ताजमहल... बस यूं ही...

Update: 2017-10-17 12:26 GMT
३१ अगस्त १६५९ ई.
आगरा के शाहबुर्ज में कैद शाहजहाँ रोज की तरह झरोखे से ताजमहल को निहार रहा था। ताजमहल उसके लिए एक महल से ज्यादा था। उसे ताजमहल की दीवारों में वह अपूर्व सुंदरी दिखाई देती थी, जो बीस वर्ष पहले उसके पन्द्रहवें बच्चे को जन्म देते समय खुदा को प्यारी हो गयी थी। कैद होने के बाद से शाहजहाँ ने औरंगजेब को सौ बार खबर भिजवाई थी, कि उसे शाहबुर्ज की जगह ताजमहल में ही कैद किया जाय ताकि वह मुमताज की कब्र के पास बैठ सके। पर औरंगजेब तो औरंगजेब था न...
ताजमहल को एकटक निहारते शाह की तन्द्रा सिपाही से स्वर से भंग हुई। कैदी, बादशाह आलमगीर ने तुम्हारे लिए तोहफ़ा भेजा है।
बूढ़े शाह ने आश्चर्यचकित हो कर देखा, सिपाही के हाथ में मलमल से ढकी एक थाल थी। शाह ने कांपते हाथों से थाल के ऊपर का मलमल हटाया, और थाल में नजर पड़ते ही चीख कर बेहोश हो गया।
थाल में शाहजहाँ के सबसे बड़े और सबसे प्रिय बेटे दारा शिकोह का कटा हुआ सर रखा था। दुनिया के समस्त धर्मों के ग्रंथों का ज्ञाता, और उपनिषदों का भक्त दारा शिकोह एक संत शासक था, जिसे दिल्ली की आवाम ने अपने सर आंखों पर बैठाया था।
उत्तराधिकार युद्ध में हार कर फारस की ओर भागते संत दारा शिकोह को अफगानिस्तान के हिन्दू सामंत मलिक जीवन ने जब धोखे से पकड़ कर क्रूर औरंगजेब को सौंप दिया, तो औरंगजेब ने फ़टे कपड़ों में घिनौने हाथी पर बैठा कर दारा शिकोह को दिल्ली की सड़कों पर घुमवाया। उसके बाद उसका सर काट कर शाहजहाँ के पास उसे चिढ़ाने के लिए भेजा।
गद्दार मलिक जीवन धर्म बदल कर बख्तियार खान बना, और बदले में उसे दादर की सामंती मिली।
औरंगजेब के आदेश पर उसी शाहबुर्ज में शाहजहाँ के सामने दारा के सर को ख़ंजर की नोक में फंसाया गया और ताजमहल से दिल्ली तक तीन दिन तक कटे सर का जुलूस घुमाया जाता रहा।
इसके बाद शाहजहाँ जब भी ताजमहल की ओर देखता तो उसे ताजमहल की मीनारों पर दारा का कटा सर दिखाई देता।
धीरे धीरे शाहजहाँ को ताजमहल से घृणा हो गयी। अब वह ताजमहल की ओर नहीं देखता था। उसे मुमताज से भी घृणा हो गयी थी, क्योंकि उसे मर्मान्तक पीड़ा देने वाला औरंगजेब मुमताज की ही तीसरी सन्तान था।
22 जनवरी 1662 को जब शाह मरा, तो औरंगजेब ने उसे उसी ताजमहल में मुमताज की कब्र के पास कुछ हिजड़ों से दफ़न करवा दिया।

चमकते ताजमहल की दीवारें मसाले से नहीं, घृणा से जोड़ी गयी हैं। फिर भी यह इमारत बहुत खूबसूरत है, इसमें कोई शक नहीं।

अंत में, भाजपा वाले संगीत सोम से- बेटा! "पाद के महटीआवन खोंखी" मत बतियाओ, बात राममंदिर की हुई थी।
एक बात और- जब पिछवाड़ा न हो, तो बेल(श्रीफल) नहीं लीलते, बरना माफ़ी मांगनो पड़ जातो हैगो..

श्रीमुख बाबा गोपालगंज वाले

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