भक्क साला बिहारी.... (..टेलीफोन वाली प्रेम कहानी..)

Update: 2017-06-25 03:31 GMT
...कल स्टोरी टेलिंग डे था, और मैं ठहरा आलसी इंसान (वैसे मैं ऑफिस में व्यस्त भी था, पर आप आलसी ही मान कर चलिए),. तो आज एक स्टोरी सुना देता हूँ। 
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....."तुम आजकल फ़ोन बहुत कम करने लगे हो देव, ...करते भी हो तो, सिर्फ थोड़ी देर के लिए, .....कंजूसी कर रहे हो या लगाव ख़त्म हो रहा है हमसे?" उसने फोन पर तुनक कर कहा।

(अब मैं कैसे कहता कि,.. "अरे,.. अपनी किताबों तक के पैसे लगा दिए मोबाइल रिचार्ज करके तुम्हें फोन करने में। ....किताबें तो चलो दोस्तों से मिल जाती हैं पढने को।.... खाना तक भी एकाध वक़्त का गोल कर जाता हूँ ....लेकिन खाना तो फिर भी खाना होता ही है ना,"" .... लेकिन मैंने ये कहा नहीं।)

"अरे ऐसा कुछ भी नहीं है यार...., बस थोड़ा फ़ोन की बैटरी जल्दी ख़त्म हो जाती है, .....और दोस्तों के बीच जरा उठना बैठना, पढ़ाई के नोट्स तैयार करना,.. अधिक हो गया है।"......... मैंने कह तो दिया, ...पर मेरी आवाज में सच्चाई नहीं है, ....ये शायद वो भांप गई थी।

"अच्छा, हम अपने घर के लैंड लाइन से फ़ोन करें,.. आज रात में? ....सब लोग तो सो ही जाते हैं, ...हम फ़ोन को रजाई के अन्दर कर लेंगे, ....इतनी ठण्ड में किसी को क्या पता चलेगा?"

"मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया है, कि तुम कुछ गलत करो, ये मुझे पसंद नहीं है। .....एसटीडी फ़ोन का बिल बहुत अधिक आएगा, ....और तुम्हें दिक्कत हो जाएगी घर में, ....मैं ही कुछ करता हूँ।".... मैंने दिलासा देते हुए कहा।

"नहीं, ...आज तो हम ही फोन करेंगे,.. जो होगा देखा जायेगा। .......तुम अपने मोबाइल की बैटरी चार्ज रखना रात को।" ....कह के उसने फ़ोन काट दिया।

...जब वो अपनी बातों में, राजपूतिया अकड़ के साथ, "मैं" की जगह "हम" का प्रयोग करती थी, .....मेरे होठों पर एक मुस्कान आ जाती थी उसके भोलेपन पर। 
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रात को फ़ोन आया, घंटों बातें हुईं। .....पता चला कि,.. उस BA पार्ट 1 की,.. "राजपुतानी" को इतना भी आईडिया नहीं था कि,..... उनके घर के फ़ोन की केबल, ....उनके रूम में उनके बेड तक पहुंची ही नहीं, .....जबकि उनके मुताबिक वो केबल "बहोहोहोत लम्म्म्बी" थी। .....इस वजह से उनको, ....फ़ोन को लेकर, गिरती बरफ की ठण्ड में,.... बाहर बरामदे में बैठ कर,.... बात करनी पड़ रही थी। .....वैसे पहाड़ों में अंगीठी तो रात भर जलती ही है, ...सो अंगीठी और कम्बल का आसरा था ही।

.... ज्यादातर तो,.. मैं उसको यही समझाता रहा कि,.. ये गलत है। ......घर का कोई सदस्य अगर देख लिया, तो घर में उसकी इज्जत, माँ, बाप भाई बहन , की नजर से उतर सकती है।

....लेकिन ...साथ ही साथ ये भी कहता रहा कि,.. "काश ऐसी रूमानी रात में, .... पहाड़ों में,... जहाँ बर्फ गिर रही हो सामने आँगन में! ,.. चांदनी रात में, .........थोड़ी दूर,.. ऊँचे ऊँचे देवदार के वृक्ष,... नुकीली चोटियों के साथ, ...... सीना ताने पहाड़ियों पर खड़े हों! ,.. आसमान से, आहिस्ता आहिस्ता,.. धवल चांदनी उतर कर, .... जमीन पर,.. वैसे ही श्वेत धवल रंग की कालीन की तरह,.... बिछती जा रही हो! ,.. ... और वहीँ एक बरामदे में,. ...अलाव के आग की गर्माहट और चांदनी से धुला हुआ तुम्हारा चेहरा,.. देखते देखते मौत भी आ जाए,.. तो कोई गम ना रहे जीवन में।

...काश ऐसा हो कि,..... एक ही कम्बल में हम लिपटे बैठे हों, ...... तुम्हारी साँसों की गरम आहट,... मेरे चेहरे पर पड़ रही हो।... .. मैं, .... तुम्हारी अधखुली सीप जैसी आँखों, ... और ठण्ड में सुर्ख लाल हो चले तुम्हारे गालों को निहारते हुए,....... तुम्हारे गुलाब की पंखुड़ियों जैसे गुलाबी नर्म होठों पर,.......... अपनी कांपती, थरथराती उंगलियों को हल्के हल्के फेरता हुआ,.... मैं ऊँची तान में बेसुरे ढंग से गा रहा होऊं,..

