बस्ती : शुकदेव जी की कथा (श्रीमद्भागवत) को पवित्रता, ज्ञान और भक्ति का सबसे श्रेष्ठ स्रोत माना जाता है। यह कथन दर्शाता है कि संसार में शुकदेव जी द्वारा सुनाई गई कथा से अधिक निर्मल, शुद्ध और कल्याणकारी कुछ भी नहीं है। इस कथा को सुनने और मनन करने से जीव का हृदय पवित्र होता है, मोह-माया का नाश होता है और उसे ईश्वर की भक्ति प्राप्त होती है।
श्रीमद्भागवत महापुराण सनातन धर्म का एक अत्यंत पवित्र ग्रंथ है, जिसे भक्त शास्त्र भी कहा जाता है। इसे महर्षि वेदव्यास ने लिखा और शुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को सुनाया। यह पुराण १८,००० श्लोकों, १२ स्कंधों और ३३२ अध्यायों में विभाजित है। इसे मोक्ष प्रदान करने वाला ग्रंथ माना जाता है, क्योंकि इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तार से वर्णन है।
संसार में शुक कथा से निर्मल कोई वस्तु नहीं है। इसके द्वादश स्कन्ध सम्पूर्ण वेद शास्त्र पुराणो के सार है। जो भक्त सम्यक विधि से नियम पूर्वक नित्य श्रवण करता है उसे परमानन्द की प्राप्ति होती है।श्री मद्भागवत कथा का आश्रय लिया जाय तो सब कुछ प्राप्त हो सकता है।भागवत सुनकर किसी फल की कामना नहीं करनी चाहिए अभी तो श्रीमद् भागवत श्रवण करना ही सबसे बड़ा फल है। परीक्षित जन्म भीष्म पितामह की भावपूर्ण स्तुति को श्रोताओं ने बड़े प्रेम से श्रवण किया। भीष्म पितामह बाणो की सैया पर पड़े पड़े भगवान से एक ही वरदान मांगते हैं हे श्याम सुंदर जब तक मेरा प्राण उत्सर्जित ना हो जाए तब तक आप मेरे आंखों के सामने प्रसन्न मुद्रा में खड़े रहे।
मैं आपका दर्शन करते-करते इस संसार सागर से विदा लेना चाहता हूं मेरी बुद्धि रूपी बेटी को जो की तृष्णा आदि विकारों से रहित है आप श्री कृष्ण के साथ विवाह करना चाहता हूं। महाभारत के युद्ध में मेरी प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए आपने-अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी आपकी भक्त वत्सलता को बार-बार प्रणाम है। आगे के प्रसंग में एक दिन राजा परीक्षित से भूल हुई ऋषि शमीक का अपमान कर दिया इससे ऋषि पुत्र श्रृंगी ने तक्षक नाग काटने से तुम्हारी मृत्यु होगी ऐसा श्राप दे दिया। राजा परीक्षित सब कुछ छोड़कर गंगा के तट पर आ गए और उनकी दिव्य प्रार्थना से प्रसन्न होकर के भगवान श्री हरि ही शुक देव जी के रूप में पधार कर दिव्य अमृत अर्थात श्रीमद् भागवत का श्रवण लाभ कराया। श्रीमद् भागवत पुराणों में तिलक है। वैष्णव का परम धन है। इस अवसर पर यजमान श्री पवन शुक्ला एवं श्री मती शैल शुक्ला देवी सहित श्रोताओं ने कथा रसपान किया।