जात की क्या बात करते हो साहब , करनी ही है तो मनुष्यता की करो ना । इंसान से बढकर जात थोड़े हो जाएगा जो आप उसे एक सिरे से बाँध देते हो । हर जात में मनुष्य हैं लेकिन मनुष्यता का पता विरले ही किसी जात वाले इंसान में मिलता है , चाहे वो ब्राह्मण हो , क्षत्रिय हो , वैश्य हो या फिर शूद्र हो । सब अपना पोस्टर लिए फिरते हैं कि मैं अमुक जाति का हूँ । महाशय पहले इंसान तो बन जाईए , आपके जात का पता आपके इंसानियत से ही हो जाएगा ।
मेरे गाँव में एक राय जी हैं , द्वापर युगी भाषा में कहें तो ग्वाला हैं और नाम उनका राजा है । तकरीबन यही कोई 86 वर्ष उम्र होगी उनकी लेकिन दिख जाने पर प्रणाम वो हमको भी करते हैं जो कि मेरे लिए शर्म की बात है कि कोई इतने उम्र का आदमी हमको प्रणाम करे और जवाब में मैं भी उनके प्रणाम का जवाब हाथ जोड़कर ही देता हूँ । हालाँकि मैंने उन्हें कई बार टोका है ऐसा ना करने के लिए लेकिन वो हर बार सुनकर भी अपनी आदत नही छोड़ते और ऐसा वो किसी के दबाव में या डर से नही करते बल्कि ये उनका स्वभाव है और उनका यही स्वभाव उनको मेरे पूरे गाँव में आदर का पात्र बनाता है । गाँव की बूढी महिलायें उनको राजा जी कह के बुलाती हैं और पास में बैठै उनके पति ये सुनकर जल जाते हैं क्योंकि पत्नियों ने कभी इतने आदर से अपने पतियों को राजाजी कह के नही बुलाया और राजा राय उन सारे पतियों को चिढाते भी हैं इस बात से ।
आज भी उतनी उम्र हो जाने के बावजूद , गाँव में जब किसी के यहाँ गाय जब बछड़े को जन्म देती है तो पहले दूध दूहने के लिए राजा जी को ही बुलाया जाता है और जिस प्रकार घर आए मेहमान को एक धोती और एक सौ इक्यावन रूपये विदाई दी जाती है ठीक वैसे ही इनकी भी विदाई होती है , दूध ले जाएँ वो अलग से । गाँव के हर बच्चे , नौजवान , बूढे सबों से उनका आत्मीय लगाव है । कोई उन्हें भाई कहता है , कोई चाचा और कोई बाबा । मैं खुद बाबा कहता हूँ लेकिन जब प्रणाम करते हैं तो शर्म से झूक जाता हूँ । इंसान ऐसे होते हैं महाशय जो किसी को अपने तेज से , अपने आदर के किरणों से कभी अपनी ओर आँख उठाकर देखने ना दें । कोई इन्हे आँख दिखा दे , इतनी किसी में हिम्मत नही । रही बात जाति की तो शर्त लगाकर कहता हूँ , किसी बाहरी आदमी या गाँव में किसी के यहाँ आए रिश्तेदार ने भी आजतक इनसे इनकी जाति नही पूछी जबकि ये सबों से बतिया लेते हैं । कुछ गाँव वाले लोग इन्हें अहिर भी कहते हैं लेकिन ना इन्होनें कुछ कहा और ना कभी बुरा माना । एकबार मैनें पूछा भी कि लोग आपको अहिर कहते हैं तो बुरा नही लगता तो उन्होनें बड़ा खूबसूरत जवाब दिया कि लोग आपको ब्राह्मण कहते हैं तो आपको बुरा लगता है क्या । उनके इस जवाब पर नतमस्तक हो गया मै
दुसरा वाकया मैं अपनी सुनाता हूँ । पिछले महिने 7 मई को आलोक पाण्डेय के सुपुत्र का जनेव संस्कार था जिसमें मैं भी आमंत्रित था । बलिया स्टेशन पर उतरकर जब मैं रेलवे ढाला के पास पहुँचा तो एक रिक्शेवाले से वीर कुँवर सिंह चौराहे का रास्ता पूछा तो उसने बताया और कहा कि पच्चीस रूपये लगेंगे , चलिए छोड़ दूँ । मैनें उस रिक्शेवाले को बीस रूपये दिए और कहा कि ये आप रख लो , मेरा क्या मैं पैदल ही चला जाऊँगा । पता है साहब मैनें ऐसा क्यों किया , क्योंकि वो रिक्शेवाला मेरे दादाजी के उम्र का था और हाँफ रहा था । उसके रिक्शे पर यदि मैं बैठकर जाता और उसे उसकी बताई हुई मजदूरी भी देता ना तब भी शायद जिन्दगी में एक बोझ रह ही जाता । जब मैं उसे पैसे देकर आगे बढने लगा तो मेरे सर पर हाथ रखकर उसने बोला , भगवान तुम्हे हर संकट से बचाए और तुम्हारी सारी इच्छाएँ पूरी हों । मैं हाथ जोड़कर आगे बढ चला और यहाँ मैनें उस रिक्शेवाले से उसकी जाति नही पूछी ।
खैर मेरे कहने भर से ना तो इसमें कोई परिवर्तन होगा और ना ही कोई किसी के प्रति अपने मन में जात-पात के प्रति पनपती हीन भावना को खत्म ही करेगा । यदि एक भी प्राणी अपने आप पर गर्व करे और सबके साथ राजा राय के जैसा मिलकर रहे तो वो जाति क्या , समाज में भी सर्वश्रेष्ठ होगा लेकिन ये कहाँ संभव है श्रीमान । हमारे यहाँ तो एक जाति वाले को उसकी जात के नाम से बुला दो तो केस बन जाता है और उसे इसके लिए रक्षण के साथ संरक्षण भी मिलता है । जाति से ऊपर उठने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है इसी संरक्षण का खत्म होना क्योंकि जिसे ये भिल रहा है वो अपने इसी हथियार के बूते कमजोर और निरीह बन जाएगा । उसे इसका घमंड तो होगा लेकिन ये घमंड उसे खोखला कर देगा और शूद्र के अलावा ये तीनों वर्ण उसे उसी निगाह से देखेंगे जिस निगाह से आज तक देखते आयें हैं । ऐसी मेरी घोषणा नही है लेकिन मानना जरूर है कि ऐसा ही होता रहेगा क्योंकि मैं रोज देख रहा हूँ ।
आपका ही
प्रीतम पाण्डेय सांकृत