मेघ उड़ि-उड़ि जाला कगरी से

Update: 2017-06-27 13:05 GMT
मेघ उड़ि-उड़ि जाला कगरी से
आरे रोकऽ हो पवन देव जबरी से

काहें उधियाइल जालऽ रुकि जइतऽ गँऊवा
नचिहन स गइहन स ले ले तोहार नँउवा
पसु पछी नर नारि नगरी के 
मेघ उड़ि.... 

चप-चप देह करे टन-टन कपरा
खर सेवर भइल एसी कूलर के असरा
देहि चनचनात बा अम्हउरी से
मेघ.... 

बन झाँग पात कुल सगरी कटाइल
खेत खरिहान घासघूस बा फूँकाइल
हरियर खियावल जाता जोन्हरी से
मेघ... 

कहलन मेघ बर काका केने बाड़ें 
पीपर बो भउजी इमली केने बाड़ी का रे
महुआ संघतिया ऊ नीबकउड़ी के
मेघ जइहन काहें नाहिं कगरी से.... 

पहिले दुआर का घर खुलल रहे 
जेने जेने बूनी पड़े लोग सुतल रहे 
झूमर के तान पुरबी कजरी से 
मेघ सुनत नइखन गान झूगि झोपड़ी के.....

नमस्कार! 
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश

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