"तेरे चेहरे से,.. 
तेरे चेहरे से, नजर नहीं हटती, नज़ारे हम क्या देखें"
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महीने-डेढ़ महीने, तक इस सिलसिले के चलने के बाद, .... अचानक घर में कोहराम मचा। ....तीन चार सौ रुपये के, एक महीने के बिल की जगह, ....... ".साढ़े दस हजार"...... का बिल जो आया था। ....जिसका अंदाजा मुझे तो पहले से था,.... लेकिन "राजपुतानी" जी को नहीं, .....क्योंकि उनके अनुसार, उनके पापा के पास,.... "बहोहोहोत" पैसे थे,.... और पापा भी "बहोओओत" अच्छे थे।

...खैर बिल चेक किया गया, .... 95% से ज्यादा फोन एक ही मोबाइल नम्बर पर किया गया था। ... फिर उस UP के मोबाइल नम्बर पर फ़ोन किया गया,..
"कौन बोल रहे हो?" एक कड़कती आवाज।

"जी, आपको किससे बात करनी है?" ....एक जबरदस्ती मरघिल्ली बनाई हुई आवाज,... क्योंकि लैंडलाइन नंबर तो सेव ही था मोबाइल में।

"इस नम्बर पर बहुत बार फ़ोन किया गया है हमारे यहाँ से, ..... बताओ कौन बोल रहे हो, और किससे बात होती है तुम्हारी? .... पूरा परिचय दो।"

"देखिये हुजुर, हम फलाने बोल रहे हैं, ...हम बिहार के रहने वाले हैं, ...हम तो इहाँ लखनऊ में बढई की दुकान पर काम करते हैं। ...हमका नाहीं पता कि,.. कईसे आपके बिल में हमरा नम्बर आया। ...हम त अनपढ़ गरीब मजूर हइं सरकार।"

"भक्क साला बिहारी" ...बोल के फोन काट दिया गया, ...थोड़ा बहुत हंगामा उस पहाड़ी इलाके के,.... टेलीफोन के दफ्तर पर भी हुआ ही। .....पर नतीजा वही,.. ढाक के तीन पात,.. "भक्क साला बिहारी",..!!
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....... लेकिन अब फोन पे लंबी बात का चस्का चढ़ चुका था, दोनों तरफ। ....तो इधर से महीने के खर्चे, हॉस्टल बिल, खाने के बिल,... वगैरह में कटौती करके, ...जैसे तैसे मोबाइल रिचार्ज करके,.. उस चस्के की भरपाई करने की कोशिश की गई। .....लेकिन ये तो वही बात हो रही थी, ... जैसे ऊंट के मुंह में जीरा,.. जैसे दिन भर में एक पूरी बोतल गटकने वाले को,... कई दिन तक चम्मच से पीने को मिले। ,..... वो शेर भी फिट बैठने लगा हमदोनों पर ही कि,..

"अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं है मैखाने में,.. 
जितनी हम कभी छोड़ दिया करते थे पैमाने में ,.."

खैर, एक दिन एक फ़ोन आया, ...एसटीडी कोड तो वही था, पर नंबर कोई और। ......सो, डरते डरते, धड़कते दिल से फोन उठाया, .....उधर से "राजपुतानी" जी कुहकीं,..
"ये हम बोल रहे हैं, और दिन में इस नम्बर से थोड़ी बहुत बात कर सकते हैं हम, ....ये हमारी एक पड़ोस की ताईजी का नम्बर है। ...ये अकेली रहती हैं, और इनके सारे लड़के,.. आर्मी में जॉब करते हैं, इसलिए बाहर रहते हैं।"

ये दिन में फोन आने का सिलसिला भी, .....बेइंतहा इश्क की सूखी दरिया को, ...पुनः चम्मच से ही भरने वाला साबित हुआ। ....तो "एक रात" ताईजी के घर से,.. मेहमान बन के फोन करने का जुगाड़ किया गया, महीनों की प्यास के बाद,.... आज चातक को जी भर के स्वाती की बूंदों में नहाने का मौका मिला। ......लेकिन मुसीबत ये कि फिर प्यास भी बढ़ ही गई, ..... और कोई,.. रोज रोज तो ताई जी के घर में, "रात को".... रुक नहीं सकता था। 
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कुछ दिन बाद अचानक, ...फ़ोन में से चहकते हुए आवाज आई,... "अच्छा सुनो देव, हमने ये आज चेक किया दिनभर में कि,... ताई जी के फ़ोन का तार,.. हमारे रूम के "बहोहोहोत पास" से गुजरता है।"

