मतदान कर्मी, जब मतदान का बक्सा और बाराती जब गमछा लेकर बस में सवार होता हैं तो यह लगभग तय है कि दोनों को ठहरना किसी प्रायमरी विद्यालय में ही है। मतदान कर्मी के मतदेय स्थल और बारात के जनवासे में चिंता भी लगभग एक ही होती है, कि मालिक.. सोने के लिये खटिया शौच के लिये डिब्बा और कमबख्त मच्छरों से निजात मिल जाये तो समझो की गंगा नहा लिये।
खैर चलिये,आपको बाबू दुर्गेश की बारात टहला लावें। हां तो दुर्गेश की बारात-बस जब पगडंडी पकड़ कर प्रायमरी विद्यालय पर पहुंचती है तो वहाँ विद्यालय के सामने, तीस-चालीस फोल्डिंग चारपाईयां अंग प्रदर्शन की मुद्रा में लेंटी थीं क्योंकि शामियाना के गद्दे और चादरें आज तक कभी चारपाईयों के सिर से पांव तक ढक न पाये तो दुर्गेश कौन तुर्रम खां हैं। वैसे गद्दों ने पूरे लगन जितने जुल्म बर्दाश्त किये हैं कोई भी सिकुड़ जायेगा। जूता, पालिश से लेकर कुक्कुर मूत्र तक पनीर की सब्जी से वमन तक सब पीकर भी गद्दा उतनी ही गर्मजोशी से बिछा है तो यह मामूली बात है क्या ? और हाँ उसकी पवित्रता हर बार की तरह इस बार भी वैसे ही प्रमाणित जैसे नोट और सिक्के।
चारपाइयों के नीचे पूरे ग्राम पंचायत के कुक्कुर फौज, पीठ झुकाकर इस खटिया से उस खटिया को पार कर रहें हैं जैसे कोई बाइक चालक, चकर-बकर ट्रेन को देखकर बंद समपार फाटक पार कर रहा हो वैसे ही कुत्ते भी दोने चाटते वक्त बारातियों के जूते पर निगाह बनाये हुए हैं कि कब, कोई बाराती लात-जूता न चला दे। वैसे भी दोपहर से अनगिनत लात और गालियों ने इन्हें अतिरिक्त चौकन्ना बना दिया है।
एक किनारे डीजल और धूल से सना जनरेटर जिसकी कराह को सुनकर पूरा सिवान पीड़ित है। पिछले एक घंटे में तीन बार उसकी दम तोड़ती आवाज़, ग्लूकोज चढ़ाने का संकेत दे चुकी है
विद्यालय के तीन कक्ष में एक कक्ष नर्तकी के सौन्दर्य और बैंड के साज के लिये आरक्षित है जिसमें खिड़कियों से झांक कर कुछ लौंडे नर्तकी के नर/मादा होने के भ्रम को को समझने का प्रयास कर रहें थे और अन्तोगत्वा उसको नर का प्रमाणपत्र देकर दूसरे जुगाड़ में निकल गये।
मुख्य कक्ष में बाबू दुर्गेश अपनी शेरवानी के सेटिंग में मशगूल, बड़का ब्रिफकेस पन्द्रह बार खोलते-बन्द करते और कुछ लड़के केवल इसी फिराक में हैं कि दुल्हा वाला परफ्यूम एक बार छिड़कने को मिल जाये तो जीवन सुगंधित हो जाये बस ! दुर्गेश की टाई की नॉट बनाने वाले मामा के लड़के का अलग रुतबा है तब से सात बार खोल-बांध चुका कभी टाई की नॉट समोसा बन जा रही तो टाई छोटी हो जा रही तो कभी टाई सूट से बड़ी हो जा रही तो नॉट पिद्दी सी हो जा रही, सही ताल-मेल बनी न पा रहा।
उधर दुर्गेश के बाबूजी सारा ध्यान उस सुटकेस पर लगाये बैंठें हैं जिसमें जेवर धरा है। चिंता है कि बरात के हूब में कहीँ कुछ खता-नगा हो गयी तो मुंह माहूर हो जायेगा। दुर्गेश के चार बरीस क भतीजा एतना थक के चूर हो गया कि बरात के खटिया पर शेरवानी और जूती पहिने बरात उठने के पहिले ही निन्नी करने लगा।
तीसरे कक्ष में दूल्हे के खास मेहमान राजनीति जोड़-तोड़ में उलझे पड़े हैं। लग रहा है कि दुर्गेश के बियाह से पहिले सरकार बना कर ही उठेंगे। मिठाई के डब्बे में लड्डू अभी उपेक्षित, कुर्सी के भीतर लोटरिया मार रहा है। दुर्गेश के फूफा शायद डायबिटीज के मरीज हैं क्योंकि नमकीन तो अपने खा गये लेकिन रसगुल्ला चुप्पे से नाती को खिला दिये। नाती अपना और उनका साट के कुल सात पीस भकोस चुका है। कह रहा है कि खाना खाने का मन नाहीं है।
बरात में कुछ नवधा, केवल एक विशेष रसायन को गटकने के लिये नमकीन, गिलास, पानी और एकान्त की तलाश में पिछले एक घंटे से जनवासे के इर्दगिर्द मडरा रहें हैं। दुल्हन का भाई जनवासे की जग दो बार खेत में शिनाख्त करके प्रायमरी स्कूल पर ला चुका। अगर अबकी गायब हुआ तो गरिया भी दे तो कोई आश्चर्य नहीं..
निद्रा प्रेमी रजाई और गद्दा जुटान में व्यस्त....रातो-रात पलायन वाले बोलिरो में अपने जगह फिट्ट करने के खातिर ड्राइवर को साहेब बना रहे हैं। गुटखा खिला रहें हैं।
और उधर बाबू दुर्गेश समझी नाहीं पा रहे कि शेरवानी क दुपट्टा आगे लटकाए कि गले में फेरा मार लें।
नृत्य प्रेमी, भोजपुरी, नागिन और भांगड़ा के हिसाब से बैंडवाले पर जोर बना रहे हैं।
अब दुर्गेश कार पर सवार,अगल-बगल बहिन-भौजाई कार के आगे दुर्गेश के यार दोस्त कमर तूर डांस कर रहें हैं। कई रुमाल नागिन बन कर डस रही हैं। बुजुर्ग, बैंड के आगे पियक्कड़ों पर लेक्चर झाड़ रहे हैं और लौंडे नागिन डांस में फुंफकार मार रहे हैं। शातिर खिलाड़ियों की निगाह अभी भी छत पर जमीं है और वह, यह बताने का प्रयास कर रहें हैं कि पूरे लुहेड़ों में वही एक मात्र शरीफजादे हैं। दुर्गेश के जीजा की शेरवानी और कैमरा यह बता रही है कि इ एही घर के पाहुन हैं और तनिक समझने में कोर-कसर बचेगी तो रात तक खिसिया कर कर बता देंगें कि हम दमाद हैं ऐ घर के.......
गांव के लड़के ऐही फिराक में रोड लाइट के किनारे चल रहें हैं कि पैसा लुटे तो लूट कर मेड़ पकड़ लें। गांव के गाय-भैंस पगहा तान के भौचक्का, खूंटा तूरने में जान झोंक रहें हैं।
सच्ची ! आज जीवन में पहिली बार दुर्गेश अपने को वीआईपी फील कर रहें हैं, काजर पोत के..... मस्त हैं, मगन हैं....
रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर