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चौधरी अजीत सिंह : एक सच्चा किसान नेता

चौधरी अजीत सिंह : एक सच्चा किसान नेता
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय राजनीति पर एकाधिकार रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख व पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह कोरोना संक्रमित हो गए थे। गुरुग्राम के आर्टिमिस अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। जहां आज उनका निधन हो गया । उनके पिता चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के बड़े नेताओं में शुमार रहे । पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वे बहुत ही लोकप्रिय थे। राजनीति के साथ-साथ उन्होने खेती किसानी कभी नहीं छोड़ी। इसी कारण चौधरी चरण सिंह किसान नेता के रूप में प्रतिष्ठित हुए। उनके जाने के बाद उनके पुत्र चौधरी आजीत सिंह राजनीति में आए, और उनकी विरासत संभाली । जिस तरह से उत्तर प्रदेश की यादव बिरादरी मुलायम सिंह यादव को अपना मसीहा मानती है। उसी प्रकार पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाट बिरादरी चौधरी चरण सिंह को अपना मसीहा मानती रही। जब उनके पुत्र अजीत सिंह राजनीति में कदम रखे, तो उनके साथ भी वह उसी शिद्दत के साथ जुड़ी रही। इसी बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व बढ़ा, जिसकी वजह से चौधरी अजीत सिंह की राजनीतिक पकड़ शिथिल होती गई। लेकिन अपनी अध्ययन यात्राओं में मैंने यह पाया कि भले ही यहाँ की जाट बिरादरी अजीत सिंह और उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान न करती रही हो। लेकिन अगर उनके दिली लगाव की बात की जाए, तो वह सदा ही चौधरी अजीत सिंह के साथ ही रही। कई विधानसभा और लोकसभा चुनावों का सर्वे करते समय मैंने पाया कि जिन जाट घरानों के लोगों ने अजीत सिंह एवं उनके परिवार को वोट नहीं दिया। उन्हीं जाट परिवारों में शाम का भोजन भी नहीं बना। या परिणाम घोषित होने दिन उस घर में भोजन नहीं बना। इस बारे में मैंने इस क्षेत्र के लोगों से बात की, तो पाया कि भारतीय जनता पार्टी उनकी पहली पसंद होने के बाद भी वे दिल से चौधरी अजीत सिंह से ही प्रेम करते रहे।

