घर के आँगन के कोने में बने मिटटी के चूल्हे पर रोटी सेकती हुई कमली को जाने कैसे सरबजीत के साइकिल की घन्टी की बजती आवाज दूर से ही समझ में आ जाती थी...
पूरा नाम कमलजीत सिंह था उसका..गाँव के बड़े ठाकुर बलजीत सिंह जी की पोती...पुरे गाँव में उसकी खूबसूरती के टक्कर की कोई दूसरी लड़की नही थी..गाँव के किसी भी शादी व्याह में जब वो जाती थी...तो सब लोगों की नजरें दुल्हन को छोड़ के उस पर ही टिक जाया करती थी...ईश्वर ने जैसे उसको खूबसूरती दी थी उसी तरह के संस्कार बलजीत सिंह जी ने अपने प्यारी पोती को दिया था...खाना बनाने से लेकर सिलाई कढ़ाई सब गुण सम्पन्न थी कमली...गाँव के हर नोजवान की जुबान पर कमली की खूबसूरती की चर्चा रहती थी...पर कमली को तो सिर्फ सरबजीत ही समझ में आता था.
सरबजीत के पिता जी आर्मी में कर्नल थे और 1971 के युद्ध में भारतीय सेना की तरफ से युद्ध भी लड़ चुके थे..जिसके लिए उनको सम्मानित भी किया जा चूका था..सरबजीत के दिल में भी आर्मी ज्वाइन करने की बड़ी हसरत थी..अपने पिता की तरह ही वो भी एक आर्मी वाला बनने का सपना देखता था..पर उसी दिल के एक कोने में कमली के लिए भी बेतहासा प्यार भी था जिसे सरबजीत कमली के अलावा किसी और को पता न था...दोनों साथ साथ पले बढ़े साथ साथ खेले..बचपन की दोस्ती जाने कब प्यार में बदल गयी दोनों को मालूम ही न पड़ा..अब आलम ये था दोनों की जान एक दूसरे में बसती थी..दोनों एक दूसरे में ही अपना भविष्य देखते थे...
हर सुबह सरबजीत साइकिल की घण्टी बजाता हुआ कमली के घर के सामने से निकलता मन में इसी हसरत के साथ की कमली की बस एक झलक भर मिल जाय तो पूरा दिन उसका गुलाब की तरह महक जाया करे वही दुसरी ओर चूल्हे पर रोटी सेकती हुई कमली का ध्यान भी सरबजीत की सायकिल की घण्टी पर रहता था घण्टी की एक आवाज सुनी नही की भाग के वो चौखट पर आ जाया करती थी..दोनों एक दूसरे की आँखों में झांककर सिर्फ नजरों से बात कर लिया करते थे एक दूसरे का हालचाल जान लिया करते थे..मन ही मन खुश हो लिया करते थे.. प्रेमी जनो की भाषा में शायद इसको "मौन की भाषा"कहा जाता था जिसे समझने के लिए प्रेम करना आवश्यक सा हो जाता है...
अब तो लगभग ये रोज का क्रम सा हो चला था..सरबजीत और कमली का प्रेम इस मौन की भाषा से बढ़कर दिलों और आत्मा की उस गहराई को स्पर्श करने लगा था जिसके सुखद एहसास मात्र से ही दोनों का मन मयूर ख़ुशी का नृत्य करने लगा था...कमली एक तरफ जहाँ अपने सुंदर सपनों में खोई हुई सरबजीत के साथ अपने भविष्य को लेकर आशावान हो चली थी वही दूसरी ओर सरबजीत भी अपने अरमानों में हर पल कमली को जी रहा था और उसे अपना जीवन साथी बनाने के ख्वाब सजोने लगा था...
पिछले दो दिनों से कमली उदास सी थी जब से उसे पता चला है कि सरबजीत का चुनाव सेना में हो गया है और वो बस दो दिन बाद ही सेना की ट्रेनिंग के लिए जाने वाला है..उसका दिल बैठा जा रहा है...किसी भी काम में उसका मन नही लग रहा था..बेचैनी जब हद से ज्यादा बढ़ गयी तो अपनी सहेली कुसुम के हाथो सन्देस भेज कर सरबजीत को आम के बाग में मिलने के लिए बुलाया था...डरते डरते कुसुम के साथ घर से निकलकर पहली बार वो सरबजीत से मिलने अकेले आई थी...
सरबजीत को देखते ही उसकी खूबसूरत आँखों से आँसू मोती से बनकर गिरने लगे और न चाहते हुए भी अंजाने से भाव से वशीभूत होकर सरबजीत के सीने से लग गयी और रोते रोते कहने लगी की मुझे छोड़कर मत जाओ सरबु मै तुम्हारे बिना जी नही सकती हूँ..मैंने हम दोनों को लेकर न जाने कितने सपनें सजाये है उन्हें कौन पूरा करेगा..मेरी खातिर रुक जाओ सरबु मत जाओ न...!!
