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उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव : समाजवादी पार्टी के लिए संजीवनी

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव : समाजवादी पार्टी के लिए संजीवनी
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उत्तर प्रदेश में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का परिणाम आ चुका है। सबसे अधिक सीटो पर समाजवादी पार्टी ने जीतने का दावा किया है। इतना ही नहीं, अयोध्या, काशी और मथुरा में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर समाजवादी पार्टी ने अपने मंसूबे जाहीर कर दिये हैं। इससे इस बात की तो पुष्टि हो गई कि समाजवादी पार्टी मजबूत कार्यकर्ताओं की पार्टी है। उसका व्यापक जनाधार है। अगर आपसी मनमुटाव की वजह से ये खुद एक दूसरे को हराने का प्रयास न करें, तो समाजवादी पार्टी सदैव सत्ता में रहे। लेकिन समाजवादी पार्टी की इसी कमजोरी की वजह से वह लगातार सत्ता में कभी नहीं रह पाती है।

इस समय उत्तर प्रदेश सहित पूरा देश कोरोना महामारी की वजह से सरकार द्वारा जारी गाइड लाइन का पालन कर रहा है। इसी कारण परिणाम आने के बाद जो धूम-धड़ाका सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर दिखाई देता था, वह नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन इसके बावजूद विभिन्न चुनावों में लगातार हार रही समाजवादी पार्टी को संजीवनी मिली है। अब वह दुगुने उत्साह के साथ 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी करेगी।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रत्याशी चयन से लेकर चुनावी प्रचार तक की जिस तरह से रणनीति बनाई थी, उसके केंद में आगामी विधानसभा चुनाव ही था। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रत्याशी चयन का जिम्मा भले ही समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्षों को दी हो। लेकिन उन्हें यह भी हिदायत दी थी कि समाजवादी पार्टी के जिले सभी प्रभावी नेताओं या संभावित उम्मीदवारों से इस बारे में राय मशविरा कर लिया जाए। उनके इस निर्देश का सभी सपा जिला अध्यक्षों ने पालन किया । साथ ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जिले के सभी वरिष्ठ नेताओं और संभावित उम्मीदवारों को यह भी ज़िम्मेदारी दी थी कि जो अपने-अपने क्षेत्र के अधिक से अधिक अधिकृत उम्मीदवारों को जिता कर लाएगा, विधानसभा का टिकट वितरित करते समय उसके नाम पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा। सिर्फ समाजवादी पार्टी ही नहीं, बाकी के भी सभी राजनीतिक दलों ने जिला पंचायत सदस्यों को अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित कर उन्हें जिताने का हर संभव प्रयास किया। इस प्रयास में सबसे अधिक सफलता समाजवादी पार्टी को मिली । उत्तर प्रदेश में कुल 3050 जिला पंचायत सीटों पर चुनाव हुए । जिसमें समाजवादी पार्टी ने अकेले ही 760 सीटों पर जीत दर्ज की। उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की भी सीटों को अगर शामिल कर लें, तो यह संख्या 828 तक पहुँच जाती है। जबकि सत्ता में रहने के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी को 719 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की ओर से जो प्रेस रिलीज जारी की गई, उसके अनुसार उन्होने खुद को सबसे बड़ी पार्टी बताया है। इस चुनाव परिणाम के पश्चात और भी कई राजनीतिक झुकावों का खुलासा हुआ। इस चुनाव के पहले जिस बहुजन समाज पार्टी के जनाधार को समाप्तप्राय माना जा रहा था। उस बहुजन समाज पार्टी ने भी 381 सीटें जीत कर ऐसे राजनीतिक दलों को चेतावनी दे दी। जो उसे समाप्तप्राय मान रहे थे। कांग्रेस ने 76 सीटें जीती और पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपना भाग्य आजमाने उतरी आम आदमी पार्टी ने भी 64 सीटें जी कर अन्य सभी दलों को आगाह कर दिया कि 2022 में जब वह विधानसभा चुनाव लड़ेगी, तो कोई भी फेरबदल करने में सक्षम है। लेकिन इस त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि इसमें सबसे अधिक सीटें निर्दलियों ने जीती । जिनकी संख्या 1114 है। इन्हीं निर्दलीय उम्मीदवारों को लेकर भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी में टकराहट हो रही है। समाजवादी पार्टी कह रही है कि इसमें से अधिकांश जीते जिला पंचायत उसकी पार्टी के बागी उम्मीदवार हैं। वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी भी ऐसा ही राग आलाप रही है। खैर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी पार्टी के जीते हुए प्रत्याशियों को जीत की मुबारकवाद भी दे दी। