कोरोना महामारी पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के विचार

भारतीय जनता पार्टी के मूल विचार का स्रोत राष्ट्रीय स्वयं संघ हैं। संघ प्रमुख का एक-एक शब्द राष्ट्रीय स्वयं सेवकों और भाजपा के लिए वेद वाक्य की तरह होता है। वे उसका अक्षरश: पालन करते हैं। वैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक और संघ प्रमुख बार-बार यह घोषणा करते हैं कि वह कोई राजनीतिक संघटन नहीं है। न ही भारतीय जनता पार्टी के कार्यों में वह हस्तक्षेप करते हैं । लेकिन इस संबंध में समाज में दूसरे प्रकार की चर्चाए होती हैं। उसके अनुसार भाजपा की मदर बॉडी संघ है। व्यवहार में भी यही देखने को आया है कि संघ के पदाधिकारी किसी भी विधायक / सांसद पर भारी पड़ते हैं। लेकिन यह भी सही है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करता है। यह जरूर है कि अभी उसके कार्यों का लाभ आम आदमी को नहीं मिल पाता है। या उसके कार्यों की चर्चा आम आदमियों के बीच में नहीं होती है। उसके सारे कार्य साइलेंटली होते हैं। उसका बहुत ढिढोरा नहीं पीटा जाता है। आज जब उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में भाजपा की सरकार है और केंद्र में भी वह काबिज है और सम्पूर्ण भारत कोरोना महामारी से जूझ रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का क्या विचार है ? इस देश की जनता उसे भी जानना चाहती है। खैर जब कोरोना का पीक समाप्त हो गया। आक्सीजन की किल्लत की वजह से हजारों लोग मारे गए। अभी भी हजारो लोग उसकी किल्लत से रोज जूझ रहे हैं। सरकार विशेषकर केंद्र सरकार की लापरवाही की वजह से इतनी अधिक मौते हुई। विधानसभा चुनाव में मशगूल केंद्र सरकार के मंत्री बड़ी तेजी से फैलते हुए कोरोना संक्रमण की भयावहता का अनुमान नहीं लगा सके। इस वजह से कोरोना जब अपने पीक पर पहुंचा, तो रोज हजारों नागरिकों को अपना शिकार बनाने लगा। पूरे देश मे अघोषित कर्फ़्यू लगा हुआ है। जनता इतनी भयभीत है कि वह स्वेच्छा से खुद को अपने घरों में बंद किए है। बहुत जरूरी कोई काम नहीं हो, तो लोग अपने घरों से नहीं निकल रहे हैं।
ऐसी भयावह स्थिति में संघ प्रमुख मोहन भागवत मीडिया के द्वारा चलाई जा रही एक श्रुंखला में भाग लेते हुए बड़ी बेबाकी के साथ उन्होने अपना विचार जनता के सामने प्रकट किया। इससे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विचार भी जनता को जानने का मौका मिला । मोहन भागवत ने कोरोना महामारी पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थिति कठिन है। निराश करने वाली है, लेकिन नकारात्मक नहीं होना है। मन को भी नकारात्मक नहीं रखना है। हम जीतेंगे यह बात भी निश्चित है। लेकिन थोड़ा सी गफलत हुई। शासन-प्रशासन, लोग सभी गफलत में आ गए। इसलिए दूसरी लहर आई। अब तीसरी लहर की बात हो रही है, तो बैठना नहीं लड़ना है। जब तक जीत न जाएं तब तक। मोहन भागवत ने अपने उदबोधन के प्रारम्भ में सच्चाई को स्वीकार करते हुए लोगों का हौसला भी बढ़ाया। उन्होने इस बात को भी स्वीकार किया कि चाहे सरकार हो, प्रशासन हो या आम जनता हो, सभी इस गफलत में आ गए कि पहली बार आए कोरोना संक्रमण की ही तरह इस बार भी होगा। मास्क लगाने भर से काम चल जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नए स्ट्रेन ने सरकार और जनता दोनों की लापरवाहियों का फायदा उठा कर हाहाकार मचाने के लिए मजबूर कर दिया।
मोहन भागवत ने आगे कहा कि अभी सकारात्मकता पर बात करना बहुत कठिन है, क्योंकि समय बहुत कठिन चल रहा है। अनेक परिवारों में कोई अपने, कोई आत्मीय बिछड़ गए हैं। अनेक परिवारों में तो भरण-पोषण करने वाला ही चला गया। 10 दिन में जो था, वह नहीं था हो गया। अपनों के जाने का दुख और भविष्य में खड़ी होने वाली समस्याओं की चिंता, ऐसी दुविधा में तो परामर्श देने के बजाए पहले सांत्वना देना चाहिए। यह सांत्वना के परे दुख है। इसमें तो अपने आपको ही संभालना पड़ता है। प्राय: संघ के मसले पर विरोधियों और विपक्षियों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि इस कोरोना महामारी में जनता की सेवा के लिए संघ क्या कर रहा है ? उसका भी जवाब देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि इस समय संघ के स्वयंसेवक समाज की जरूरतें पूरी करने के लिए अपनी क्षमता के अनुसार सक्रिय हैं। ये कठिन समय है। अपने लोग चले गए। उन्हें ऐसे असमय नहीं जाना था। परंतु अब तो कुछ नहीं कर सकते। अब तो इस परिस्थिति में हम हैं। जो चले गए, वे तो चले गए। उन्हें इस परिस्थिति का सामना नहीं करना है, हमें करना है। हमें अपने आपको, सभी को सुरक्षित रखना है। इसलिए हमें नकारात्मकता नहीं चाहिए। सब कुछ ठीक है, ऐसा हम नहीं कह रहे हैं। परिस्थिति दुखमय है। मनुष्य को व्याकुल और निराश करने वाली है।
सबसे पहले बात मन की है। मन अगर हमारा थक गया, हार गया तो सांप के सामने चूहे जैसा हो जाता है, अपने बचाव के लिए कुछ करता नहीं, ऐसी हमारी स्थिति हो जाएगी। हमें ऐसी स्थिति नहीं होने देनी है। हम कर रहे हैं। जितना दुख है उतनी ही आशा है। समाज पर संकट है। यह निराशा की परिस्थिति नहीं है। लड़ने की परिस्थिति है। क्या ये निराशा, रोज 10-5 अपरिचित लोगों के जाने के समाचार सुनना, मीडिया के माध्यम से परिस्थिति बहुत विकराल है इसका घोष सुनना, ये हमारे मन को कटु बनाएगा। ऐसा होने से विनाश ही होगा। ऐसी मुश्किलों को लांघकर मानवता आगे बढ़ी है। विपत्ति आती है तो हमारी प्रवृत्ति क्या होती है। हम जानते हैं कि ये जीवन-मरण का चक्र चलता रहता है। मनुष्य पुराना शरीर छोड़कर नया शरीर धारण करता है। हम ऐसा मानने वाले लोग हैं। हमें ये बातें डरा नहीं सकतीं। उन्होने एक उदाहरण भी प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल बने तो उनकी टेबल पर एक वाक्य लिखा रहता था। हम हार की चर्चा में बिल्कुल रुचि नहीं रखते, क्योंकि हमारी हार नहीं होने वाली। हमें जीतना है। चर्चिल जीते भी। इसी भरोसे से ब्रिटेन की जनता ने शत्रु को परास्त किया। वे निराश नहीं हुए।