सरबजीत ने कमली के मोती जैसे बह चले आँसुओ को पोछते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि अरे पगली तू रोती क्यों है..अरे तेरा सरबु अब मेजर बनने जा रहा है..समझी तू..और मै हमेशा हमेशा के लिए थोड़ी न जा रहा हूँ...बस ट्रेनिंग पूरी करते ही मै वापस आ जाऊँगा...वापस आते ही सबसे पहले अपने माता पिता के साथ आकर बलजीत ताया जी तेरा हाथ मांग लूँगा..और हमेशा हमेशा के लिए हम दोनों विवाह के पवित्र बन्धन में बंध कर एक हो जाएंगे...तू घबरा मत तुझसे दूर जाने का गम मुझे भी बहुत है पर जब मै वापस आऊंगा तो तेरे सारे शिकवे सारी शिकायते दूर कर दूँगा...और जब तेरे इस सुंदर से नाम कमलजीत सिंह में मेजर सरबजीत सिंह जुड़ जायेगा तो तुझे कितनी खुसी मिलेगी तू सोच तो सही एक बार...अच्छा देख तेरे लिए कल शहर जाकर ये धानी दुपट्टा लेकर आया हूँ...तुझे बहुत पसन्द है न ये रंग...मै जब तेरे घर आऊंगा तेरा हाथ मांगने तब सर पे यही अपने प्यार की निशानी दुपट्टा डाल कर आना मुझे खुसी मिलेगी...अब तू मुझे खुसी खुसी विदा कर और तू घर जा बलजीत ताया जी बहूत परेशान होगें...
कमली ने दुपट्टा हाथ में लिया और भारी मन से जाते हुए सरबु से कहा जल्दी आना मुझे आपका इंतजार रहेगा..
अगले दिन सुबह सरबजीत तड़के ही स्टेशन के लिए निकल गया था जाते जाते वो कमली से मिल भी न पाया..
दिन गुजरे महीने गुजरे सरबु घर नही आया था...न ही उसकी कोई चिठ्ठी कमली के पास आईं तो एक दिन सहेली कुसुम को लेकर सरबजीत के घर गई वहा जाकर पता चला की बार्डर पर अभी युद्ध के हालात है तो नए ट्रेनिंग मिले अधिकारियो को भी सीमा पर सुरक्षा के लिहाज से तैनात कर दिया गया है...अब जब स्थिति सामान्य होगी तभी सरबजीत घर वापस आयेगा...थके और निराश मन से कमली अपने घर लौट आई..
हर दिन हर पल उसे सरबजीत की याद आती थी कानों में घण्टी का आभाषी शोर उसे तकलीफ सा दे रहा था...
रेडियो में सुनने और अख़बार से उसे मालूम पड़ा की सीमा पर घमासान युद्ध छिड़ गया है,हर दिन न जाने कितने जवान अफसर रंगरूट शहीद हो रहे है.
कमली अपनी अरदास में सरबु की सलामती की दुवा किया करती थी..और ऊपर वाले से उसकी सकुशल वापसी की प्रार्थना किया करती थी..
एक दिन सुबह सुबह ही गाँव के सब लोग सरबजीत के घर की तरफ भागे जा रहे थे...कमली की कुछ समझ में नही आ रहा था...की आख़िरकार हो क्या रहा हैं...लोग भाग क्यों रहे है आखिर बात क्या है...तभी उसकी सहेली कुसुम रोती रोती उसके पास् आई और उखड़ी सासो को रोकने का असफल प्रयास करते हुए उसने कमली को बताया की सरबु अब इस दुनिया में नहीं रहा...कल रात आतंकियो से हुई मूडभेड़ में वो शहीद हो गया..पर मरते मरते भी उसने आतंकियो के पुरे दल को खत्म कर दिया था...
कमली के कानों में ये बात पिघले सीसे की तरह समाती चली गयी वो भरभरा के गिरने ही वाली थी कि कुसुम ने उसे बढ़ के थाम लिया...
कोई कुछ बोल पाता इससे पहले की गाँव वालों के नारे का शोर सुनाई दिया.
"जब तक सूरज चांद रहेगा..
सरबजीत सिंह तेरा नाम रहेगा"
गाँव के लोगों के साथ सरबजीत का मृत शरीर आज कमली के घर के सामने से बिना साइकिल की घण्टी बजाए बिना बात किये हुए जा रहा था और कमली पत्थर सी बेजान मूरत बनी उसे जाते हुए देख रही थी..बस देख ही रही थी...
एक तरफ गाँव के बाहर शहीद मेजर सरबजीत सिंह की मृत देह को गगन भेदी नारों और बन्दूको की सलामी के साथ अग्नि दी जा रही थी वही दूसरी ओर कमली अपने घर में उसी धानी दुपट्टे से लटक के झूल रही थी जो सरबु ने उसे पहन के आने के लिए कहा था...
कमली अपने पीछे एक पत्र छोड़ के गयी थी..जिस पर आँसुओ के बूँद के निशान के साथ साथ धुँधली स्याही से कुछ लिखा हुआ था...
"माफ़ करना मेजर साहब ये पगली कमली इस बार आपकी इस "मौन की भाषा" को समझ न पाई...वो आ रही है आपके ही पास...सदा सदा के लिए..हमेशा हमेशा के लिये...
कुछ प्रेम कथाओं के पूर्ण होने के लिए शायद जीवन कम पड़ जाते हैं..
विशाल सिंह