एनसीपी नेता अजित पवार की वर्तमान स्थिति क्या है? क्या वह अभी भी वैधानिक रूप से एनसीपी विधायक दल के नेता हैं? यही एक महत्वपूर्ण सवाल है कि जिसके इर्दगिर्द भाजपा और एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना की रणनीति घूम रही है। अगर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं किया तो पूरे मामले में स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। फिर राज्य में सरकार गठन का सवाल लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट आसपास घूमता रहेगा।
दरअसल अजित पवार की कथित बगावत के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार शनिवार को अजित की जगह नए विधायक को विधायक दल का नेता चुना। हालांकि अजित पवार ने राज्यपाल के समक्ष उस समय पार्टी विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा जब वह खुद विधायक दल के नेता थे। ऐसे में सवाल यह है कि भावी स्पीकर शपथ से पहले की स्थिति के आधार पर अजित पवार को विधायक दल का नेता मानेंगे या शनिवार को एनसीपी द्वारा इस पद के लिए नए नेता के चयन को।
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि अगर अजित पवार को विधायक दल का नेता माना जाता है तो शक्ति परीक्षण के दौरान उन्हें ही व्हिप जारी करने का अधिकार होगा। ऐसे में अजित जिसके पक्ष में मतदान करने का निर्देश विधायकों को जारी करेंगे, उसे एनसीपी विधायकों द्वारा नहीं मानने पर इसे व्हिप का उल्लंघन माना जाएगा।
जाहिर तौर पर ऐसी स्थिति में सियासी बाजी अजित के हाथों में होगी जो भाजपा के मुफीद है। बहरहाल एनसीपी का कहना है कि चूंकि पार्टी ने नए सिरे से विधायक दल का नेता चुन इसकी सूचना राज्यपाल को दे दी है, ऐसे में अजित को विधायक दल का नेता मानना असांविधानिक होगा। जबकि भाजपा खेमे का कहना है कि चूंकि सरकार के गठन के दौरान अजित ही विधायक दल के नेता थे, इसलिए इसमें अचानक बदलाव को स्वीकार करना असांविधानिक होगा।
मामले को सर्वाधिक दिलचस्प पहलू यह है कि तमाम खटास के बावजूद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अपने भतीजे अजित पवार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की है। वह भी तब जब वह मानते हैं कि अजित ने पार्टी से बगावत कर भाजपा का समर्थन किया।
भाजपा खुश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूरे मामले में सभी पक्षों को नोटिस जारी करने से भाजपा खुश है। पार्टी का कहना है कि शीर्ष अदालत ने अजित पवार को भी एक पक्ष के तौर पर नोटिस भेजा है,जिसकाअर्थ है कि शीर्ष अदालत भी उन्हें विधायक दल का नेता मानती है। हालांकि इस पर स्थिति सोमवार की सुनवाई ही स्पष्ट हो सकती है। हालांकि यह तय है कि अगर अजित पवार को विधायक दल का नेता माना गया तो सियासी बाजी भाजपा के हाथ आ जाएगी। वैसे भी अजित ने पीएम सहित कई मंत्रियों को ट्वीट कर स्थिर सरकार देने का वादा किया है। इससे पता चलता है कि भाजपा ने इस स्थिति पर पहले ही विमर्श कर लिया था।