"सपने" (कहानी)

Update: 2017-06-25 08:35 GMT
देव ने कहा,.. "अच्छा चलो आज एक फिल्म देख कर आते हैं। बहुत अच्छी फिल्म है।"

"नहीं, मुझे नहीं जाना कोई फिल्म देखने। अच्छी फिल्म के नाम पर आप ले जाते हैं, और दिखा देते हैं कोई चाऊ माऊ की मारपीट वाली।" दीपा ने तुनक कर कहा। 

"अरे यार, मार पीट वाली नहीं, कम से कम "मार्शल आर्ट" वाली ही बोल दिया करो। वैसे ये हिंदी फिल्म है, तुमने नाम भी सुना होगा "तनु वेड्स मनु" ! 

"हैं?? कंगना वाली?? चलो चलो मुझे भी देखना है। सारी सहेलियां बोल रही थीं कि बहुत अच्छी फिल्म है।"

अब नाईट शो में फिल्म के अंत में, दीपा के आंसू बहते रहते रहे, और देव अपनी रुमाल निचोड़ निचोड़ कर देता रहा। फिर रात में उधर से डिनर करके ही घर आये, और सो गए सबलोग। 
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दीपा की आँख सुबह पांच बजे खुल गई, और देखा तो देव भी जगा हुआ था। दीपा ने उसकी बांह कस कर जकड़ते हुए कहा,.. "देव, तुम्हें पता है ना कि मुझे कभी सपने नहीं आते। लेकिन कल की फिल्म देखकर मुझे रात में एक सपना आया था।"

देव ने कहा,. "अच्छा !! ये तो ताज्जुब की बात है। क्या सपना देखा, बताओ तो।"
"नहीं मैं नहीं बताउंगी। तुम हंसोगे, या फिर taken for ग्रांट ले सकते हो मेरी बात का।"

"अरे यार, बता भी दो। या तो जिक्र ही नहीं करना था, या फिर पूरा बताओ।"
"देव, आपको भी पता है कि मेरे पेट में बात नहीं पचती। आपसे हर बात कह बैठती हूँ। इसलिए ये भी सुन लीजिये कि मेरा सपना क्या था... 

"मैंने देखा कि सुबह मैं नाश्ता बना रही थी, और मेरे आपके बीच हमेशा की तरह कोई छोटी सी बात लेकर बहस हुई थी। आप गुस्से में आ गए, और बिना नाश्ता किये ही ऑफिस चले गए। मैं आपको रोकना चाहती थी, हमेशा की तरह अपनी गलती खुद मान लेना चाहती थी। लेकिन इतना समय ही ना मिल पाया और आप निकल गए। आपके जाने के बाद मैं बहुत रोई। कई बार चाहा कि आपको फोन करके आपको सॉरी बोल दूँ। लेकिन डर लगता रहा कि कहीं आपका मूड ना बिगड जाए और आपसे ऑफिस में कुछ गलती हो जाय। फिर मैंने सोचा कि जब आप शाम को आयेंगे, तब मैं आपसे माफ़ी मांग लूंगी।"

"मैं आपकी फेवरेट वाली ड्रेस, काली टीशर्ट और लंबी काली स्कर्ट पहने हुए थी। क्योंकि जब आप मुझे इस ड्रेस में देखते हैं तो आपको मैं बहुत अच्छी लगती हूँ। इसलिए सोचा कि शायद इससे आपका मूड ठीक हो जाये। शाम सात बजे डोरबेल बजी। मुझे पता था कि आप अपने नियत समय पर ही लौटे हैं। मन में हजारों मीठे सपनों के साथ मीठी सी मुस्कान चेहरे पर रख कर मैंने दरवाजा खोला, और जो देखा वो देख कर मैं सन्न रह गई।"

"आपके साथ कोई लड़की थी, और आपदोनों के गले में वरमाला भी पड़ी थी। फिर आपकी भारी सी आवाज मेरे डर को सही साबित करते हुए मेरे कलेजे पर घन्न से लगी,.. "ये जान्हवी है, मैंने इससे शादी कर लिया है, और अब ये यहीं रहेगी, इसी घर में।"

मेरा जी चाहा कि मैं उस जान्हवी का खून कर दूँ, या फिर खुद को मार लूँ। लेकिन फिर मुझे अपने छोटे से बच्चे "शिशु" की याद आ गई। क्या होगा उसका मेरे बाद? सौतेली माँ ने तो उसकी जिन्दगी नरक कर देनी है। मैं खुद को रोक नहीं पाई और जोर जोर से रो पड़ी। फिर रोते रोते ही मैंने कहा,.. "ये मेरा घर है, मैंने इसे अपने हाथों से संवारा है। मैं यहीं रहूंगी। आप चाहें तो इसको बाहर वाला कमरा दे दीजिये, लेकिन मैं अपने रूम में इसको घुसने नहीं दूंगी, और ना ही किचन में।"

"यही बोलते बोलते मेरा सपना टूट गया और मेरी आँख खुल गई।" 
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"लगता है 'तनु वेड्स मनु' बहुत अच्छी फिल्म है। एक बार और चलो ना देखने।" 
.. इतना कह कर, देव जोर जोर से पेट पकड़ कर हंसने लगा, बिस्तर पर पैर पटक पटक कर। दीपा उसको गुस्से में घूंसे मारने लगी, तो देव उसकी ओर पीठ करके हंसने लगा। दीपा जब घूंसे मार मार कर थक गई, फिर उसने देव को कस कर जकड़ लिया अपनी बाँहों में और बोली,. 

