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कोरोना संक्रमण से बदहाल गाँव और अखिलेश का दृष्टिकोण

कोरोना संक्रमण से बदहाल गाँव और अखिलेश का दृष्टिकोण
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कोरोना संक्रमण अब उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में पहुंच गया है। अपने शुरुआती दौर में यह अधिकांश शहरों तक ही सीमित था। ग्रामीण इलाकों में एकाध ही संक्रमित मिल रहे थे। लेकिन अभी हाल में ही जो स्वास्थ्य विभाग का आकड़ा जारी हुआ। वह चौकाने वाला है। उस आकड़ें के अनुसार अब कोरोना संक्रमण की वजह से गावों की हालत बद से बदतर हो रही है । यहाँ हो रही मौतों के आकड़ों में हर दिन इजाफा हो रहा है। गाँव के गाँव के कोरोना संक्रमित होने की खबरें आ रही हैं। छोटे जिलों में जहां मौत की दर काफी कम थी, उसमें अब 10 से अधिक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई है। गावों के बीच में जो छोटे – छोटे कस्बे हैं, वहाँ पर यह प्रतिशत कुछ और ज्यादा है। बांदा, झांसी, जौनपुर, सोनभद्र, बलिया, बस्ती, हाथरस, पीलीभीत, सहारनपुर, बिजनौर में मौत का आकड़ा एक हजार के पार पहुँच गया है। अब स्थिति अधिकांश गावों में हर दिन किसी न किसी की मौत हो रही है।

जब गांव में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ी है तो मौत के आंकड़े भी वृद्धि होना स्वाभाविक है। गाँव वाले भोले होते हैं। उनके बीच अंधविश्वास गहरी जड़ जमा चुका है। इस कारण वे कोरोना जैसी बीमारी से बचने के लिए देवी-देवताओ की शरण लेता है। इस समय पूर्वाञ्चल के सभी जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों से यह खबर आ रही है कि गाँव की औरतें कोरोना देवी को शाम – सुबह धार दे रही हैं। उनकी पूजा – अर्चना कर रही हैं। नौ दिन चलने वाला यह कार्यक्रम अभी चल रहा है। इन गाँव की महिलाओं से जब मैंने बात की, तो पता चला कि उन्हें अपने अंध विश्वास पर पूर्ण विश्वास है। इस तरह की जितनी लापरवाही होगी, ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमित मरीजों की उतनी ही अधिक मौत होगी। दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों में न तो अच्छे हॉस्पिटल हैं और न ही कुशल एवं अनुभवी डॉक्टर हैं। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों की लगभग 90 प्रतिशत इलाज अप्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा किया जाता है। इस वजह से भी ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण फैलने में मदद मिली है। जबकि बचने का एक ही तरीका है - हर व्यक्ति मास्क का निरंतर प्रयोग करे, दो गज की दूरी का पालन करे और साबुन से कम से कम 20 सेकंड तक हाथ जरूर धोता रहे। इसके बावजूद अगर लक्षण दिखें, तो नजदीक के सरकारी हॉस्पिटल मे जांच कराये। बुखार, खांसी जैसे लक्षणों की वजह से कोरोना संक्रमित मरीजों से हो रही मौतों से गावों में दहशत है। कानपुर के घाटमपुर क्षेत्र के गावों में अभी तक 90 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इस संबंध मे जब मैंने गाँव के लोगों से बात की तो उन्होने बताया कि इसका मुख्य कारण पंचायत चुनाव है। आसपास के सभी गांवों में सैकड़ों लोग बुखार से पीड़ित हैं।

स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन की ओर से जांच और इलाज का कोई इंतजाम नहीं किया गया। इसलिए इस समय मरने के बाद जब उनकी जांच हो रही है, तो वे सभी पॉज़िटिव निकल रही हैं। लेकिन यह भी बात सही है कि जिन गांवों में सरकार द्वारा भेजी हुई जांच टीम पहुँच रही है। बुखार और खांसी से संक्रमित लोग कोरोना की जांच नही करा रहे हैं। वे अपने घर के किसी न किसी व्यक्ति को मेडिकल स्टोर भेज कर दवा मंगा कर उसे खा रहे हैं। ऐसे लोगों को जब सांस लेने में दिक्कत हो रही है। हालत बहुत सीरिअस हो जा रही है, तब हॉस्पिटल के लिए भाग रहे हैं। तब तक इतनी देर हो जा रही है कि उसे बचाना डॉक्टरों के बूते की बात नहीं रहती । लेकिन शहरों के पास जो गाँव है, वहाँ पर जांच कैंप लगाया गया है। लेकिन उनके बारे में लोगों के पास जानकारी कम है। इस कारण भी गाँव के लोग उन कैंपों में जांच के लिए नहीं पहुँच पा रहे हैं।

कारण कुछ भी हों, लेकिन गावों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। नित्य-प्रति मौतों का आकड़ा बढ़ रह है। लेकिन सरकार इस बात को मानने को तैयार ही नहीं है। ऐसे समय में जन कवि अदम गोंडवी की यह पंक्तियाँ चरितार्थ हो रही हैं - तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर यह आंकड़े झूठे हैं और दावा किताबी है। अगर आप गाँव के बीच से गुजरने वाली किसी मुख्य सड़क पर थोड़ी देर खड़े हो जाएँ, तो हर 15 – 20 मिनट के बाद दाह संस्कार के लिए जाते हुए लोग दिख जाएंगे। इसी से गावों में हो रही मौतों का अंदाजा लगाया जा सकता है। गाँव के नब्बे प्रतिशत लोग बुखार और खांसी से पीड़ित हैं। उसकी वजह कोरोना महामारी हो सकती है। लेकिन सरकार की तरफ से जिस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए, अभी तक नहीं हो पाई है। दूसरी ओर गाँव के लोग उसे साधारण खांसी और बुखार समझ कर इंगनोर करने का भी प्रयास कर रहे हैं। इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि तमाम गाँव ऐसे हैं, जहां से सरकारी हॉस्पिटल बहुत दूर है। इस वजह से भी लोग अपने परिजनों को जांच कराने के लिए वहाँ नहीं ले जा रहे हैं। पास के ही डॉक्टर से दवा लेकर इलाज कर रहे हैं। जब हालत बहुत खराब हो जा रही है, तभी उन्हें सरकारी हॉस्पिटल या किसी अच्छे हॉस्पिटल ले जाने की जहमत उठाते हैं। गांवों में झोलाछाप ही इस समय लोगों के भगवान बने हैं। गलत उपचार के चलते अब तक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है।

सरकार के तमाम निर्देश के बाद भी गांवों में हो स्वास्थ्य विभाग की टीम नहीं पहुंच रही है। इस वजह से भी लोगों की जांच नहीं हो पा रही है। वे कोरोना संक्रमित हैं कि नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हो पा रही है। होम आइसोलेशन के बारे में भी उन्हें न के बराबर जानकारी है। अगर कुछ लोग होम आइसोलेट हो भी गए हैं, तो उनकी मानीटरिंग ठीक से नहीं हो पा रही हा। घर के ही लोग ऐसे लोगों के पास जाने से बच रहे हैं। न उन्हें समय से दवा मिल पा रही है और न ही उन्हें काढ़ा और इम्यूनिटी बढ़ाने वाला भोजन ही दिया जा रहा है। यह हालत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जिले वाराणसी के गावों की भी है। वहाँ के आठ ब्लाकों में अभी तक 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि विशेष जांच अभियान चलाने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन इन दावों में बहुत दम नहीं दिख रहा है। वाराणसी के सभी ब्लाकों में संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

नदियों के आसपास बसे गावों के संक्रमित परिजनों की मौत हो जाने के बाद उन्हें गंगा, सरयू जैसी नदियों मे प्रवाहित कर दे रहे हैं। लकड़ियो का इंतजाम न होने पाने के कारण अधजली लाशें ही इन पवित्र नदियों में प्रवाहित कर दे रहे हैं। या फिर वहीं पास में ही पड़ी रेत में उसे दफना दे रहे हैं। जिसकी वजह से वे शव नदियो में तैरते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसकी वजह भी नदियों के किनारे बसे गावों में दहशत का माहौल बन गया है। इन लाशों के बुरी तरह सड़ जाने की वजह से बहुत दुर्गंध आ रही है। और अगर इसी तरह की स्थिति रही, तो किसी और महामारी के फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसकी सूचना जब पुलिस या प्रशासन को मिल रही है, तो वह उसे दफनाने या जलाने का प्रबंध करा रहा है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद गांवों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है। प्रत्याशियों के साथ ग्रामीण भी कोरोना की चपेट में आ गए हैं। यह भी सूचना मिल रही है कि कुछ नव निर्वाचित ग्राम प्रधान अपने अपने गाँव को सेनीटाइज्ड करने के लिए अपने पैसे से गांवों में छिड़काव भी करा रहे हैं। लोगों को मास्क बाँट रहे हैं, दो गज की दूरी का पालन करने को कह रहे हैं। यह भी अनुरोध कर रहे हैं कि अगर बुखार आयें, खांसी आए, तो कोरोना की जांच अवश्य कराएं । लेकिन ऐसे ग्राम प्रधानों की संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती है, इतनी कम है।

उत्तर प्रदेश का गृह जनपद गोरखपुर है। वे नियमित रूप से गोरखपुर प्रवास भी करते हैं। मैंने अपने अनुभवों में पाया है कि जिस जिले से मुख्यमंत्री होता है। वहाँ पर हर क्षेत्र में उच्चकोटि की व्यवस्था होती है। जितनी भी योजनाएँ होती हैं, उसी जिले से प्रारम्भ होती हैं। इसलिए कोरोना महामारी के लिए जो व्यवस्था की जा रही है, उसमें भी गोरखपुर अव्वल होगा, इसमे कोई संदेह नहीं होना चाहिए। लेकिन अभी तक इस जिले में मैंने अपने परिचितों और सहयोगियों से जो चर्चा की, उसके अनुसार इस जिले के गावों में भी कोरोना संक्रमण बड़ी तेजी से फैल रहा है। जैसी हालत प्रदेश के अन्य गावों की है, वैसी ही हालत यहाँ भी है। हालांकि यहाँ पर प्राशासनिक स्तर पर कुछ अधिक प्रयास हो रहा है, इसकी भी पुष्टि हुई है। सबसे ज्यादा संक्रमण गोरखपुर जिले के गोला, बांसगांव, सहजनवां, चौरीचौरा, पाली, खोराबार और कैंपियरगंज विकास खंड से संबंधित गांवों में है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मतदान के लिए थाईलैंड से भी तमाम लोग बुलाए गए थे। अपने गांव जाकर उन्होने मतदान भी किया । मुंबई, दिल्ली, सूरत, पुणे, चंडीगढ़, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार से भी सगे-संबंधियों को बुलाकर गोरखपुर के गावों में मतदान भी कराया गया। इस कारण भी यहाँ के गावों में कोरोना संक्रमण पहुंचा। ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कोरोना के इलाज की बेहतर व्यवस्था नहीं है। कोरोना की धीमी जांच हो रही है । उसकी रिपोर्ट भी हफ्ते भर बाद मिलती है। जिसकी वजह से संक्रमित मरीज खुद को कोरोना पॉज़िटिव नहीं मानता है, न ही उसके परिजन उसका इलाज शुरू करते हैं। जब तक रिपोर्ट आती है, तब तक इनमें से अधिकांश के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। इसके अलावा कोरोना कोरोना के इलाज की सामान्य दवाएं भी यहाँ स्थित मेडिकल स्टोर्स पर उपलब्ध नहीं है। एक एक टेबलेट के लिए उन्हें जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। इसके अलावा एक कारण और कोरोना संक्रमण के प्रसार को तीव्र कर रहा है। गाँव वालों के घरों में खाने के लिए अनाज हो सकता है। उसके खेतों में सब्जी हो सकती है। लेकिन उसके पास नगद पैसे का अभाव रहता है। अमीर से अमीर व्यक्ति के पास मौके पर एक हजार रुपए नहीं निकलते हैं। देखने में आया है कि अधिकांश लोग जब अपने करीबी डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं, तो पास-पड़ोस से उधार लेकर जाते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र दूर होने और पेट्रोल डीजल महंगा होने की वजह से भी कोरोना का अधिक प्रसार हो रहा है। लोगों के पास दहेज में मिला या खरीदा संसाधन तो है, लेकिन उसमें पेट्रोल डीजल डलाने के लिए पैसे नहीं हैं। गरीबी इस हद तक है। सरकार की ओर से दस किलो गेहूं और पाँच किलो चावल तो मिल जा रहा है। लेकिन उससे तो पेट की केवल भूख मिट सकती है। इलाज की व्यवस्था के लिए तो पैसे लगते हैं। वह कहाँ से आयें, इसी कारण गाँव का व्यक्ति झूठी शान के लिए बहानेबाजी करता है। टालमटोल करता है। इसलिए सरकार और प्रशासन को हर गाँव की जनता के हर पहलू का अध्ययन कर कोरोना संक्रमण रोकने का प्रयास करना चाहिए । लोगों को प्रशिक्षित करना चाहिये। उन्हें समझाना चाहिए कि कोरोना कितना खतरनाक हैं। आज कल हर गाँव में कुछ पढे लिखे लड़के या नौकरीपेशा लोग हैं। ऐसे में उनका सहयोग लेना चाहिए । उनसे कहना चाहिए कि वे घर घर जाकर लोगों को मास्क पहनने और दो गज की दूरी का पालन करना चाहिए। सरकार को ही सेनीटाइजर उपलब्ध कराना चाहिए। जांच शिविर लगाने के पूर्व गाँव वालों को विश्वास में लेना चाहिए। इसके लिए एक टीम शिविर के पूर्व गावों में भेजी जानी चाहिए। किसानों और मजदूरों के वैक्सीनेशन का अलग से अभियान चलाना चाहिए। तभी गावों में कोरोना संक्रमण फैलने से बचाया जा सकता है।