चौधरी अजीत सिंह ने जो राजनीतिक विरासत अपने पिता चौधरी चरण से प्राप्त की थी, लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की सम्पूर्ण प्रयास किया। हाँ, इतना जरूर था कि चौधरी चरण सिंह के व्यक्तित्व और आभा मण्डल के सामने वे टीक न सके। लेकिन वहाँ की जनता ने चौधरी अजीत सिंह को भरपूर प्यार दिया। कई बार सेवा के मौके भी दिये। इसी कारण चौधरी अजित सिंह बागपत से सात बार सांसद बने। कई बार वे केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने। बागपत से लगातार राजनीति करने की वजह से चौधरी अजीत सिंह के इस जिले के घर-घर से संबंध थे। ऐसे लोकप्रिय नेता चौधरी अजीत सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 को को हुआ था। लेकिन उन्होने अपने सियासी सफर की शुरुआत 1986 में की थी। 1986 में ही उनके पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह बीमार पड़ गए थे। ऐसे समय में वे आनन-फानन में अमेरिका से लौटे । और उनका सम्मान करते हुए उन्हें 1986 में ही राज्यसभा का सदस्य नामित किया गया। इसके बाद 1987 से 1988 तक वह लोकदल (ए) और जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। 1989 में अपनी पार्टी का विलय जनता दल में करने के बाद वह उसके महासचिव बन गए। 1989 में अजित सिंह पहली बार बागपत से लोकसभा पहुंचे। वीपी सिंह सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया। इसके बाद वह 1991 में फिर बागपत से ही लोकसभा पहुंचे। इस बार नरसिम्हाराव की सरकार में फिर उन्हें मंत्री बनाया गया। 1996 में वह तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे, लेकिन कुछ कारणों की वजह से उन्होने कांग्रेस और सांसदी दोनों पदों से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1997 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की और 1997 के उपचुनाव में बागपत से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1998 के चुनाव में वह हार गए, लेकिन 1999 के चुनाव में फिर जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2001 से 2003 तक अटल बिहारी सरकार में चौधरी अजित सिंह मंत्री रहे। लेकिन 2011 में वह यूपीए का हिस्सा बन गए। इसके बाद 2011 से 2014 तक वह मनमोहन सरकार में मंत्री रहे। 2014 में वह बागपत सीट से चुनाव हार गए। 2019 का चुनाव चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर से लड़े। लेकिन बीजेपी प्रत्याशी संजीव बलियान ने उन्हें हरा दिया। इसके पूर्व ही समाजवादी पार्टी के साथ राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन हो गया। इधर पिछले कई महीने से चल रहे किसान आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने के बाद उन्होने अपनी लोकप्रियता का ग्राफ फिर से प्राप्त कर लिया था। एक बार फिर यहाँ के किसान चौधरी अजीत सिंह में अपनी आस्था व्यक्त करने लगे। पंचायत चुनाव के दौरान मेरी यहाँ के किसानों से बात हुई। अजीत सिंह को हरा कर उन्होने गलती की। यह बात यहाँ के किसानों ने बड़े भारी मन से स्वीकार की। यहाँ के किसानों ने एक चर्चा के दौरान मुझसे कहा कि अगले चुनाव में वे फिर चौधरी अजीत सिंह को लोकसभा का चुनाव जिताएंगे और अपनी गलती के लिए पश्चात्ताप करेंगे। लेकिन होनी को कुछ दूसरा ही मंजूर था। और कोरोना संक्रमण की वजह से आज उनका अवसान हो गया। उनकी इस लोकप्रियता का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अभी हाल में ही सम्पन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि चौधरी अजीत सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के काफी लोकप्रिय नेता थे। यहाँ के जाट इन्हें अपना नेता मानते थे और अन्य सभी नेताओं में सबसे अधिक सम्मान देते थे। उच्च शिक्षित होने के कारण उनका जाट बिरादरी में काफी सम्मान था। उनके आई आई टी खड़गपुर से पढ़ाई की अक्सर इन क्षेत्रों में चर्चा होती है। राजनीति के अतिरिक्त अपने समाज में उनका जो सम्मान था। वह उनकी शिक्षा के कारण था। इसके साथ ही उन्होने 17 साल तक अमेरिका में नौकरी की थी। फिर अपने पिता के बीमार होने के कारण वे अमेरिका जैसे देश से नौकरी छोड़ कर आए और अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए राजनीतिक समर में कूद पड़े। इनके परिवार में पत्नी राधिका सिंह और दो बच्चे हैं।

उनके निधन की खबर सुनते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा सम्पूर्ण देश में शोक की लहर फैल गई और सभी ओर से शोक संवेदना के संदेश आने लगे। शोक संदेश के ही बहाने लोगों ने उनकी राजनीतिक विशेषताओं को उकेरा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीटर पर लिखा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। वे हमेशा किसानों के हित में समर्पित रहे। उन्होंने केंद्र में कई विभागों की जिम्मेदारियों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया।