"देव तुम्हें मैं बता नहीं सकती कि तुम्हें मैं कितना चाहती हूँ। प्यार क्या होता है, कैसा होता है, मुझे कुछ नहीं पता था। फिर तुमसे मिली, और अब कुछ भी जानने की इच्छा शेष नहीं है। मैं दुनिया की कोई भी चीज बाँट सकती हूँ, पर तुम्हें नहीं।"

देव ने उसके बालों में उँगलियाँ फिराते हुए कहा,.. "अरे बेवकूफ, वो एक सपना भर था।"

दीपा उससे और चिपटती हुई बोली,. "बहुत भयानक सपना था मेरे लिए। अगर सच होता तो मैं जिन्दा नहीं मिलती तुम्हें।"

देव ने अपने ऑफिस में लंच की टेबल पर ये किस्सा सुनाया। सब लोग हँसते हँसते खांसने लगे। एक सीनियर ने कहा., .
"अबे, अब मैं भी आज ही अपनी पत्नी को यह फिल्म दिखाने ले जाऊंगा, मैं शनिवार तक का इंतजार नहीं कर पाउँगा।" 
एक बार फिर से ठहाके गूँज उठे कैंटीन में। लेकिन देव सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया। 
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क्योंकि, ये कहानी यहीं ख़त्म नहीं है। क्योंकि, उस रात देव ने भी बिलकुल ऐसा ही एक सपना देखा था, लेकिन किसी को उसके बारे में कभी बताया नहीं, दीपा को भी। 

देव ने देखा कि,.. "वो सुबह ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। दीपा के साथ किसी झगड़े की वजह से कुछ दिनों से बोलचाल बंद थी। देव ने जाते जाते ऑफिस बैग से एक पेपर निकाला और सोफे पर फेंकते हुए दीपा से बोला, 
"तुम्हें मैं अच्छा नहीं लगता, तुम्हें मुझमें हजार कमियां ही नजर आती हैं। तो अच्छा ये रहेगा कि हम अलग हो जाएँ। ये डाइवोर्स पेपर है, शाम तक साइन कर देना इसपर।"

दीपा स्तब्ध होकर बोली,. "किस घर में झगड़े नहीं होते हैं? सब लोग फिर अलग हो जाते हैं? प्लीज देव, ऐसा मत करो। मैं तुम्हें बहुत चाहती हूँ, लेकिन तुम्हारी बुरी आदतों से गुस्सा आ जाता है। प्लीज ऐसा मत करो। मैं अब से कभी झगड़ा नहीं करुँगी। इतना तो सोचो कि शिशु का क्या होगा ?"

देव कहा,. "नहीं, अब बहुत हो गया है। अब मैं ये रोज रोज की चिकचिक किचकिच से तंग आ चुका हूँ। शाम तक पेपर पर साइन कर देना।" कह कर देव निकल गया। 
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शाम को घर आकर डोरबेल बजाया, लेकिन कोई हरकत नहीं हुई। ऐसा अक्सर हो जाता था, इसलिए देव ने अपने बैग में से दूसरी चाभी निकाल कर दरवाजा खोला। 

अन्दर आकर सीधा सोफे पर नजर गई, वहां डाइवोर्स पेपर पर दीपा के साइन पड़े हुए थे। देव उस साइन को देखकर सोच नहीं पा रहा था कि खुश होए या दुखी। थोड़ी देर तक यूँही खड़ा रह गया। 

अचानक उसे लगा कि बेडरूम से कुछ आवाज आई है, हलकी सी। वो थोड़ी देर तक बेडरूम के उढ़के दरवाजे को देखा, फिर उधर ही बढ़ गया। 

अन्दर का नजारा देख कर सन्न रह गया। दीपा बहुत शांति के साथ बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर बुद्ध जैसी शांति पसरी हुई थी। आँखें खुली हुई थीं खिड़की की ओर,... और,..और वो कुछ खा रही थी।

 ...देव ने थोड़ा नजदीक जाकर देखा। वहीँ बगल में शिशु सो रहा था। देव ने देखा, दीपा के हाथ में मांस का टुकड़ा था, जिसे वो "चपर चपर की आवाज के साथ" खा रही थी। ये भी दिख गया कि वो टुकड़ा शिशु की बायीं बांह में से दांतों से उधेडा गया था। शिशु सो नहीं रहा था, वो शायद दर्द बर्दाश्त ना कर पाने से चीख चीख कर बेहोश हो गया था। उसी की बांह का टुकड़ा दीपा चबा रही थी ! निर्द्वंद और ठहरे हुए जल के समान शांत बुद्ध के होठों के किनारे से लाल लाल लहू टपक रहा था। 

देव ज्यादा देर तक ये दृश्य देख नहीं सका, उसके घुटने मुड़ने लगे और वो भरभरा कर फर्श पर गिर पड़ा।
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(गलतियाँ सबसे हो जाती हैं, क्योंकि हम मनुष्य हैं कोई देवता नहीं। कोशिस होनी चाहिए कि रिश्तों में मेच्योरनेस, परिपक्वता रहे।) 

इं. प्रदीप शुक्ला
गोरखपुर

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