शक्ति उपासना तथा शाक्त सिद्धान्त का ज्ञान केवल गुरू के उपदेश से ही संभव:- ( निरंजन मनमाडकर )

साम्प्रतकाल में विविध भाषाओं में कई सारे पत्रिका एवं किताबें लिखि जा रही है जो केवल भाषाओं के विद्वत गण लिख रहे है जिन्हे सम्प्रदाय से दीक्षा प्राप्त नही है, तो जिज्ञासु एवं शाक्त सम्प्रदाय के सभी भक्तों उपासकों को चाहिए की शाक्तों के उपर लेखन कोई भी करें किन्तु उनका लेखन सम्प्रदाय में प्रमाण हेतू स्वीकार्य कदापि नही यदि वे दीक्षित नही है! ध्यान रहें...
ॐ नमश्चण्डिकायै
©️निरंजन मनमाडकर श्रीक्षेत्र पंढरपूर
शक्ती उपासना तथा शाक्त सिद्धान्त का ज्ञान केवल श्रीगुरू महाराज के उपदेश से ही संभव है.
बाकी सबकुछ व्यर्थ है! अतः विश्वविद्यालय से प्राप्त डिग्री, लेखन कौशल्य, तकनीकी कुशलता एवं लोकप्रियता आदि कितने भी गुण हो और यदि सम्प्रदाय से प्राप्त दीक्षा न हो ऐसे विद्वान महानुभाओंसे प्राप्य ज्ञान को उपेक्षित दृष्टीसे देखना चाहिए!
ब्रह्मविद्या किसी की कृती नही है! वह तो गुरूदेव के सान्निध्य से प्राप्त होती है अतः उसे श्रुति कहते..!
श्रीमद् भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय के दुसरे श्लोक पर भगवत्पाद आचार्यश्री का भाष्य मन्तव्य है वहा इस विषयपर विस्तार पूर्वक चिंतन किया है वे कहते है
असम्प्रदायवित् सर्वशास्त्रविद् अपि मूर्खवद् एव उपेक्षणीयः।
सर्वशास्त्रोंका ज्ञाता होकर भी यदि सम्प्रदाय से दीक्षित न हो तो उसकी वाच्यता एवं विश्लेषण को मूर्खकी भाँति उपेक्षा करना चाहिए!
यहापर एवकार आया है मतलब मूर्खकीतरह ही उपेक्षा करनी है!
भगवान शंकराचार्य कहते है वह मूर्ख (असम्प्रदायवित्) स्वयं मोहित हो रहा है तथा अन्य जनोंसे को भी मोहमें डालता है.
आत्महा स्वयं मूढः अन्यान् च व्यामोहयति..!
अतः ब्रह्मविद्या कृती नही अपितु श्रुती है!
उसे कर्णात्कर्णोपदेशेन सम्प्राप्त अवनीतले..
गुरू उपदेश से ही जाना जा सकता है
न की किसी मासिक पत्रिका, वार्षिक पत्रिका के सदस्यत्व एवं फेसबुक जैसे महाजालिय माध्यमोंसे तथा किताबोंसे! योग्य सम्प्रदायिक गुरूसे दीक्षा प्राप्त कर यह साधना करनी चाहिए!
आजकल बहोत सारे बाजारू मंत्र का क्रय करने वाले तथा पुस्तक एवं पत्रिकाओंमे आर्टिकल छपवाकर बडी बडी बाते करणे मोहित करने वाले असम्प्रदायिक लोग है...!
इनसे सावधान रहना चाहिए!
ध्यान रहे
यदि वे अपना १. सम्प्रदाय
२. आचार
३. परम्परा
४. मंडली
५. श्रीनाथादी गुरू त्रय
६. सम्प्रदाय गोत्र
७. कुल एवं दीक्षानाम नही बता पाते तो उन्हे केवल मूर्खवद् देखना चाहिए!
शक्ति उपासना, श्रीविद्या उपासना में यदि पीएच.डी भी की हो, बडे बडे आलेखों की रचना की हो तभी भी उनके प्रति श्रद्धा भाव से नही देखना चाहिए!
ध्यान रहें आज कल जबभी शाक्त सम्प्रदाय एवं श्रीविद्या संबंधित कोईभी पत्रिका एवं पुस्तक अध्ययन हेतू आधारभूत लेना हो तो लेखक की लोकप्रियता एवं विश्वविद्यालय की डीग्री न देखे अपितु उपरोक्त सम्प्रदाय की पात्रता देखें अन्यथा मूढवत् उपेक्षणीयः यह ध्यान मे रखे..!
ॐ नमश्चण्डिकायै
लेखन व प्रस्तुती
@©️निरंजन मनमाडकर श्रीक्षेत्र पंढरपूर
श्रीकृष्णावेणीअक्षय्यकृपाप्रसादमस्तु
ॐ श्री मात्रे नमः
ॐ श्री गुरूभ्यो नमः