अन टच एबिल्टी

Update: 2017-10-10 02:45 GMT
गाँव सामाजिक सच्चाई के अनुपम उदाहरण रहे हैं। यहाँ सिद्धांत की नहीं प्रयोग की कक्षाएं कभी यत्र तत्र सर्वत्र चला करती थीं, और जबतक सिनेमा का असर गांवों में नहीं हुआ था तबतक प्रेम भी यहाँ प्रयोग, सहयोग, उपभोग, उपयोगादि पर ही आधारित था। प्रेम और वासना जैसे विषय जब जोर शोर से उठने लगे तो गांवों में भी प्रेम का सैद्धांतिक स्वरूप का प्रकटीकरण होने लगा। जैसे चिट्ठी देना, गुलाब उलाब देना, पहले विवाह आदि की शर्तें रखना आदि। 
सर्वेश तिवारी ने उस नीलोत्पला श्यामा का परिचय जब पार्वती भाभी से पूछा जो उनके ही हरित क्रांति हल चालक भोला की भगाई भार्या थीं ने बताया कि वह उनकी बहन हैं और सद्यःप्रसूता उन्हें सम्भालने आयीं हैं तो इनके श्रीमुख खुले रह गए। नाम क्या है उनका? 
नीरज बोला- मजनू 
आशुतोष बोला- भक्क उनका नाम है चमेली।
सीड बोला- हीरा
तो असित बोले- जूलिया 
पार्वती बोली जवानी का नाम जाति नहीं होता है बबुआजी जे के जौन रूचे आपना मन माफिक नाम रख लेता है, कुछु आपो रख लीजिए आ नीरज मिसिर को देखिए की बांग्ला में पुलिंग नहीं होता है जइसे ओइसहिं इनका भाखा में स्त्रीलिंग नहीं होता है, मजनू? जब आलोक पाड़े पर कहानी लिख लिख के आप आपन कलम चमकाएंगे तो ए उसी का नकल क क के आपना बार का रूसी छोड़ाएंगे। 
आशुतोष सिंह को देखिए फेल जवानी को तेल लगा के गमकाना चाहते हैं। 
तो ई सीड बाबू इश्क़ के दुश्मन नरेंदर पाड़े के खिलाफ मूरचा खोले हैं हीरा-ठाकुर-हीरा-ठाकुर टाइलेट एक लभ इस्टोरी।
असित मिसिर हिंदी के मास्टर हैं परेम के बीसलेषक, इनको नाचने वालिन से बड़ा खुल के पियार आता है, बेमहनते मजा। सिद्धांत में त गजबे जो हैं कि सो हइए हैं प्रेटिकल में अटक जाते हैं, जो आदमी चढ़ी देख के भी जवानी सोएगा ऊ जूलिया जूलिया ही न रटेगा। रटने से ऊ राम थोड़े है कि मिल जाएगी काम आ चाम मेहनत आ बदनामी से ही चमकता है बबुआ जी। 
तभी वह आयी चुहल करते चटकीले चंचल चक्षुओं की चटक चासनी चटकाते, चटखारते हुए बोली चटनी पीस दी हूँ चार की धनिया, लहसुन, मिर्चा, अँचार की इस अदरख की गाँठ को भी कूट दूँ कि नीबुआ में मिला के घाम में डालने के लिए छोड़ दूँ मेरी पारो? 
इनसे ही पूछ लो, पंडित हैं धूप घाम पानी पियास, मेघ बतास के बारे में इनसे अच्छा भला कौन जानता होगा? 
आलोक पाण्डेय, हम त उनके छोट भाई हैं।
त गोड़ लागिए बबुआ जी हमको! 
जइसे निहुरे सर्वेश शरीर के विशेष अंग से अइसा जोर का ठुमका मारा कि कमर के बल गिरे धड़ाम, गिरे हुए पूछे सर्वेश कि ए जी एक ठो सवाल पूछते हैं कि आप मारी काहें? 
वह बोली मउगन के सभा में मरद का नाम काहे लिए, नरेंदर का लिए होते ऊ बनारस वाला तीर पाठी सर्वेश का लिए होते उनका नाम काहे लिए? 
आशुतोष उधर से लपका हुआ आया सर्वेश के उठाया और बोला कि जाने दीजिए लम्पट है आग कहीं नहीं मिल रहा है तनि ई बीड़ी आपना ओठ प रख के दे दीजिए। 
सर्वेश चीख पड़ा.... 
छामा छाछामामा छमा...एगो आखिरी कोश्चन पूछते हैं कि आपका ई चमकदार सलेटी रंग का राज का है? 
वह बोली कि आलोक पाण्डेय इतना गोर कैसे हैं.... 
सौरभ पान कार्ड में ले के खड़े... खाते में कितने लात पड़े गिन रहे हैं........ 

आलोक पाण्डेय 
बलिया उत्तरप्रदेश

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