कुंदन बाबू बीए तृतीय वर्ष में प्रवेश के साथ बहुत मामलों में परिपक्व हुए लेकिन 'प्रेम और हृदय' जैसे विषयों पर उनकी तर्कशक्ति माध्यमिक स्तर की ही थी। प्रेम के मामले में आमने-सामने से धोखा खाने के बाद भी उनका एक सिद्धांत था कि असफल केवल प्रयास होता है प्रेम और व्यक्ति नहीं।
इस सत्र में जिस नये साथी के रूप में जिससे उनका सम्बन्ध प्रगाढ़ हुआ वो थे 'प० भाष्कर तिवारी'। भाष्कर तिवारी जी अपने नाम के सामने पण्डित लगाते तो नहीं थे लेकिन गांव जवार में उनके बाबाजी की पण्डिताई इतनी ख्यातिलब्ध थी कि भाष्कर तिवारी जी परिवार का यह आभूषण, मस्तक पर सजा कर चलते थे। दरअसल बचपन से ही प०भाष्कर तिवारी अपने बाबा ' स्व० प० सीताराम तिवारी जी के 'पिछलग्गू और मुंहलग्गू' दोनों थे। देखने में ऐसा लगता था कि प० भाष्कर अपने बाबाजी के प्रति बहुत समर्पित थे लेकिन वस्तु स्थित थोड़ी भिन्न थी... गांव में कथा, पूजा सम्बन्धी आयोजनों में उनके बाबा स्व० प० सीताराम तिवारी जी की कुछ दिवसों को छोड़कर पूरे वर्ष व्यस्तता रहती और स्वाभाविक रूप से उनके खान पान एवं दान-दक्षिणा की भी श्रेष्ठ व्यवस्था उनके जजमानों द्वारा सम्पन्न करायी जाती। बचपन से अपने बाबा जी का झोला लटकाकर एक सहयोगी के रूप में अपने बाबाजी के पथगामी बनें प० भाष्कर तिवारी। पारितोषिक के रूप में अपने बाबाजी के समानांतर ही पूड़ी, दही, मिष्ठान एवं दक्षिणा का कुछ अंश ग्रहण करते। मोटे तौर पर बाबा जी का सानिध्य.. आर्थिक, पौष्टिक एवं जिह्वा तृप्ति तीनों दृष्टिकोण से बहुत लाभकारी था। पूड़ी और दक्षिणा के साथ एक परोक्ष लाभ भी हुआ। बाबा जी के निरन्तर सानिध्य में प० भाष्कर तिवारी मंत्रोच्चार पर अधिकार बनाया और साथ ही साथ उनके वेशभूषा और आचरण में भी पण्डिताई संस्कारों ने अपनी पैठ बनाई। अपने बाबाजी के अनेक गुणों में प० भाष्कर तिवारी को, जो सबसे प्रभावित किया वो था उनके बाबा जी का ज्योतिष ज्ञान क्योंकि जजमानों द्वारा अपने भविष्य की चिंताओं को लेकर बोरा भर के प्रश्नों एवं उनके समाधानों को लेकर दादाजी की भविष्यवाणी के मध्य जो दिव्य वातावरण सृजित होता वह भाष्कर तिवारी को अचंभित और रोमांचित करने वाला था... वह बचपन से ही समझ चुके थे कि ज्योतिष ज्ञान वह विद्या है जिसके बल पर किसी को अपना चेला बनाया जा सके। हांलाकि उनके बाबा प० सीताराम तिवारी का ज्योतिष ज्ञान भी उच्चतर प्राथमिक स्तर का ही था लेकिन वह भी बंगाली दवाखाना की तरह सहज और सुलभ थे इसलिए काम भर के ग्राहक मिल ही जाते थे। कुल मिलाकर प० भाष्कर तिवारी को जो अपने अपने परम पूज्य बाबा के सानिध्य का लाभ हुआ वो था संस्कृतनिष्ठ भाषा, पण्डिताई वेशभूषा और ज्योतिष भावभंगिमा॥
कक्षा में अध्यापक समेत विद्यार्थी तक उनको अतिरिक्त सम्मान देते थे उनको पण्डित जी का सम्बोधन प्राप्त होता था। इन सब गुणों एवं आभूषणों के बावजूद प० भाष्कर तिवारी नये जमाने की प्रदूषित हवा से मुक्त नहीं थे युवावस्था की जितनी भी दुर्लभ आकांक्षाएं जन्म लेतीं हैं उन सब पर वह अधिकार करना चाहते थे।
महाविद्यालय में कुंदन बाबू के सबसे बड़े राजदार और उनकी भावनाओं को आग और पानी दोनों डालने वाले प० भाष्कर तिवारी और कुंदन बाबू में खूब छनती थी। प० भाष्कर तिवारी, कुंदन बाबू के प्रेम सम्बन्धी समस्याओं और जटिलताओं के निदान हेतु ज्योतिष उपाय ढूंढते एवं भविष्य में आने वाले अवसर के प्रति सचेत करते जैसे जिस कन्या का नाम अमुक वर्ण से शुरु होता है वो एक बेहतर प्रेमिका के रूप में आपके जीवन को खुशहाल करेगी या अमुक दिवस प्रेम आवेदन हेतु उचित नहीं.. दो दिन बाद 'इजहारे मुहब्बत'में स्वीकार का संभावना प्रबल बन रही है।
कुंदन बाबू बी०ए० द्वितीय वर्ष की कन्या को पिछले सात माह से लगातार अवगत करा रहे थे कि मैं आपके प्रेम का सबसे योग्य और अर्ह उम्मीदवार हूँ..लेकिन वह प्रेम की पुष्टि भी करना चाहते थे एवं डरते भी थे जैसे कोई मरीज डरकर शरीर की जांच न कराये कि कहीं कुछ "पॉजिटिव" न निकल आवे...
