खिचड़ी की मृदुलता और तरलता ....

Update: 2017-11-03 01:16 GMT
कोई व्यक्ति जब दस्त से परेशान हो...शरीर से पानी सूखकर इस तरह से गायब हो जाये कि शरीर छुहारे की शक्ल में आ जाये। पैर जमीन पर रखते ही हलहल कांपने लगे। आँतें कुछ भी लेने से बगावत कर दे। यदि आप जबरदस्ती, उसकी जेब में ठूंस आयें तो वह आपको दो मिनट में ही गुस्लखाने का रास्ता दिखा दे। जब एक चम्मच भी हलक से निगलने से पहले आपको दूसरा ख्याल परेशान करने लगे। कमजोरी इस कदर हावी हो जाये कि एक आदमी को कन्धे में हाथ लगाकर गुस्लखाने पहुंचाना पड़े। तो ऐसे वक्त पर अपने याद आते हैं। सच में वही आपका सच्चा साथी है जो आपकी कमजोरी में भी साथ निभाये। आपको ताकत और हिम्मत दे।
मित्रों! यही वह संक्रमण काल है जब सारे व्यंजन आँतों द्वारा नकार दिये जाते हैं तब खिचड़ी को बुलाया जाता है। खिचड़ी जब पककर आतीं हैं तो अपने व्यक्तित्व में इतनी मृदुलता और तरलता लेकर आतीं हैं कि जुबान अभी कुछ समझे कि उससे पहले वो हलक पार करके आँतों तक पहुंच जातीं हैं और अन्दर जाकर आँतो से धीरे से कहतीं हैं कि " दीदी अबकी हम आये हैं हम" आतें कुछ देर तो नानुकुर करतीं हैं लेकिन खिचड़ी की मृदुलता से हार कर पटरी पर आ जाती है और आप जनाब कहते है कि " खिचड़ी मरीजों का भोजन है" वो आपको खटिया और गुस्लखाना से उठाकर आदमी बना देती है और आप उसी को कमज़ोर साबित करते हैं। यह एहसास फरामोशी है भाई!
कोई भी उपयोगी वस्तु जो न्यूनतम श्रम, ,साधन, स्थान एवं व्यय में भी आपको अधिकतम गुणवत्ता प्रदान करे तो उसका सम्मान अपेक्षित है। दो विभिन्न गुण-धर्मों के खाद्य पदार्थों का ऐसा संयोजन की दस मिनट में उनकी आत्मा एक दूसरे में विलीन हो जाये.... दोनों अपना मूल रंग खोकर एक दूसरे में रंगने को बेचैन रहे तब जाकर बनती है खिचड़ी। इसलिए जब दो-तीन लोग... एकान्त में नजदीकी बनाकर कुछ गोपनीय वार्ता करते हैं तो लोगबाग पूछते हैं कि " क्या खिचड़ी पक रही है" क्योंकि खिचड़ी दो विचारों का एक सामांगी मिश्रण है। कुछ लोगों को खिचड़ी पकने में कुछ साजिश की भी बू आती है लेकिन वास्तव में खिचड़ी गरिष्ठ नहीं है, यह मृदु है, सुपाच्य है.... निष्ठुरता तो इसमें छूकर नहीं है, तरलता का पर्याय है। मुख के दंत विभाग से बिना जांच के ग्रीवा में प्रवेश की अहर्ता और योग्यता रखने वाली बिरली है अपनी खिचड़ी। इसलिए इसे कमज़ोर न समझिए! यह आपके उस वक्त पर खड़ी होती है जब आपके पास वक्त कम होता है या फिर मामला सख्त कम होता है।

रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर

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