समाजवादी पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से लिखा कि राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजीत सिंह जी का निधन, अत्यंत दुखद! आपका यूं अचानक चले जाना किसानों के संघर्ष और भारतीय राजनीति में कभी ना भरने वाली जगह छोड़ गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट कर लिखा कि राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख और पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह के निधन की सूचना से दुख‌ हुआ। उन्होंने किसानों के हित में हमेशा आवाज उठायी। जनप्रतिनिधि व मंत्री के रूप में उन्होंने देश की राजनीति पर अलग छाप छोड़ी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। वह हमेशा किसानों के हितों के लिए आगे रहे। दुःख की इस घड़ी में उनके परिवार व समर्थकों के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूँ। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर लिखा कि चौधरी अजीत सिंह के निधन का समाचार बेहद पीड़ादायक हैं। अपने लम्बे सार्वजनिक जीवन में वे हमेशा जनता और ज़मीन से जुड़े रहे। साथ ही किसानों, मज़दूरों एवं अन्य निर्बल वर्गों के हितों के लिए संघर्ष भी करते रहे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर लिखा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जुझारू किसान नेता चौधरी अजीत सिंह जी का निधन अत्यंत दुःखद है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चौधरी अजित सिंह के देहांत पर गहरा दुःख और संवेदना व्यक्त किया है। सोनिया गांधी ने कहा कि किसान वर्ग ने एक सच्चा हितेषी खो दिया। किसानों के लिए उनका संघर्ष व खेतिहर के लिए विशेष योगदान देश सदैव याद रखेगा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख अजित सिंह के असमय निधन का समाचार दुखद है। उनके परिवार व प्रियजनों को मेरी संवेदनाएँ।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि लोकप्रिय नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री व किसान हितैषी नेता चौधरी अजीत सिंह जी के निधन की दुखद खबर मिली। चौधरी साहब के निधन से समाज एवं राजनीति को अपूर्णीय क्षति हुई है। जयंत चौधरी और आरएलडी साथियों के प्रति मेरी गहरी शोक संवेदनाएं। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर लिखा कि राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व केद्रीय मंत्री एवं पूर्व सांसद तथा अपने समाज के लोकप्रिय नेता चौधरी अजित सिंह के निधन की खबर अति-दुःखद। उनके परिवार व उनके समस्त चाहने वालों के प्रति मेरी गहरी संवेदना। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा कि किसानों और मजदूरों के मसीहा,पूर्व केंद्रीय मंत्री, आरएलडी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह जी का आकस्मिक निधन, अपूरणीय क्षति। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति एवं शोक संतप्त परिजनों को दुख की इस घड़ी में संबल प्रदान करे। अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।

लेकिन चौधरी अजीत सिंह को अपनी बढ़ती उम्र का एहसास हो गया था। इसी कारण समय रहते हुए उन्होने अपने पुत्र चौधरी जयंत सिंह को ही आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय लोकदल की बागडोर उन्हें सौंप दी थी। उत्तर प्रदेश के मामले में जितने भी फैसले होते थे। चौधरी जयंत सिंह ही करते थे। यही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट समाज के साथ अपने व्यक्तिगत रिश्ते बनाने में भी वे आगे रहे। अपनी यात्राओं और किसान आंदोलन के दौरान मैंने पाया कि चौधरी चरण सिंह की परंपरा को उन्होने आगे बढ़ाने का काम किया है। हर गाँव के युवा जाट नेताओं के साथ उन्होने दिली रिश्ते कायम कर रखे हैं। इसी कारण उनके हर कार्यक्रम में स्वेच्छा से हजारो युवा जाट नेता पहुँच जाते हैं। और वे भी लोगों के यहाँ होने वाले मांगलिक कार्यों और दुखद प्रसंगों में सदैव शामिल होते रहते हैं। जिसकी वजह से यहाँ पर उनकी और उनकी पार्टी की लोकप्रियता बनी हुई है। पिछले कई वर्षों पूर्व समाजवादी पार्टी के साथ उनकी पार्टी का जो गठबंधन हुआ था। वह आज भी बरकरार है। दोनों युवा नेताओं में गज़ब की अंडरस्टैंडिंग भी देखने को मिलती है। किसान आंदोलन को बीच में छोड़ कर जाने के बाद जयंत चौधरी की ज़िम्मेदारी और बढ़ गई है। एक तरफ उन्हें किसान आन्दोलन को अंजाम तक पहुंचाना है। वहीं दूसरी ओर 2022 में अपने गठबंधन की सरकार भी बनानी है।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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