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनावों में विजय हासिल करने वाले समाजवादी पार्टी के सभी उम्मीदवारों को बधाई देने के बाद कहा कि कोरोना संक्रमण के फैलाव को देखते हुए उनसे किसी प्रकार का विजय उत्सव मनाने के बजाय यह अपील की है कि सभी समाजवादी पार्टी कार्यकर्ता अपने स्तर से जनता की सेवा में लग जाएँ। पंचायत चुनावों मतदाताओं की प्रथम वरीयता समाजवादी पार्टी रही है। बड़ी तादात में समाजवादी पार्टी की जीत के साफ संकेत है कि किसानों, नौजवानों और गाँव तक में उसकी स्वीकारिता है। समाजवादी पार्टी जनता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध है। जनता ने समाजवादी पार्टी को जीत दिलाकर लोकतंत्र को बचने का भी सराहनीय कार्य किया है। भाजपा झूठे वादे करने के अपने स्वभाव के अनुसार पंचायत चुनावों में भी बाज नहीं आ रही है। यह हकीकत है कि गाँवों मैं अपनी ही तीसरे इंजन वाली सरकार बनाने का उसका सपना बुरी तरह चकनाचूर हुआ है। उसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहजन पदों में भी मुँह की खानी पड़ी है। वाराणसी, गोरखपुर, प्रयागराज के अलावा आजमगढ़ से लेकर इटावा तक भाजपा की कोई चाल काम नहीं आई और तो और राज्य की राजधानी लखनऊ में जनता ने भारतीय जनता पार्टी को नकार दिया है। लखनऊ में भी समाजवादी पार्टी को भारी सफलता मिली है। राज्य जनता बधाई की पात्र है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी पर अपना भरोसा व्यक्त किया है। पंचायत चुनावों में मतदाताओं ने सत्ता के दुरुपयोग और वोटों की हेराफेरी के भी भाजपा को हार मिली है। चार साल के भाजपा राज में जनता को धोखा ही मिला है। समाजवादी सरकार ने विकास के जो काम बढ़ाए थे, भाजपा ने द्वेष-वश उन्हें बाधित किया। गतवर्ष से कोरोना का संक्रमण जारी है। भाजपा सरकार ने न तो समुचित इलाज की व्यवस्था की ना ही पलायन के शिकार श्रमिकों के रोजी रोटी की व्यवस्था की। प्रदेश बेकारी, व्यापार बंदी और शैक्षिक- स्वस्थ्य संबंधी दुर्व्यवस्थाओं से ग्रस्त है। भारतीय जनता परी की सरकार हर मोर्चे पर विफल है। पंचायत चुनावों के नतीजों ने भाजपा की नाव डूबने के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं। मंत्रियों, सांसदों, विधायकों तक को पूरे राज्य में तैनात कर भाजपा ने जीत की साजिशें रची थी पर जनता ने उसकी धौंस में नहीं आई, उसने भाजपा को करारा जवाब दिया है। भाजपा की नफरत और समाज को बांटने वाली रणनीति पश्चिम बंगाल के चुनावों में बुरी तरह पिटी है। उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनावों के नतीजों से जो संदेश मिल रहा है वह सन 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी दिशा सूचक साबित होगी। उत्तर प्रदेश में भाजपा राज का सफाया निश्चित है। बस अब गिने चुने दिन ही शेष हैं, भाजपा की विदाई और समाजवादी सरकार बनने में। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस अधिकृत बयान के बाद एक बात तो तय हो गई कि इस परिणाम से वे संतुष्ट हैं। और इसके बावजूद वे अपने कार्यकर्ताओं को एक दिन भी बैठने नहीं देना चाहते हैं। बल्कि कोरोना महामारी के समय जिस विपत्ति से लोग जूझ रहे हैं। उनकी मदद करने के लिए कहा है। इसका असर भी पड़ा है। समाजवादी पार्टी के तमाम कार्यकर्ता अपने को कोरना संक्रमण से बचाते हुए समाजसेवा के इस कार्य में लग गए हैं। अगर ईमानदारी से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सेवा कार्य किया, तो 2022 में उसका बड़ा लाभ उन्हें मिलने से कोई नहीं रोक सकता है।