एक दिन चाय कैंटीन में चाय पीते हुए कुंदन बाबू प० भाष्कर तिवारी को तिरछी नजर से घूरकर पूछे कि " का पण्डित! तुम चाहते हो कि हम एही तरह घुटके मर जायें.. सात महिना में एक्को दिन कालेज गैप नहीं मारे भले अपने क्लास में न गये हों... अरे फलनिया एतना तो बूझ रही होगी कि हम अपना दिल हार चुके हैं उस पर..."
प० भाष्कर निष्ठुर भाव से अभी चाय की चुसकियाँ मार रहे थे ऐसा लगा जैसे मस्तिष्क विचार शून्य हो गया हो। तभी एक मिनट बाद पुनः कुंदन बाबू की वेदना मिश्रित स्वर गूंजा.. "का हुआ पण्डित! वैसे तो दुनिया भर की ज्योतिष भाखते हो और हम प्रेम में कराह रहें हैं तो तुम्हारा सब ज्योतिष कबूतर हो गया।"
प० भाष्कर चाय की अन्तिम घूंट सुड़क कर सीसे की गिलास मेज पर जोर से रखते हुए बोले "जाओ हाथ धोकर पूरब दिशा मुंह करके बईठो अभी बताते हैं कि का चीज हैं प० भाष्कर!'
कुंदन बाबू हाथ मुंह कुछ धोकर पालथी मारकर सूर्य की दिशा में बैठ गये और अपनी हथेली प० भाष्कर की हाथों में सौंप दिया। प० भाष्कर पहले तो दस मिनट हाथ की एक-एक रेखाओं का सूक्ष्मता से अवलोकन किये दस मिनट में आठ तरह की भावभंगिमा एवं गणितीय जोड़ घटाने के साथ एक लम्बी सांस छोड़ते हुए बोले
"बेटा कुंदन! दोनों तरफ बराबर आग सुलग रही है लेकिन दोनों लोग जुबान पर ताला मारे बईठे हो... अब वो समय आ गया है कि चुप न जाये... इजहार का वक्त आ चुका है कुंदन बाबू... खामोशी तोड़िये नहीं तो नदी राह भी बदलती हैं"
इजहार से पहले ही कुंदन बाबू का धड़कने चौकड़ी भरने लगीं हाथ में पसीने के साथ कम्पन का भी आंशिक प्रभाव आ गया। बेचारे एक हाथ से रूमाल निकालकर मुंह पोछते हुए पूछे... " पण्डित गड़बडाई नाहीं न"
प० भाष्कर गर्वित मुद्रा में शरीर तानते हुए गरजे " कुंदन इ केस गड़बड़या तो जीवन भर किसी का हाथ नहीं देखेंगे प० भाष्कर। पूरे पन्द्रह साल का ज्योतिष उड़ेल कर इस नतीजे पर पहुंचे हैं हम" फिर क्या दो मटर समोसा और स्पेशल चाय का आर्डर हुआ प० भाष्कर के लिये और समोसा मटर के बीच कल की रणनीति भी तय हुई एवं भविष्यवाणी सही होने के दशा में एक सेट सिल्क के कुर्ता सिलवाने का वादा पण्डित की गुरु दक्षिणा में।
रणनीति वाली रात, कुंदन बाबू...पूरी रात बेचैन होकर रजाई में वैसे ही करवट बदलते रहे जैसे कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ रहा हो। 'क्या कहेंगे!और कैसे कहेंगे! इसी उधेड़बुन में भोर हो गई।
सुबह सात बाल्टी पानी से स्नान के बाद सबसे सफेद बुशर्ट निकाली गई बिल्कुल बगुला की तरह 'उज्जर'