हमें भी संकल्प करके इस चुनौती से लड़ना है। संपूर्ण विजय पाने तक प्रयास करना है। पहली लहर जाने के बाद हम सब जरा गफलत में आ गए। क्या जनता, क्या शासन, क्या प्रशासन। डॉक्टर लोग इशारा दे रहे थे। फिर भी थोड़ी गफलत में आ गए। इसलिए ये संकट खड़ा हुआ। अब तीसरी लहर की चर्चा है। इससे डर जाएं क्या? डरना नहीं है। उससे लड़ने की तैयारी करनी है। इसी की जरूरत है। समुद्र मंथन के समय कितने ही रत्न निकले। उनके आकर्षण से प्रयास नहीं रुके। हलाहल से भी प्रयास नहीं रुके। अमृत प्राप्ति होने तक प्रयास होते रहे। सारे भेद भूलकर, गुण दोष की चर्चा छोड़कर सभी को मिलकर काम करना है। देर से जागे तो कोई बात नहीं। सामूहिकता के बल पर हम अपनी गति बढ़ाकर आगे निकल सकते हैं। निकलना चाहिए। कैसे करना है। पहले अपने को ठीक रखें। इसके लिए जरूरी है -संकल्प की मजबूती। दूसरी बात है सजग रहना। सजग रहकर ही अच्छा बचाव हो सकता है। शुद्ध आहार लेना जरूरी है, लेकिन इसकी सही जानकारी लेना है। कोई कहता है, इसलिए नहीं मान लेना है। अपना अनुभव और उसके पीछे के वैज्ञानिक तर्क की परीक्षा करना चाहिए। हमारी तरफ से कोई बेसिरपैर की बात समाज में न जाए। समाज में चल रही है तो हम बलि न बनें।
सावधानी रखकर ऐसे उपचार और आहार का सेवन करना है। विहार का भी ध्यान रखना है। खाली मत रहिए, कुछ नया सीखिए। परिवार के साथ गपशप कीजिए। बच्चों के साथ संवाद कीजिए। मास्क पहनना है। पर्याप्त अंतर पर रहकर एक दूसरे से संबंध रखना अनिवार्य है। वैसे ही सफाई का ध्यान रखना। सैनिटाइजर इस्तेमाल करते रहना। सारी बातें मालूम हैं हमें, लेकिन अनदेखी होती है, असावधानी होती है। कुछ लोग कोरोना की पॉजिटिविटी बदनामी मानकर छिपाकर रखते हैं। जल्दी इलाज नहीं कराते। समय पर इलाज होता है तो कम दवाओं में ही इस बीमारी से बाहर आ सकते हैं।
आने वाली परिस्थिति की चर्चा हो रही है, यह पैनिक क्रिएट करने के लिए नहीं है। वह तो आगाह किया जा रहा है तैयारी के लिए। नियम के साथ चलें। ऐसा हम करेंगे तो आगे बढ़ेंगे। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, ऐसा देश है हमारा। कठिन जंग लड़नी होगी। जीतनी होगी। जो परिस्थिति आई है, यह हमारे सद्गुणों की परख करेगी। हमारे दोषों को भी दिखा देगी। दोषों को दूर करके, सद्गुणों को बढ़ाकर यह परिस्थिति ही हमें प्रशिक्षित करेगी। यह हमारे धैर्य की परीक्षा है। याद रखिए यश अपयश का खेल चलते रहता है। संघ प्रमुख ने कोरोना महामारी से हो रही सबसे बड़ी हानि को इंगित करते हुए कहा कि बच्चों की शिक्षा पिछड़ने का यह दूसरा वर्ष होगा। अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से, उनकी परीक्षा होगी या नहीं, प्रमोट होंगे या नहीं, इसकी चिंता छोड़कर, वे जो ज्ञान 2 साल में प्राप्त करने वाले थे, उसमें पिछड़ न जाएं, समाज के तौर पर इतनी चिंता हमें करनी चाहिए। कई लोगों का रोजगार चला गया है। रोज काम करके कमाने वाले भूखे न रहें। उनकी सुध लेनी है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य में उन सभी पहलुओं को छूआ। जिसकी जरूरत नहीं थी। उन्होने न तो प्रशासन को छोड़ा, न केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को। लेकिन उन्होने उनकी इतनी भी आलोचना नहीं की, जिससे उनका मनोबल टूट जाए। वहीं किस तरह से कोरोना महामारी की वजह से हमारा पूरा ढांचा चरमरा रहा है। उसका जिक्र किया। लोगों में उत्साह भी भरा और संघर्ष का माद्दा भी भरा ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव (गुरुजी)
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट