लघुकथा धनतेरस

Update: 2017-10-17 08:15 GMT
"पापा ! आपको याद है न! 
-"क्या ?"

बेटी,स्नेहा के प्रश्न के उत्तर को जानते हुए भी अनजान बनने का असफल प्रयास करते हुए भूषण ने अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान के साथ प्रश्नवाचक भाव से अपनी पुत्री के तरफ देखकर बस एक शब्द में कहा ।

स्नेहा -" ओहो पापा! छः महीने पहले ही तो आपने मुझसे मेरे लिए इस धनतेरस पर साईकिल खरीदने के लिए कहा था ।"

भूषण-"अरे हां ! याद आ गया।लेकिन साॅरी बेटा ।मुझे तीन महीने से वेतन नहीं मिला है ।"

स्नेहा-"पापा !आप कैसी नौकरी करते हैं?एक मेरी सहेली है "दिव्या" जो संत पाॅल स्कूल मे पढती है,उसके पापा ने आज स्कूटी खरीदकर उसको गिफ्ट किया है ।"

अब भूषण अपनी प्यारी बेटी,स्नेहा को कैसे समझाये कि उसकी सहेली के पिता डाॅक्टर हैं जिनकी प्रतिदिन की आमदनी बीस हजार रुपया है ।और एक वह है जो शिक्षा मित्र है जिसकी तनख्वाह ही दस हजार है और वो भी कभी तीन माह बाद तो कभी छः माह बाद मिलता है ।

नीरज मिश्रा 
बलिया (उत्तर प्रदेश )।

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