"शिवेंद्रकथा"

Update: 2017-06-24 14:23 GMT
एक बार सुमन्त ने प्रियांक से कहा --- हे प्रियांक! ऐसी कथा सुनाइए जिसे सुनकर मन प्रसन्न हो जाए और चित्त में शान्ति छा जाए। प्रियांक ने जो सुनाया वो इस तरह है।

बात तब की है जब शिवेंद्र भैया ग्यारहवीं क्लास में पढ़ते थे। उनका एक दोस्त था, गेंदा सिंह गुलाब। साइंस और मैथ के भारी भरकम कोर्स के कारण गेंदा जी हमेशा मुरझाये रहते थे। उनके चेहरे पर हरवक्त एक टिकाऊ किसिम का दुःख नज़र आता था।
शिवेंद्र भैया से उसका दुःख देखा न गया।एक अच्छे दोस्त की तरह उन्होंने गेंदा की मदद की ताकि वो फिर से खिल सके। उन्होंने गेंदा को बताया कि टेक्स्ट बुक के अलावा भी दुनिया में ऐसी किताबें होती  है जो विज्ञान से ज़्यादा रोचक और गणित से ज़्यादा रोमांचक होती है।और जिन्हें पढ़कर मानसिक ही नही शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि पानी और दूध तो इंसान और पशु पीते है।तू देवता बन और देवताओं की चीज़ पी।
इन सब उपायों पर अमल करने से गेंदा की एक एक पंखुड़ी खिल गयी, वह खुश रहने लगा और गाहे बगाहे "बहारो फूल बरसाओ" टाइप के गाने गाने लगा।
एक दिन जब गेंदा जी अकेले में ख़ुशी के मारे मुंह ऊपर करके सियार की तरह राग जै जैवन्ती गा रहे थे। तभी उनके पिताजी को शक हुआ कि ये सब शिवेंद्र की कुसंगति का साइड इफेक्ट है। उन्होंने शिवेंद्र भैया की सर्विसिंग के लिए एक उपाय ढूंढ निकाला।
शाम को जब शिवेंद्र भैया अपने पिताजी के साथ खेत की सिंचाई कर रहे थे तभी गेंदा के पिताजी वहाँ पहुंचे। और पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछने लगे। उन्होंने पूछा कि बताओ यूपी के सिंचाई मंत्री कौन है? शिवेंद्र भैया भकुआये से खड़े रहे।उन्हें क्या पता कि सिंचाई के लिए मंत्री होता है वरना उसी से खेत सिंचवा लेते। तभी दूसरा सवाल आया-- चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक कब हुआ?
अब शिवेंद्र भैया को समझ में आया कि ये सारा थियेटर उन्ही के लिए रचा जा रहा है। वे बड़ी देर तक गेंदा के पिताजी का मुंह देखते रहे और मन ही मन अपनी शब्दांजलि उन्हें अर्पित करते रहे।
गेंदा के पिताजी ने आगे बताया कि शिवेंद्र न खुद पढ़ता है न मेरे बेटे को पढ़ने देता है। ये सुनकर शिवेंद्र भैया के पिताजी का खानदानी खून खौल उठा।
घर आकर उन्होंने शिवेंद्र भैया की सिंचाई और राज्याभिषेक दोनों किया।
शिवेंद्र भैया का स्पाइनल कॉर्ड में अभी भी दर्द होता है और उनके पृष्ठ भाग पर आज भी उस हसीन शाम की निशानियाँ दृष्टिगोचर होती है।

ये कथा सुनकर सुमन्त को अपार हर्ष हुआ और उन्होंने प्रियांक से विदा ली।


नीरज मिश्र

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