समाजवादी पार्टी एक ऐसी पार्टी है, जो कार्यकर्ताओं की दृष्टि से बहुत ही मजबूत पार्टी है। भारतीय जनता पार्टी ने चाहे जितने निचले स्तर तक अपना संगठन बना लिया हो, और समाजवादी पार्टी का संगठन चाहे जितना ढुलमुल हो। लेकिन आज भी समाजवादी पार्टी का संगठन बहुत ही मजबूत स्थिति में है। वश समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की एक ही बुराई है कि वे किसी के बहकावे में बहुत जल्दी आ जाते हैं, और अपनी आपसी एकता को तोड़ देते हैं। उनकी इसी कमजोरी का अधिकांश चुनावों में दूसरी पार्टियां फायदा उठा लेती हैं। उनकी एकता को छिन्न भिन्न कर उन्हें आपस में ही लड़ा देती हैं। लेकिन एक बात और है, जब जब स्थानीय स्तर पर चुनाव होते हैं। समाजवादी पार्टी हमेशा बेहतर प्रदर्शन करती है। इस बार के पंचायत चुनाव के नतीजो ने भी यह साबित कर दिया है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जो भारतीय जनता पार्टी का गढ़ मानी जाती है। वहाँ पर भी समाजवादी पार्टी ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। सबसे अधिक 10 सीटें सपा ने जीती है। जबकि भारतीय जनता पार्टी को केवल तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है।

भाजपा का यह आलम रहा कि दो बार की सांसद रहीं रीना चौधरी भी चुनाव हार गई । स्थानीय सांसद कौशल किशोर की बहू भी चुनाव हार गईं। जबकि इन चुनावों को भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा बनाया था और तमाम बड़े नेता लगातार प्रत्याशियों को जिताने के लिए चुनाव प्रचार में लगे हुए थे। भाजपा से अधिक सीटें तो बहुजन समाज पार्टी ने जीत ली। वह पाँच सीटें जीत कर दूसरे स्थान पर रही। भीम आर्मी ने एक सीट पर जीत कर बहुजन समाज पार्टी को यह संकेत दिया है कि उनका जनाधार लखनऊ तक पहुँच चुका है।

अभी तक यही माना जा रहा था कि राजधानी में भीम आर्मी का कोई वजूद नहीं है।

अब आइये क्षेत्र वाइज़ जिला पंचायत चुनाव की पड़ताल कर लेते हैं। सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की सभी सीटों को जब पूर्वाञ्चल, मध्यांचल, बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाँट कर अध्ययन करते हैं। तो हम पाते हैं कि समाजवादी पार्टी की बेल्ट मानी जाने वाली मध्य उत्तर प्रदेश में एक बार फिर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली है। भारतीय जनता पार्टी के गढ़ माने जाने वाले मथुरा, अयोध्या और काशी में समाजवादी पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए समाजवादी पार्टी ने 70 प्रतिशत से अधिक सीटों पर कब्जा जमा लिया है। जब सम्पूर्ण मध्य उत्तर प्रदेश की बात करते हैं, तो यहाँ पर समाजवादी पार्टी ने 285 सीटें जीती हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने केवल 155 सीटें जीतने का दावा किया है। इसके पीछे के कारणों की जब मैंने पड़ताल की तो पाया कि इटावा जिले के लिए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच सम्झौता हो गया था। इस समझौते के अनुसार दोनों राजनीतिक दलों ने मिल कर चुनाव लड़ा। इस फूट का फायदा उठा कर पिछले विधानसभा और लोकसभा में जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों पर पानी फिर गया। इस समझौते का संदेश दूर तक गया। जिसकी वजह से अघोषित रूप से हर क्षेत्र में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया और समाजवादी पार्टी के मतदाताओं ने एक साथ प्रचार किया और मतदाताओं ने भी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया। जिसकी वजह से मध्य उत्तर प्रदेश की समाजवादी बेल्ट में एक बार फिर समाजवादी पार्टी मजबूत दिखी।