दिसम्बर की कोहरे में कुंदन बाबू फलानी के रास्ते में एक चाय की दुकान पर उसका राह जोहने लगे... दस मिनट बाद जब फलानी की लेडीज साईकिल खड़खड़ाई तो कुन्दन बाबू का पुर्जा-पुर्जा खड़खड़ा गया लेकिन ज्योतिष की ताकत को अपनी मुट्ठी में कसकर साईकिल का हैंडल थामकर अपने सात महीने भी भावनाओं को तीन शब्द में कसकर उड़ेल दिये...उधर फलानी भी सात माह से जिस भावनाओं का जहर घोंटकर बैठी थीं उसे उड़ेलने में भी केवल दो सेकेंड लगा। उनके मुंह से शब्द नहीं फूटे.... तेजाब की बोतल फूट गई.. कुंदन बाबू का पूरा जिस्म, प्रेम और भावनाएं सब एक साथ सुलगकर धुंआ देने लगीं। आये तो थे अपने कदमों में उम्मीद भरकर लेकिन लौटे...लड़खडाते, कांपते, गरीयाते.....दरअसल मोहतरमा प्रेम निवेदन के अस्वीकार करने का उतना कष्ट नहीं जितना उनके मुंख से निकले एक शब्द से था।
हार, अपमान और प्रहार ने ज्वर का रूप धर लिया। बेचारे सिर पर पचास ग्राम हिमगंगे तेल छापकर.. कम्बल तान लिये।
उधर प०भाष्कर को यह अंदेशा हो गया कि बम हाथ में फूट गया। बेचारे अपने व कुंदन के दूसरे प्रिय मित्र दिनेश की स्कूटर पर बैठकर कुंदन बाबू के घर पहुंचे। कुंदन के पिताजी बाहर बैठे थे उनको प्रमाण किया तो बोले "पता नहीं! कुंदनवा काहें बीमार पड़ गया सुबह तक ठीक था" तभी अम्मा बोलीं " भिन्नहीयां सात बाल्टी ठरत पानी से नहा कर निकलल रहलं होई नाहीं बोखार.."जब तक पिताजी भुनभुनाते, गरीयाते तब तक प० भाष्कर और दिनेश कुंदन बाबू के कमरे में पहुंच गये। कमरे में घुड़ुप अंधेरा और दूसरी तरफ कुंदन बाबू कम्बल को 180° पर तानकर पूरे कक्ष को पोस्मार्टम हाऊस की शक्ल देकर मरणासन्न लेटे थे। प० भाष्कर उनके सिरहाने बैठकर धीरे से दो बार बोले 'कुंदन' 'ए कुंदन'.. लेकिन कुन्दन के शरीर में सूत भर का विचलन न पाकर वो दोनों हाथ से झकझोरे... कुंदन कम्बल हटाते हुए हारे हुए सिपाही की तरह कराहते हुए बोले "ज्योतिष पना छोड़ दो पंडित,यह जानलेवा है।"
"का हुआ कुंदन!" भाष्कर प० आश्चर्य मिश्रित संवेदना के साथ सहमते हुए पूछे"
"का नहीं हुआ इ पूछो पण्डित" कुंदन दांत पीसते हुए चीखे.."
"अच्छा बताओ! क्या कहा उसने"
"बताने लायक नहीं है पण्डित"
"अरे आर दोस्तों में क्या बताने लायक क्या छुपाने लायक... बताओ पहले प० भाष्कर व्यग्र होकर पूछे"
"तू दोस्त हो पण्डित? तो बताओ दुश्मन कैसा होता है... जान मराव दोगे तुम पण्डित.......जान"
"अच्छा अब बता भी दो!"
कुंदन बाबू दो बार इधर ऊधर मुंह फेरे और फिर धीरे से बोले- "उसने मुझे 'श्वान'कहा श्वान"
"श्वान! अरे उसकी तीन पुश्त नही जानती होगी कि श्वान का क्या मतलब होता है वो क्या तुमकों श्वान कहेगी। तुम सुन नहीं पाये होगे 'जान' कही होगी 'जान'..."
कुंदन ने फिर लाचारी के साथ अपनी बात रखी और कहा "नहीं उसने श्वान ही कहा"
तभी दिनेश बीच में बात काटकर बोले "अरे यार कुंदन! क्यों मामले को साहित्यिक कर रहे हो सीधे-सीधे कहो न कि 'कुक्कुर'कही थी तुमको... बड़े आये श्वान कही थी।"
पूरे कमरे में शून्य तैरने लगा कुंदन बाबू एक बार कातर नजर से दिनेश को ताके और दो बूंद आंसू ढुलका कर पुनः 180° पर कम्बल तान लिये।
रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर