाय, चाहे कोई जीए या मरे, लाश रख के होगा लेकिन ब्याह तो हो के ही रहेगा, यही तो फाइनल है।
याद आता है वह भी एक दौर था कि जब पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इमरान खान ने एकबार कहा था कि कश्मीर का फैसला भारत-पाक में क्रिकेट मैंच की सीरीज करा के कर लिया जाए, जो जीतेगा कश्मीर उसका। जावेद मियाँदाद, सलीम मलिक, रमीज राजा, वसीम अकरम, अब्दुल कादिर आदि नाम नहीं हैं बल्कि भारत को निश्चित हराने की पक्की शर्त थे, जीत ही नहीं पाता था भारत। सुनील गावस्कर टेस्ट, वन डे का फर्क अपने खेल जीवन के अंतिम वन डे के ठीक एक मैच पहले कर पाए थे जब न्यूज़ीलैंड के खिलाफ 88 गेंदों में 100 रन बनाए थे 104 डिग्री बुखार में, तो कृष्णामाचारी श्रीकांत, वसीम अकरम से हद से ज्यादा डरते रहे। मोहिंदर अमरनाथ, दिलीप वेंगसरकर क्रिकेट कापी बुक स्टाइल के जिंदा मिसाल थे। कपिल, अजहर और रवि शास्त्री बीच-बीच में टीप-टाप चौका छक्का मार लेते थे पर जीतने के लिए यह कभी काम नहीं आ पाता था। चेतन शर्मा तो एक ऐसे बालर थे कि एक ओवर में 37 रन भी इनके लिए सेफ नहीं था, पाकिस्तान के खिलाफ। शारजाह में मियाँदाद का अंतिम गेंद पर मारा गया वह छक्का आज भी याद है इनपर और उसके बाद मेंरे पड़ोसी मुसलमानों ने जो जश्न मनाया था कि मेरा तब का बाल मन आज तक सांप्रदायिक ही है।
विश्व कप के भारत-पाक के बीच पहला मैंच मैं 1992 में देखा, जब पहली बार मैं भारत को जीतता देखा था पाकिस्तान से, आपने भी वह रिकार्डिंग देखा होगा, जब मियाँदाद पाकिस्तान हारने लगा, तो बहुत जलनखोर खिलाड़ी था, भारत के विकेट कीपर किरण मोरे की अपील करने की नकल कर उछलने लगा था, तब पूरे भारत के क्रिकेट दर्शकों की आत्मा तृप्त हो गई थी उसदिन। मियाँदाद बिल्कुल जैसे तड़प रहा था आहा..... ऐसे तड़पत जैसे जल बिन मछरी। पर पाकिस्तान वह वर्ल्ड कप जीत गया था, इंजमामुल हक और वसीम अकरम के अदभुत खेल से। फिर हम लोगों का मजा किरकिरा हो गया। भारत के अधिकांश मुस्लिम क्रिकेट दर्शक वैसे ही खुश होकर मुस्कुराने लगे जैसे छिनाल की मनचाहे से रात बीती हो।
इधर भारत में तेंदुलकर का उदय हो रहा था, जो अपने दम पर भारत को लगभग हर दूसरा, तीसरा मैच जीतवा रहे थे, अब क्रिकेट देखने में मजा आ रहा था, पर पाकिस्तान से हम फिर भी हार जाते थे अक्सर, कि फिर एक हाइ-फाइ, टाप-प्रोफ़ाइल वर्ल्ड कप 1996 का क्वाटर फाइनल का मुकाबला चिन्नास्वामी स्टेडियम बंगलौर में आ पड़ा।
मीडिया माहौल गरमाने लगा, पाकिस्तानी मीडिया ने साफ कह दिया था कि वर्ल्ड कप भले हार जाओ लेकिन हिंदुस्तान को हराओ। तो भारत की मीडिया के सुप्त गुप्त स्रोत कह रहे थे कि नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी ने उनसे साफ कह दिया है कि हारे तो घर में नो... नो...नो...नो...नो ऐंट्री।
वसीम अकरम कप्तान की हालत खराब हो गई वह खेला ही नहीं खैर भारत ने पहले बैटिंग किया और यह दबाव था या कुछ और था सिद्धू ने 93 रन ठोक दिये। पर खेल अभी बाकी है मेरे दोस्त, अजय जडेजा का, व्येंकटेश प्रसाद का। जडेजा ने वकार युनूस अपनी रफ्तार और गेंदबाजी का बहुत घमंड था इसे, के अंत के दो ओवरों में 42 रन ठोक दिया और भारत ने 289 रन का लक्ष्य दिया। पाकिस्तानी ओपनिंग जोड़ी ने करारा जवाब देना शुरू किया तभी व्येंकटेश प्रसाद को लाया अजहर ने, उसपर भी दड़ाम से एक चौका मारा आमिर सुहैल ने और बताया कि ऐसे ही मारूंगा अभी और भी कि उसकी अगली ही गेंद पर एकदम साफ क्लीन बोल्ड। पूरा स्टेडियम गूँज उठा- जाओ जाओ जाओ जाओ जाओ..... तब मियाँदाद आया पर पाकिस्तान अब जा चुका था, ऐसा कि आज तक नहीं लौटा है।
अब एक मुकाबला कल है कोई कह रहा है कि पाकिस्तानी श्रीलंकन जर्सी में उतरेंगे तो कोई कह रहा, लाख मना करने पर भी कह रहा कि कल अनुष्का देवर्स वर्सेस सानिया सेवर्स के बीच मुकाबला है तो एक अंतर्राष्ट्रीय थींकर का कहना है कि कल फादर्स डे है, फैसला हो के रहेगा कि बाप बाप ही होता है। तो एक कह रहा है भारत माता की जय...
बहुतै कंफ्यूजन है भाय... लभ यू बाय।
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश