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"कृषि क्रांति मानव सभ्‍यता की एक भूल थी, तकनीक का विकास कहीं उसकी अगली भूल तो नहीं होगी?"

कृषि क्रांति मानव सभ्‍यता की एक भूल थी, तकनीक का विकास कहीं उसकी अगली भूल तो नहीं होगी?
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(प्रशान्त द्विवेदी)

हरारी को पढ़ना वैसे ही है, जैसे खुद को खुद के सामने कपि (एप) से आधुनिक मानव बनते हुए देखना!

'सन 1871 में जब चार्ल्स डार्विन ने अपनी तीसरी बुक पब्लिश कराई तो उसका नाम रखा, 'डिसेंट ऑफ़ मैन...', हिन्दी में इसकी लूज़ मीनिंग हुई 'मनुष्य का अवतरण', या 'मनुष्य का उतरना', जानते हैं डार्विन ने ये नाम क्यों रखा? क्योंकि मनुष्य जब पेड़ से उतरा तभी सही अर्थों में वह मनुष्य बनने की राह पर अग्रसर हुआ..वह दो पैरों पर खड़ा हुआ, जिससे उसे दूर तक दिखने लगा, उसकी आँखें धीरे-धीरे सामने की तरफ शिफ्ट होती गईं..उसके दोनों हाथ फ्री हो गए..उसका अंगूठा हथेली से समकोण पर आ गया (अपोज़बल थम्ब्स) जिस कारण टूल्स पर उसकी गृप अच्छी होती गई..ऐसे ही बहुत से कारणों ने मिलकर उसके दिमाग़ का विस्तार करना शुरू किया...

लेकिन ये सब अचानक से नहीं हो गया। रातों-रात। इसमें इतना वक़्त लगा कि हज़ारों पीढ़ियां गुज़र गईं, आदिमानव अपना डीएनए अपनी संततियों में ट्रांसफर करके मरता-खपता गया..उसने आग जलाई..पहिये बनाये..गुफा से निकला..उसमें काग्निटिव रिवॉल्यूशन (संज्ञानात्मक क्रान्ति) की शुरुआत हुई और लगभग सत्तर हज़ार साल पहले उसकी काल्पनिक भाषा का विकास होना शुरू हुआ..उसने खेती शुरू की..सेटल हुआ और आज स्पेश तक जा पहुंचा।

युवाल नोआ हरारी द्वारा 2011 में लिखित पहली किताब 'सेपियंस: अ ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ़ ह्यूमनकाइंड' पढ़ना मनुष्य के 'पेड़ से उतर कर अंतरिक्ष तक चढ़ने' की कहानी है। इसे हरारी 13.5 बिलियन साल पहले बिग- बैंग से शुरू करते हुए हमें मनुष्य के भविष्य तक खींच कर ले जाते हैं। जहाँ पर कि 'नैचुरल सेलेक्शन पर 'इंटेलिजेंट डिज़ाइन' हावी है।

इसकी प्रस्तुतिकरण इतनी खूबसूरत है कि भले ही आप ने इतिहास, भूगोल, सामाजिक-सांस्कृतिक नृ विज्ञान (सोशल-कल्चरल एंथ्रपॉलजी) कभी न पढ़ी हो, ये इन सबसे दोचार कराती चलती है। हरारी ने इन्हीं विषयों के गहन अध्ययन एवं ज्ञान के आधार पर इस रहस्य का अन्वेषण किया है कि संस्कृति के प्रवाह ने आख़िर कैसे हमारे मानव समाजों, हमारे चारों ओर के प्राणियों और पौधों को आकार दिया है।

प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग तक मानव जाति के विकास की यात्रा के रोचक तथ्यों को हरारी ने शोध पर आधारित आंकड़ों को जादू की तरह शब्दों में पिरोया है।

100,000 साल पहले पृथ्वी पर मॉडर्न मैन जीनस 'होमो' की कम से कम छह प्रजातियाँ बसती थीं, लेकिन आज स़िर्फ हम लोग अर्थात होमो सेपियन्स ही बच पाए। ऐसा क्यों? ऐसा क्या हुआ कि पृथ्वी पर जहाँ अभी भी चार कपि (एप)- गिबन, गोरिल्ला, चिम्पैंजी एवं ओरंगउटान पाए जाते हैं लेकिन हमारे सिवा होमो की कोई भी प्रजाति नहीं पाए जाती?

हरारी ने एक सम्भावना यह व्यक्त की है कि सेपियन्स ने बाक़ी सबको ख़त्म कर दिया हो। एक जगह वो लिखते हैं कि सेपियन्स कभी भी टॉलरेंट नहीं रहा..वह दूसरों से नफ़रत करता रहा। इसी नफ़रत के कारण सेपियन्स ने बाक़ी प्रजातियों का व्यापक जनसंहार (जीनोसाइड) किया। कुल मिलकर सेपियन्स दूसरी प्रजातियों को बर्दाश्त नहीं कर पाया।

लेकिन हमें यह समझना होगा कि इवोल्यूशन कोई डेड-एन्ड प्रोसेस नहीं है, जिसमें एक प्रजाति के विलुप्त होने पर ही दूसरी प्रजाति अस्तित्व में आए। यह किसी ऊपर बढ़ते हुए वृक्ष से फूटती हुई शाखाओं की तरह है, जहाँ एक शाखा बिना नष्ट हुए दूसरी शाखा को जन्म देती है। लेकिन इसमें कोई भी सतत रूप से शीर्ष पर नहीं रह सकता।

फिर भी, सेपियन्स और बाक़ी प्रजातियों की जंग में आख़िर सेपियन्स ने कैसे जीत हासिल की? भोजन और आवास के लिए दर-दर भटकने वाले हमारे पूर्वज शहरों और साम्राज्यों की स्थापना के लिए क्यों एकजुट हुए? कैसे लगभग सत्तर हज़ार साल पहले सेपियन्स ने संस्कृति (कल्चर) जैसी और अधिक विस्तृत संरचना का विकास प्रारम्भ किया जिसे कि आगे चलकर इतिहास कहा गया? कैसे हम ईश्वर, राष्ट्रों और मानवाधिकारों में विश्वास करने लगे? कैसे हम संपत्ति, किताबों और कानून में भरोसा करने लगे? कैसे हम नौकरशाही, समय-सारणी और उपभोक्तावाद के गुलाम बन गए? आने वाले हज़ार वर्षों में हमारी दुनिया कैसी होगी? यह किताब ऐसे ही न जाने कितने रोचक सवालों के जवाब देती चलती है।

इसकी बुनावट इतनी कसी है कि यदि आप अच्छे वाक्यांशों को मार्क करते चलें तो लगभग पूरी किताब ही रंग जाएगी।

इसे पढ़कर ही आप जान पाएंगे कि बिल गेट्स सहित पूरी दुनिया आख़िर इस पर फ़िदा क्यों हुई जा रही है और क्यों विदेशी आलोचक इसे इस सदी की सबसे बेहतरीन किताब मान रहे हैं।

यह बताती है कि मानव सभ्‍यता का पूरा इतिहास भूलों से भरा हुआ है। कृषि क्रांति भी उन्हीं में से एक भूल ही थी। कृषि ने उसे बहुत कुछ दिया, लेकिन बहुत कुछ छीन भी लिया। कृषि क्रांति से पहले भोजन को सिर्फ खोज कर खाने वाला इंसान कृषि क्रान्ति के बाद बंध गया। उसकी निश्चिंतता ख़त्म हो गई। कृषि क्रांति ने मनुष्य की घुमक्कड़ी ख़त्म कर दी और इसके वि‍परीत उसे शंका और संदेह से भरा एक मनुष्‍य बना दिया। इससे संपत्ति और ओनरशिप का कांसेप्ट आ गया, जिसने लालच को जन्म दिया। इंसान भविष्‍य के प्रति‍ आशंकित हो गया, इससे कई तरह की अवधारणाएं और छल-कपट पैदा हुए। इससे आगे चलकर असमानता को जन्म मिला। कभी सबका पेट भरने वाली पृथ्वी पर बस कुछ मुट्ठी भर लोगों का हक़ रह गया। बाक़ी लोग राजाओं, ज़मींदारों और पुजारियों की दया पर निर्भर रहने लगे।

कृषिक्रांति और पशुपालन ने गुलामी की शुरुआत की। जो जंगली और सामाजिक जानवर इंसानों के सहचर हुआ करते थे, उन जानवरों को अपने अधीन करने के लिए इंसानों ने उन पर तरह-तरह के बर्बर अत्याचार किए। कई प्रजातियों को तो नष्ट ही कर दिया। तो कई को गुलाम बना दिया। कृषि क्रान्ति ने तो गाय-बैलों सहित अन्य गोवंशों के जीवन को तो नर्क ही बना दिए।

कृषि‍ क्रांति ने मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता तोड़ दिया, वो लालच, धन और अनाज संचय करने की दिशा में बढ़ गया। खाना बदोश भोजनखोजी, कृषि के आविष्कार के बाद जंगलों और प्रकृति‍ के दुश्‍मन हो गए।

ये लाइन ज़रा देखिये, "We did not domesticate wheat. It domesticated us."

सच में इसे पढ़ना खुद से अनजान इंसान को खोजने जैसा है। सेपियन्‍स दरअसल, मानव विकास के कारण उपजी कई तरह‍ की अवधारणाओं की भूलों को उजागर करती है। पढ़ते-पढ़ते कई बार सेपियन्स प्राजाति‍ से विरक्ति हो जाती है। सेपियन्स का विकास प्रकृति के कई हिस्‍सों को कुचल कर हुआ। सुविधाजनक और सहूलि‍यत भरे जीवन की चाह ने इंसान के जीवन को और अधिक जटिल और कठिन बना दिया। जिसका परिणाम आज का इंसान भुगत रहा है और आने वाली पीढ़ी शायद बहुत भयावह तरीके से भोगने वाली है।

लेकिन उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति और साम्राज्यवाद के विस्तार ने इंसानों के बीच बराबरी का माहौल बनाया। नए कारखानों में काम करने के लिए लोग चाहिए थे, जंग लड़ने के लिए भी भारी तादाद में इंसानों की ज़रूरत थी। इस ज़रूरत ने समाज में बराबरी लाने में मदद की और इससे एक वेलफेयर स्टेट पैदा करने की दिशा में कदम बढ़ा।

पूरी दुनिया के नेतागण कहते हैं कि तकनीक के इस्तेमाल से समाज में बराबरी आएगी लेकिन हरारी मानते हैं कि तकनीक से तो इंसानों के बीच खाई गहरी और चौड़ी होगी। हरारी इसकी मिसाल के तौर पर हमारी ज़िंदगी में रोबोट और बनावटी अक़्लमंदी के बढ़ते दखल को गिनाते हैं।

हरारी की अगली किताब होमो डिअस इसी कोशिश का नतीजा है। उनका कहना है कि हम इतिहास इसलिए तो पढ़ते हैं कि अतीत की ग़लतियों से सीखें, अपने आज को दुरुस्त करें, ताकि हमारा भविष्य बेहतर हो। उनके अनुसार तकनीक आगे चलकर न सिर्फ़ दुनिया को बदल देगी बल्कि वह मानव पर हावी हो जाएगी।

होमो डेयस के बाद आई उनकी अगली किताब '21 लेसन्स फ़ॉर 21st सेंचुरी' भी काफी लोकप्र‍िय हो चुकी है। ये किताबें भविष्‍य के बारे में बात करती हैं। मानव सभ्‍यता के सामने क्‍या उपलब्‍धि‍यां होंगी और उनसे क्‍या संकट पैदा होंगे।

हरारी इतिहास के सबसे बड़े सबक़, 'जो इतिहास से नहीं सीखते, वो इतिहास को दोहराने के लिए शापित होते हैं' पर दिल से यक़ीन करते हैं।

तो क्या तकनीक का विकास करके हम मानव इतिहास की दूसरी भूल तो नहीं करने जा रहे हैं? इसका उत्तर तो भविष्य के गर्त में ही छुपा है..

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