श्रावण शुक्ला सप्तमी।

Update: 2017-06-18 10:20 GMT
बाबा तुलसी के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि इसी दिन उन्होंनें शरीर धारण किया था।
मेरे बहुत से मित्र मानस भूषण हैं और रामचरितमानस के प्रेमी की यह प्रमुख विशेषता पायी जाती है कि वह जीवन में घट रहे समय और घटनाओं को रामचरितमानस की चौपाइयों से छानकर, गाकर अथवा तो मिलाकर अवश्य देखता है।
जिनके जीवन का आधार रामचरितमानस ही है उनको इसका एक विशेष रस अवश्य पता होगा कि चौपाइयाँ बात करती हैं और अपने अर्थ और रस को स्वयं ही बताती हैं। सपने में आ जाती हैं, नींद को तोड़ देती हैं, बेचैनी बढा देती हैं कि क्या करूँ? किससे कहूँ? किसको सुनाऊँ? किससे पूछूँ?
जो अर्थ आया है क्या सचमुच सही है और यदि सही है तो बाबा को यह कैसे सूझा? कवि कल्पना की भी एक सीमा होती है और उसमें भी अमूर्त कल्पना इतनी सटीक कल्पना कैसे? 
जरा सोचिये! 
१४९७ ई० में जन्मा यह व्यक्ति ७७ साल की उम्र में अर्थात् १५७४ ई० में रामचरितमानस लिखना शुरु किये और २ वर्ष ७ माह २६ दिन में १५७६ ई० में इसे पूरा किया और इसमें वह लिख दिया जिनका कुछ अंश आज के विज्ञान के विकास के कारण कुछ-कुछ हमें दिखने लगा है।
जैसे!
नाम आधारा की चर्चा सोशल मीडिया में खूब धूम मचाए रहा।
कलिजुग केवल नाम आधारा। सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।। 
खैर यह तो ठिठोली है आधार कार्ड नाम रखने वाला हो सकता है मानस प्रेमी रहा हो।
पर १६२३ ई० में जब बाबा तुलसी ने अपना शरीर त्यागा तब भी भारत में जो तेज चलने वाला संसाधन था वह रथ था, घोड़ा था। फिर यह कल्पना उनके दिमाग में कैसे आई कि
चलत बिमान कोलाहल होई? 
हवाई जहाज जब उड़ा तो बहुत शोर हुआ और उस शोर से डरकर सभी बंदर भालू
जै रघुवीर कहे सब कोई।। 
चिल्लाने लगे। रथों के शोर से विमानों के कोलाहल की कल्पना कवि कर सकते हैं। पर मैं आश्चर्य में तब पड़ गया जब गोस्वामी जी मानस में सुपरसोनिक विमानों का भी उल्लेख कर गये हैं-
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुंदर बिधि नाना।। 
सुर सुंदरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना।। 
ध्वनि रहित विमानों में गाते जा रहीं सुंदरियों के गीत सुनकर उनकी मधुर तानों से मुनियों तक का ध्यान भंग हो गया।
इससे भी बढकर बाबा ने आगे तो हद ही कर दिया है।
भरत राम के वनगमन से अत्यंत दुखी हो भारद्वाज मुनि के आश्रम प्रयाग पहुँचे हैं। भरत की दशा देखकर मुनि ने रिद्धि-सिद्धि को आदेश दिया कि भरत आज रातभर के लिये मेरे अतिथि हैं इनकी और पूरी अयोध्या की प्रजा की ऐसी सेवा करो कि इन सबका सारा विषाद नष्ट हो जाए और सभी आनंद से प्रफुल्लित हो जायें। तब-
मुनि पद बंदि करिअ सोई आजू। होइ सुखी सब राज समाजू।। 
अस कहि रचेउ रुचिर गृह नाना। जेहि बिलोकि बिलखाहिं बिमाना।। 
पूरी अयोध्या और भरत की सेवा के लिये रिद्धि-सिद्धि ने वह प्रबंध किया जो सुविधाएँ विमानों तक में नहीं होती।
क्या बाबा ने एसी और मोबाइलों का भी उल्लेख किया है? 
मुझे तो लगता है कि किया है। कैसे? 
नमूने देखिये -
जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना।। 
नाथ एक संसउ बड़ मोरे। करगत बेद तत्व सबु तोरे।। 
आमलक मतलब आँवला। आज हम कुछ भी स्मार्टफोन से सर्च कर रहे हैं और काल की गति का अपने ज्ञान के अनुसार पता लगा भी ले रहे हैं तो यह स्मार्टफोन कहीं आमलक तो नहीं है? 
एसी देखिये बाबा का-
रितु बसंत बह त्रिबिध बयारी।
अर्थात् शीतल, मंद और सुगंध से भरी बसंती हवा।
पर आगे वाली पंक्ति बेचैन किए है-
सब कहँ सुलभ पदारथ चारी।। 
सामान्य नहीं है-
करतल होहिं पदारथ चारी।सोइ सियराम कहेउ कामारी।। 
भगवान शिव का निर्धारित चार पदार्थ है जो हथेली में हमेशा रहता है सियाराम के।
यह चार पदार्थ क्या है?

आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश

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