एक कार बड़ी तेजी से सिग्नल तोड़कर गुजरती है । ट्रैफिक हवलदार रुकने का इशारा करता है लेकिन रविवार के दिन सूनी सड़क का फायदा उठाकर चालक बच निकलता है । बगल में खड़े एक सज्जन ने बड़ी सर्द आह भरते हुये कहा - "ये सब छिछोरपंती बस इंडिया में है भाई साब । विदेश में तो सिग्नल जम्प किया नही कि मशीन नम्बर देखकर चालान काटकर घर भेज देती है । ल्यो बेटा ! और चलाओ मोटरगाड़ी!"
हमने कहा - "आप साब यूरोप की बात बता रहे हो। लगता है काफी दिन रहे हैं उधर !"
"हां यही कोई चार-पांच साल । ज्यादा दिन रहे नही । हमने कहा अपना लखनऊवे सही है , मुंह मराये यूरोप-फुरोप!" उन्होंने चूना काटकर बताया ।
"ऑस्ट्रेलिया नही गये क्या ? बगले में तो पड़ता है!"
"उधर तो नही गये । कोई खास चीज हो तो बताइये।"
हमने अपना पान मुंह मे दबाया और कहा - "ऑस्ट्रेलिया में तो चालान ही नही बल्कि आपके एकाउंट में से पइसा भी कट जाता है !"
"और अगर अकॉउंट न हुआ तो?"
"तो जेब से पैसवा खुद-ब-खुद निकलकर , चालान भर का कटकर , बकिया चेंज खुद आकर जेब में रखा जाता है । फुल ऑटोमैटिक देस है । हम तो कई साल रहे ... लेकिन अपना गोरखपुरवे सही है!"
अतुल शुक्ला
गोरखपुर