जवाहर लाल की शहनाई अौर विश्वमोहन भट्ट की मोहन वीणा से गंगा महोत्सव का शुभारंभ
गंगा महोत्सव-2017 की प्रथम संध्या में विश्वमोहन भट्ट की मोहनवीणा का जादू श्रोताओं के सिर चढ़ कर बोला। बीस तारों वाली मोहन वीणा की झनकार ने शुरू से ही श्रोताओं को बांधे रखा। आलाप से शुरू हुआ वादन जोड़ के पड़ावों को पार करते हुए झाला तक पहुंचते-पहुंचते आनंद से परमानंद में परिवर्तित होता गया।
शुरुआत में बेशक घाट की सीढ़ियों पर बनी सामान्य दीर्घा में श्रोताओं की कमी खल रही थी लेकिन जैसे जैसे लाउड स्पीकर के माध्यम से मोहनवीणा की झनकार दूर तक फैलती गई, वैसे-वैसे दीर्घा का खालीपन खत्म होता गया। राग मारु विहाग में आलाप से वादन की शुरुआत करने वाले विश्वमोहन भट्ट के साथ तबले पर संगत कर रहे पं. रामकुमार मिश्र ने सोने में सुगंध जैसी अनुभूति कराई। मोहनवीणा पर झाला बजाते हुए श्री भट्ट एक तरफ लयकारी के बेहतरीन नमूने पेश कर रहे थे कर रहे थे तो रामकुमार आड़, कुआड़ और बिआड़ के जरिए अपनी साधना का दर्शन करा रहे थे।
इससे पूर्व प्रथम संध्या में कार्यक्रम की शुरुआत जवाहर लाल और साथियों के शहनाई की मंगलध्वनि से हुई। राग पूरिया कल्याण में धुन बजाने के बाद उन्होंने मिस्र खमाज में दादरा से समापन किया। इसके उपरांत कनार्टक से आये पद्मश्री वेंकटेश कुमार ने ग्वालियर के किराना घराने की गायकी से श्रोताओं को रससिक्त किया। गुरु-शिष्य परंपरा में संगीत की शिक्षा प्राप्त करने वाले वेंकटेश कुमार ने राग दुर्गा और शंकरा में गायन किया। राग दुर्गा में विलंबित एक ताल में 'तू जिन बोलो रे' के बाद द्रुत तीन ताल में 'माता भवानी लक्ष्मी' के सुर लगाए। समापन भजन से किया। उनके साथ तबले पर केशव जोशी, हारमोनियम पर डा. विनय मिश्र तथा तानपुरा पर गौरव मिश्र एवं अमित मिश्र ने संगत की। पहली निशा की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों को पं. राजेंद्र गंगानी के कथक से विराम मिला। उन्होंने शिव स्तुति से शुरुआत करने के बाद जयपुर घराने के पारंपरिक कथक, गणेश परन, फरमाइशी परन और उठान की बेहतरीन प्रस्तुति की। इसके बाद उन्होंने अपनी शिष्यमंडली के साथ त्रिधारा की मोहक प्रस्तुति की। इसके माध्यम से उन्होंने गंगा-यमुना-सरस्वती को नृत्यमय नमन किया।