'शिक्षण कार्य सम्मान एवं पवित्र कार्य है'-यही सोचकर उत्तर प्रदेश में मैंने शिक्षामित्र का फार्म भरा । मेरिट लिस्ट में दूसरे स्थान पर अपना नाम देखकर मैंने हनुमान जी के मंदिर में एक किलो लड्डू भी चढाया । मेरी नियुक्ति बगल के ही झारकाटहा नामक गांव में हो गयी ।जिस दिन मैं विद्यालय ज्वॉइन करने जाने वाला था उस दिन मां ने मेरी आरती उतारी और कुछ धीमे स्वर में बुदबुदाते हुए बोली -हे !भगवान मेरे बेटे को बुरी नजर से बचाईयेगा ।"
पापा ने बोला-" बेटा तुम बहुत भाग्यशाली हो कि आज गुरू पूर्णिमा के दिन ही विद्यालय ज्वॉइन करने जा रहे हो ।तुम्हे भगवान करे गुरू दक्षिणा भी मिले ।"
विद्यालय पहुंचा तो मुझे देखकर विद्यालय परिवार में खुशियों का लहर दौड़ गया।
प्रधानाध्यापक ने मुझे वर्ग अष्टम में जाकर प्रथम पीरियड ही पढ़ाने को कहा ।चूंकि मेरा शिक्षक के रूप में प्रथम दिन था तो मैंने सभी बच्चों का परिचय प्राप्त कर उनकी मानसिक योग्यता के परख के लिए एक विद्यार्थी को उठाकर ए बी सी डी पूछा ।
मैं -"चलो ए बी सी डी सुनाओ ।"
रामू -"बड़ी वाली सुनाउं कि छोटी वाली ।"
इतना सुनते ही मैं सोच में पड़ गया कि आज तक तो मैं लिखावट मे ही बडी या छोटी ए बी सी डी में भिन्नता जानता था मगर पढ़ने में भी? ????? फिर मेरा दूसरा प्रश्न था
मैं - "पहले छोटी वाली सुनाओ ।"
रामू बहुत ही धीमे स्वर में ए बी सी डी सुनाया ।
फिर मैंने उससे बड़ी वाली सुनाने को बोला तब वह उच्च स्वर में चिल्ला चिल्ला कर सुनाने लगा ।
गुस्से में आकर मैने रामू को दो -चार छड़ी दे दिया ।उसके बाद रामू मुझे गाली देता हुआ अपने घर के तरफ भागा एवं अपने पहलवान टाईप चाचा के साद दो मिनट के अंदर ही विद्यालय पहुंचा।
"हे हो रे मास्टरवा! काहे रामूवा के मार दिहले ह "।
इससे पहले की मैं अपनी सफाई में कुछ कहूँ मुझे पटककर वह मेरे सीने पे चढ़ गया।मेरी साँसे अटक गयीं ।बड़ी मशक्कत से स्टाफ के लोगो ने उस दैत्याकार रामू के चाचा के चुंगल से मुझे मुक्त कराया ।
आज भी जब पूरूवा हवा बहता है तो सीने में दर्द उभरता है एवं रामू के चाचा के द्वारा दिया गया गुरु दक्षिणा याद आता है ।
नीरज मिश्रा
बलिया ।