जून का आफ्टरनून। सुबह से अन्न का एक भी दाना मेरे मुँह में नही गया है।सिर्फ दो-चार फल खिलाकर और जल पिलाकर रखा गया है। फिर अज़ीब से कपड़े, ऐसे कपड़े जिन्हें आज के पहले और आज के बाद मैंने कभी नही पहने, पहनाकर और लगभग धकेलकर एक गाडी में बिठा दिया जाता है।आगे-पीछे तमाम गाड़ियाँ चल रही है जिनमें से कुछ लोगों के पास बन्दूकें है और कइयों ने शराब पी रखी है।शाम होते-होते ये काफिला एक अनजान से गाँव में पहुँचता है।इस गाँव में मैं पहले कभी नही गया था।गाड़ियों का दल एक घर के सामने रुकता है।वहाँ पर अज़ीब चेहरों वाले किसिम किसिम के लोगों की भीड़ है।चहुंओर चीख-पुकार-हल्ला-गुल्ला-शोर-शराबा है। और इस शोर के डेसिबल में कोई कमी न रह जाए उसके लिए 3 जेनेरेटर अपना योगदान दे रहे है। वो तीनों ही तीन चीज़े उत्पादित कर रहे है, "बिजली, धुँआ और चिनगारियां।" मेरी बाँह को पकड़कर मुझे उतारा जाता है।और दो लोग मुझे खींचते हुए एक घर में ले जाते है।अंदर का माहौल और भी खूंखार है। चारो ओर अपरिचित भीड़, उमस, गर्मी, बीच में जलती आग और उसका धुँआ, शोर। अब मुझे पकड़ कर आग के पास बिठाया जा रहा है। मुझ पर चावल, फूल इत्यादि फेंके जा रहे है। मुझे एक अफ्रीकन फ़िल्म की याद हो आती है।उसमें भी इसी तरह एक आदमी को बलि देने के लिए सजा-धजाकर फूल बरसाए गए थे। सभी लोग मुझे ही घूर रहे है।डर,उत्तेजना और गर्मी से मेरा बुरा हाल है।भीड़ में नाज़ुक और दर्शनीय चेहरे भी है, पर मैं उन पर कंसन्ट्रेट नही कर पा रहा हूँ।कुछ लड़कियाँ मुझे देखकर अज़ीब रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए चहचहा रही है। सबको उस घटना का इंतज़ार है जो अभी थोड़ी देर में मेरे साथ घटित होने वाली है।औरतें मुझे गालियाँ दे रही है वो भी बाकायदा सुर,ताल, छंद, राग, लय, बिम्ब, और अलंकारो के साथ।तभी एक पुजारी जैसा व्यक्ति आता है। अब मुख्य कार्यक्रम शुरू होगा।मेरा गला सूख चुका है। मैं थूक निगलता हूँ। भीड़ बढ़ती जा रही है।शोर बढ़ता जा रहा है।गालियों की सांद्रता और मारक-शक्ति बढ़ती जा रही है।पुजारी उन मन्त्रों को बोलना शुरू करता है जिन्हें शायद ऋषि भारद्वाज ही समझ पाएं।दरअसल आज मेरी शादी है।
-------------------------ये कुछ बेहतर है------------------------------
【टेल】
आषाढ़ की एक ललाती साँझ। पुरवैया हवा दिन भर की तपन को मिटाने में लगी है।मारे ख़ुशी के मेरी भूख गायब हो चली है। ऊपर से अपने बगीचे के देशी आमों को सुबह से खा रहा हूँ और लगातार आम्रमयी डकार आ रही है। मैंने बेहद खूबसूरत कपड़े, जो इससे पहले कभी नसीब नही हुए थे, पहन रखे है।रोबदार कपड़े और और शानदार जूतियाँ पहन कर मैं कोई मध्यकालीन शहज़ादा लग रहा हूँ।फूलों से सजी एक लम्बी सी गाडी में बैठता हूँ और निकल पड़ता हूँ एक अनजान मंजिल की ओर। ऐसी जगह जहाँ मैं पहले कभी नही गया, वहीँ मुझे जीवन का सम्पूर्ण सुख मिलने वाला है।रौशनी से चमचमाते हुए घर के सामने गाडी रुकती है और बड़ी ही इज़्ज़त, नज़ाकत और नफासत के साथ उतार कर दो लोग मुझे स्काउट करते हुए अंदर ले जाते है।चारों ओर लोग खुश है और अपने कामो में व्यस्त है। अंदर के लोग मेरे लिए अनजान है पर उनके चेहरे की आत्मीयता मुझे गर्वित और भावुक किये दे रही है। मुझ पर अक्षत-पुष्प-वर्षा हो रही है। मुझे तमाम हिंदी फिल्मों के सीन याद आने लगते है। चमकीले चेहरों वाली और खुशबू से सराबोर लड़कियाँ मुझे देखकर शरमाती, सकुचाती, लजाती, मुस्कुराती और एक दूसरे के कान में फुसफुसाती है।मैं सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन बना हुआ हूँ। सरकारी कागज़ भी मुझे सामान्य श्रेणी का नागरिक मानते है पर वहाँ पर मैं विशिष्ट बना बैठा हूँ। बीच में पवित्र अग्नि प्रज्वलित हो रही है और उससे निकलने वाला सुवासित धूम्र वातावरण की धार्मिकता और पाकीज़गी को कई गुना बढ़ा दे रहा है।औरतें मधुर कंठो से गा रही है।समूचा माहौल रंग, रौशनी, सुगन्ध, पवित्रता से भरा हुआ है। पण्डित जी आते है। लोग बेहद खुश है और मैं भी। पैदा होने और मरने के बीच की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना अब मेरे साथ होने वाली है। ख़ुशी, उत्तेजना और रोमांच के मारे मेरे दिल में जलतरंग सा बज रहा है। आज मेरा ब्रह्मविवाह है।पण्डित जी मन्त्रोच्चार शुरू करते हैं------
"ॐ साधु भवान् आस्ताम्, अचर्यिष्यामो भवन्तम्।"
नीरज मिश्र गोपालगंज वाले