किसान आंदोलन का भी प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर दिखाई दिया। चुनाव के समय कई गावों में तो भारतीय जनता पार्टी के सांसदों और विधायकों को घुसने तक नहीं दिया गया। यहाँ पर समाजवादी पार्टी का सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल ने अपने प्रत्याशी उतारे और सबसे अधिक सीटों पर जीत दर्ज की । किसान आंदोलन के प्रभाव के कारण ही एक बार फिर यहाँ के जाट मतदाता समाजवादी पार्टी के पक्ष में लामबंद हुए।

राष्ट्रीय लोकदल ने 35 सीटें जीतने का दावा किया है। अगर समाजवादी पार्टी की भी सीटें इसमें मिला दें, तो यह जीत का आकडा 76 तक पहुँच जाता है। लेकिन तमाम विरोध के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दे दिया था, जिनकी सामाजिक स्वीकार्यता अधिक थी। इसी कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी 62 सीटें जीतने में कामयाब रही । लेकिन मुरादाबाद मंडल में भी समाजवादी पार्टी ने 33 सीटें जीत कर भारतीय जनता पार्टी को दूसरे नंबर पर धकेल दिया । इस मण्डल में भारतीय जनता पार्टी को केवल 27 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।

बरेली मंडल में भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी को पीछे छोड़ दिया। इस मण्डल में भारतीय जनता पार्टी को 37 सीटें मिली। जबकि समाजवादी पार्टी को 33 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इस मण्डल में बहुजन समाज पार्टी ने 18 और कांग्रेस ने 3 सीटें जीती। वहीं महान दल भी बरेली मंडल में दो सीटें, और निर्दलीय प्रत्याशियों ने 19 सीटों पर जीत हासिल करने का दावा किया है।

ब्रज क्षेत्र में भी समाजवादी ने अपना परचम लहराया । समाजवादी पार्टी ने यहन पर 64 सीटें जीतने का दावा किया है। जबकि भारतीय जनता पार्टी को यहाँ पर केवल 51 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। बहुजन समाज पार्टी ने 37 सीटों पर जीत का दावा कर संकेत दे दिया है कि अभी भी वह 2022 के विधानसभा चुनाव की दौड़ में शामिल है।

बुंदेलखंड में जरूर भारतीय जनता अपनी बढ़त बनाने में कामयाब रही है। यहाँ पर भारतीय जनता पार्टी 39 सीटें जीतने में कामयाब रही। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को 31-31 सीटें मिली हैं। इतने सीटें जीत कर बहुजन समाज पार्टी ने अपनी बुंदेलखंड की खोई हुई जमीन एक बार फिर प्राप्त कर ली है। इसका संकेत दिया है। उत्तर प्रदेश के मध्यांचल की ही तरह पूर्वाञ्चल को भी समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। जब जब समाजवादी पार्टी पूर्वाञ्चल में बेहतर प्रदर्शन करती है, तब तब वह प्रदेश में सरकार बनाती है। अयोध्या, वाराणसी और गोरखपुर सहित अधिकांश जिलों में समाजवादी पार्टी ने अपनी बढ़त बनाई हुई है। अगर सम्पूर्ण पूर्वाञ्चल की बात करें, तो यहाँ भी समाजवादी पार्टी ने 171 सीटें जीत कर 2022 के विधानसभा चुनाव जीत का अपना दावा बरकरार रखा है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने भी 118 सीटें जीत कर यह संकेत देने का प्रयास किया है कि अभी वह बहुत कमजोर नहीं हुई है। फिर भी कुल मिलाकर इस पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी मजबूत होकर उभरी है। हालांकि यह भी सच है कि 2015 में जिस प्रकार का प्रदर्शन समाजवादी पार्टी ने किया था, उसे दोहराने में असफल रही है। लेकिन इस चुनाव ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी का काम किया है।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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