दोपहर का समय है, मैं यूँ ही पड़े पड़े जनकल्याण की सोच रहा हूँ। कुरता पहनते ही मेरे अंदर जनकल्याण की भावना हिलोर मारने लगती है, मन करता है कि किसी भी तरह इस जनता का कल्याण कर दूँ। पर शर्ट पहनते ही मेरी यह भावना उसी तरह गायब हो जाती है, जिस तरह सरकार बदलते ही पिछली सरकार के भ्रष्टाचार के किस्से गायब हो जाते हैं।
मैं अभी जनकल्याण के लिए बेचैनी में ही हूँ कि मोबाईल बज उठता है। मैं खीज उठा हूँ, कौन है यह व्यक्ति जो मेरी जनकल्याण की सोच में बाधक बन रहा है। मैं तनिक गुस्से में ही फोन उठाता हूँ, तो उधर से एक मधुर नारी स्वर सुनाई देता है- हेलो
मुझे लगता है, जरूर मेरे विद्यालय के किसी बच्चे की माँ होगी, जो अपने बच्चे की बदमासी के लिए मुझे झाड़ सुनाएगी। मैं मेहरा कर कहता हूँ- जी बोला जाय।
उधर से जवाब मिलता है- सर्वेश सर,मैं Rekha Malhotra बोल रही हूँ।
मैं उछल पड़ा हूँ। आज पहली बार किसी महिला ने फोन किया है, अन्यथा अब तक छोटे भाई ही करते रहे हैं। दुष्ट बात शुरू करते समय कहते हैं- भइया, आप गज़ब लिखते हो, ये लिखते हो वो लिखते हो। पर बात ख़त्म करते समय जरूर कहते हैं- भइया सच सच बताना, भउजी आप को रोज थुरतीं हैं? अब मैं क्या बताऊँ दुष्टों को....
पर आज मेरा सितारा बुलंदी पर है। वे कहतीं हैं- सर्वेश सर, आप बहुत अच्छा लिखते हैं।
मैं हवा में हूँ, पर झूठ मुठ की औपचारिकता के लिए कह उठता हूँ- हें हें हें हें ये तो आपका बड़प्पन है, बरना मैं क्या....
वे कहती हैं- सर्वेश सर, आप बड़े अच्छे कवि हैं, आपके जैसा जनवादी कवि ही...
मैं चिहुंक गया हूँ। मैम मुझे अच्छा कवि मत कहिये। इस देश में अच्छे कवियों की बड़ी दुर्गति होती है। अदम गोंडवी जैसे धुरन्धर जब मरते हैं तो बच्चों के लिए बारह लाख का कर्ज और सारी जमीनों को रेहन पर छोड़ कर जाते हैं। मुझे अपनी दुर्गत नहीं करानी, मुझे अच्छा कवि न कहिये।
वे खिलखिला कर कहती हैं- कोई बात नहीं, आप बड़े अच्छे लेखक हैं सर्वेश सर।
मैं चीख पड़ा हूँ- नहीं... मुझे अच्छा लेखक भी न कहिये मैम। देश ने प्रेमचंद जी जैसे लेखक को भुखमरी झेलते देखा है। लोगों ने उनके फ़टे जूते देखे हैं। मैं फ़टे जूतों में जीना नहीं चाहता, मुझे एडिडास की चाह है। मुझे अच्छा लेखक न कहिये।
वे शायद झुंझला गयी हैं। कहती हैं- कोई बात नहीं सर। आप बड़े अच्छे शिक्षक तो होंगे ही..
मैं और तेजी से चीख पड़ा हूँ- मैम मुझे शिक्षक न कहिये, मुझे लज्जा आती है। बिहार के यशश्वी शिक्षा मंत्री ने दस दिन पहले ही कहा है- शिक्षक सरकार के ऊपर बोझ हैं। आप ही बताइये मैम, मेरे जैसा आदमी; जिसके पास कोई बवाली खर्च नहीं, न मैं पान,बीड़ी,खैनी खाता हूं, न कोई नशा पताई है, यहां तक कि चाय भी तभी मिलती है जब अधिक बन गयी हो, मैं भला किस पर बोझ हो सकता हूँ? मैं बोझ नहीं, मुझे शिक्षक न कहिये।
उनका गुस्सा बढ़ गया है। वे चिढ़ कर कहती हैं- आप गधे हैं।
मैं कहता हूँ- अब सही कहा मैम। गधा तो मैं लोकतंत्र में आम आदमी के रूप में जन्म लेने के साथ ही हो गया था। यही मेरी असली पहचान है। और सुनाइए, क्या हाल चाल हैं?
वे कहतीं हैं- गड्ढे में गया हाल चाल, मुझे आपसे बात नहीं करनी।
इसी के साथ फोन कट गया है। मैं सोच रहा हूँ, मैंने ऐसा क्या गलत कह दिया?
पता नहीं। शायद महिलाएं होती ही झगड़ालू हैं।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।