गावों में बड़ी तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण से चिंतित समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज वस्तु स्थिति चिंता प्रकट की । उनका मानना है कि शहरों के बाद प्रदेश के गांवो में कोरोना संक्रमण तेजी से फैलने लगा है। मौत का कहर बरपा रहे संक्रमण पर शासन-प्रशासन जानकर अनजान बन रहा है। भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों अपनी नाकामी छुपाने के लिए कोरोना नियंत्रण, जांच और वैक्सीनेशन प झूठा ढिढ़ोरा पीटने में लगे है। इस कारण भाजपा सरकार जनता जनता को बोझ जैसी प्रतीत हो रही है। गांवो में ताबड़तोड़ हो रही मौतों से दहशत व्याप्त है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रभारी मंत्री कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। जो घर से निकल रहे हैं, वह भी सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं। मेरठ के प्रभारी मंत्री तो पिछले दिनो दो घंटे सर्किट हाउस के एसी कमरे में बैठकर चले गए और उन्होने जनता की न तो तकलीफें सुनी और नहीं अस्पतालों का निरीक्षण किया। भाजपा सरकार और उनके मंत्रियो की संवेदनहीनता मर चुकी है।

गांवो में कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार दवाई, टेस्ट, डाक्टर तथा टीके को कोई इंतजाम नहीं कर पा रही है। गांवो में स्वास्थ्य का ढांचा भाजपा सरकार ने पहले से ही ध्वस्त कर दिया है। वे असहाय मूकदर्शक बन गए हैं। जिन पर लोगों के इलाज की जिम्मेदारी है वे हाथ पर हाथ धरे बैठे है। गोंडा के गांवों में शहरों से 7 गुना ज्यादा संक्रमित पाए गए हैं । गत दिवस 119 मरीजों में से 105 ग्रामीण पॉजिटिव पाये गए। पंचायत चुनावों के बाद संक्रमण दर 18 प्रतिशत तक पहुंच गई है। खुद मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना कहर से हाहाकार मचा हुआ है। अधिकारी आंकड़ो पर पर्दा डालने के खेल में लगे हुए हैं। गोरखपुर की ग्राम पंचायतों में 46 हजार ग्रामीण खांसी, बुखार की चपेट में हैं प्रशासन सिर्फ 764 की संख्या बताकर अपनी नाकामी छुपा रहा है। लोग खांसी, बुखार और सांस फूलने से परेशान है। अभी तक पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं गांवो तक नहीं पहुंच पा रही है। कानपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में भी हालात बेकाबू हो रहे है। चौबेपुर गांव में 15 दिन में 35 मौतें हुई। ग्राम घसारा में 11 दिन में 13, ग्रामीण पीपली में 7 मौतें हुई। ग्राम परसहा में एक महीने में 24 मौतें हुई। बुखार-खांसी के तमाम मरीज हैं। बरेली के क्यारा गांव में बुखार-खांसी से 26 मरे। बुलन्दशहर के बसी गांव में 8 बुखार से मरे जब कि मदनपुर के नकईल गांव में 20 दिन में 15 मौतें हुई है। मुजफ्फरनगर के सोरम गांव में 12 मौतें हुई। कई गांवो में लोग बुखार में तप रहे हैं। उन्हें कोई पूछने वाला नहीं। भाजपा सरकार बस इलाज की जगह इश्तहार और जिंदगी की जगह मौत बांट रही है। इसके बावजूद चारों ओर हाहाकार की चीखें भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कानों तक नहीं पहुंच रही है। वे अपनी सभी मानवीय संवेदनाएं खो चुके हैं। गंदी राजनीति और झूठा प्रचार कर वे आत्ममुग्ध हो रहे हैं। पर उन्हें नहीं पता कि जनता उनको किस निगाह से देख रही है, इसका अंदाजा उन्हें सन् 2022 के चुनावो में ही लगेगा। जब जनता उन्हें सत्ता से उखाड़ फेकेंगी।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव (गुरुजी)

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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