"यार, ये गलत है, ये चोरी कहलाती है।" ...मैंने एक शराब के प्यासे शराबी जैसे, औपचारिक कमजोर सा,.. प्रतिकार करने की कोशिश की।

"तुम सही गलत का भाषण अपने पास रखो देव, .....और हमें बताओ कि, ....उस तार में कोई फ़ोन कैसे जोड़ते हैं? ...हमारे घर में बैठक वाला ही एक फोन है,... जो रात को मिल सकता है,... उसको कैसे जोड़ें ताई वाले तार में? ....और खबरदार जो, अपनी इंजीनियरिंग का भारी भरकम कोई फार्मूला बताया तो,..... एकदम बिलकुल आसान तरीके से समझाना हमें,,"

...... नशे की लत हमें भी लग ही चुकी थी, ....सो नैतिकता को भाड़ में फेंक के, ..... जल्दी ही हथियार डाल दिया हमने। .....अब अपने अन्दर के शर्लाक होम्स और घाघ इंजिनियर,.. दोनों की क्षमता दिखाने का वक्त आ चुका था।

"तुम पहले तो अपने रूम से, ताई जी के तार की दूरी नापो,... फिर अपने फोन के तार की लम्बाई नाप लो, ....और जितना तुम्हें लगे कि, ....इतना लम्बा तार पर्याप्त होगा, ...उससे दो हाथ ज्यादा पर निशान लगा लो। ...... अब उस निशान वाली जगह पे, ...एक नुकीला पत्थर तब तक रगड़ो, जब तक कि,.. तार कट ना जाए। 

.......फिर अपने भईया को बोलो कि,.. "भईया, फोन में रिंग नहीं आ रही है, .....देखिये कहीं तार वार तो नहीं टूट गया, बर्फवारी में??" ..... फिर अपने भईया को ध्यान से वाच करो कि,... वो क्या कर रहे हैं, और कैसे? उसके बाद तुम्हारे भईया, एक टेंपरेरी गांठ मार देंगे तार में,..... तुमको वहीं से वो गांठ खोल कर,.. ताई के तार में जोड़ देना है,।.... लेकिन दिन में पहले एक बार practice जरूर कर लेना, कि कैसे तार जोड़ते हैं, और फिर बाद में कैसे उसे वापस जोड़ देते हैं। .....आगे तुम्हें खुद समझदार हो ही ।"

"बाकी सब तो ठीक है देव, ....लेकिन तार को पत्थर से क्यों रगड़ के समय व्यर्थ करना ? ....चाकू से हम एक झटके में ना काट दें?"

"अरे पगली, ...चाकू से कटा हुआ तार देखकर, ...तुम्हारे घरवालों की समझ में आ सकता है कि,... कुछ तो गड़बड़ है। ...जबकि अभी पिछले महीने ही,.. इतना ज्यादा बिल आया है। ...लेकिन जब तुम पत्थर से रगड़ के काटोगी, ....तो लगेगा कि,... किसी चूहे ने कुतर के काटा है।"

"वाऊ देव, सो स्मार्ट!! तुम सामने होते तो तुम्हारा मुंह चूम लेती मैं,.! .....वैसे शादी तो हम तुमसे ही करेंगे, ....चाहे हमको सारी दुनिया से ही लड़ना पड़ जाए, ....ये एक "राजपुतानी" का वचन है तुमसे।"

मैं गहरी सांस भरकर रह गया। 
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कहानी में अब कुछ नया नहीं है। .....फिर से वही दो मतवाले, .....इश्क की सूखी दरिया को,.. अपनी बातों की चहल पहल से,.. उसको मयकशीं दरिया बना देते हैं,..... फिर सारी रात उसमें डूब के जाम पीते रहे, ... रात रात भर,. !!...पूरी दिनचर्या ही बदल चुकी थी उन दोनों की, ......सारी सारी रात जाग के उटपटांग बातें करते, .... और दिन में उल्लुओं की तरह सोते। ......ये दौर-ए-जाम,.. निर्बाध चलता रहा। ... लेकिन दो तीन महीने बाद, इस दरिया में खौफनाक हलचल फिर मची, ...जो कि देव को आपेक्षित ही थी।

.... ताई जी के फोन का बिल 25 हजार को छू रहा था, ....उनका निकटतम फौजी लड़का, घर आ पहुंचा, .....और फिर से बिल दिखाकर,.. उसी टेलीफोन विभाग में हंगामा,.. और अंत पंत,. देव के नंबर पे कड़कता फोन भी आया,.. और देव का रटा रटाया जवाब,...

"हुजुर, माई बाप,.. हम गरीब अनपढ़ बढई हइं। हमके का मालूम कि कईसे आपके बिल में हमरा नंबर आई गया। हम ई ससुर सिमवे तूर के फेंक देत हइं।"

और उधर से, फिर से ये बोल के फोन कट गया,... "भक्क स्साला बिहारी"
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"इं. प्रदीप शुक्ला"

गोरखपुर

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