दियरी -बाती के चारो ओर उजियार रहे । सभ लइका -लइकी पड़ाका फुलझरी छोड़े में लागल रहलन स । बिकास के इया सबेरहीं उनका के बीस गो रुपिया दे के धिरा देले रहली -"बड़्का बम मत किनिहे बबुआ ...खाली फुलझड़ी आ देवलिया पड़ाका किन लिहे ।'' राति खान अपना इया के गोड़ दबावत बिकास पूछलन "इयो रे छठ ना करबे? "
"छठ का करे के बा बबुआ ! निरोग होके तहार बाबूजी आ जइहन त सतनारायन भगवान के कथा कहवाइब " इया कहली ।
सुमति फुआ देवसाखो के समझावत कहली " लइका के माई के छठ त करहीं के चाहीं ।तहरा त नात नतकुर भइल..काहें गोड़ खिंचतारुs...?"
"का करीं ए फुआ.! अरघ देबे खातिर एगो सिपुलियो किने खातिर पइसा नइखे ।सभ पइसा बबुआ के बेमारी में लाग गइल । पतोह ओहिजा बिया ।छठी माई के किरपा से हमार बबुआ निरोग हो जइहन त अगिला साल सास-पतोह दुनू आदमी छठ करब सन ।"
छठ घाटे जाये के बेरा हो गइल रहे । बिकास हुलसत कहलन -
"चलु इया देर होता ! हम सभ तइयार क देले बानी ।"
देवसाखो अँगना में देखली-' एगो सिपुली आ ओमें पाँच गो फल धइल बा ।'
उनका आँख से दू बूंद लोर ढरक गइल आ मन परे लागल कि दियरी बाती के उनकरा दुआर पर पड़ाका के आवाज ना सुनाइल रहे ।
संजय सिंह
सिवान