भारत में गैर कांग्रेसवाद के जन्मदाता डॉ० राममनोहर लोहिया थे
BY Anonymous12 Oct 2017 1:24 AM GMT

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Anonymous12 Oct 2017 1:24 AM GMT
डॉ० लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जनपद में (वर्तमान−अम्बेडकर नगर जनपद) अकबरपुर नामक स्थान में हुआ था। राम मनोहर लोहिया भारत के प्रमुख समाजवादी विचारक, राजनीतिज्ञ, मौलिक चिंतक और स्वतंत्रता सेनानी थे। संसद में भारत सरकार के अपव्यय पर की गयी उनकी बहस 'तीन आना−पंद्रह आना' आज भी प्रसिद्ध है। स्वभाव से फक्कड़ और जनप्रिय डॉ. लोहिया कहा करते थे, लोग मेरी बातें सुनेंगे जरूर.. शायद मेरे मरने के बाद, मगर सुनेंगे जरूर। 1967 में भारत में अनेक राज्यों में गैरकांग्रेस सरकारें उन्हीं की देन थीं। उन सरकारों में कथित दक्षिणपंथी और वामपंथियों को एक झंडे के नीचे लाने वाले लोहिया ही थे। हालाँकि उनकी असामयिक मृत्यु 1967 में ही हो गई थी मगर उनके गैर कांग्रेसवाद के एजेंडे को बाद में उन्हीं के साथी जय प्रकाश नारायण ने 10 साल बाद 1977 में अमली जामा पहनाया।
लोहिया अपने रचनात्मक विरोध के लिए देशभर में जाने जाते थे। गांधीवादी और पंडित नेहरू के अभिन्न मित्र होने के बावजूद उन्होंने नेहरू की नीतियों का समय समय पर घोर विरोध किया। 1962 में उन्होंने नेहरू के विरुद्ध लोकसभा का चुनाव लड़ा और हारे। बाद में अपने साथियों का अनुरोध स्वीकार करते हुए फर्रुखाबाद से उप चुनाव लड़ा और लोकसभा में पहुंचे। लोकसभा में पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ। अविश्वास प्रस्ताव के प्रमुख वक्ता डॉ. राममनोहर लोहिया थे। नब्बे मिनट तक डॉ. लोहिया धारा प्रवाह हिन्दी में संसद में बोलते रहे। उनकी बात का शीर्षक था− तीन आना बनाम तीन रूपये। लोहिया ने कहा− मेरे प्यारे प्रधानमंत्री नेहरूजी के राज में आम जनता तीन आना से कम पर ही गुजर करती है। प्रधानमंत्री के कुत्ते का खर्च तीन रूपये रोज का है। तत्कालीन मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने पंडित नेहरू को एक पर्चा दिया जिसमें लिखा था− तीन आना नहीं पंद्रह आना। पंडित नेहरू ने अध्यक्ष की अनुमति से हस्तक्षेप करते हुए कहा− राममनोहर, यह तीन आना नहीं पंद्रह आना है। पंडित जी को संसदीय शिष्टाचार याद आ गया। उन्होंने अपने आपको संभालते हुए कहा− माननीय सदस्य, आम आदमी की उपलब्धि तीन आना नहीं पंद्रह आना है। लोहिया जी ने स्पीकर की अनुमति प्राप्त कर हस्तक्षेप करते हुए पंडित नेहरू से कहा− पंडित जी आपके राममनोहर संबोधन से मेरा दिल पुरानी यादें ला रहा है। मैं बहुत खुश हूँ कि मैं आपकी आलोचना करता जा रहा हूँ आप मुझे वही स्नेह देते जा रहे हैं जो स्वराज से पहले देते थे।
डॉक्टर लोहिया ने आंकड़े बताते हुए कहा− पंडित जी, नंदा जी को उनके अफसर भरमा रहे हैं। आंकड़ा तीन आना ही है पंद्रह आना नहीं। मैं नंदा जी से उनके दफ्तर में मिल कर सफाई दूँगा। अगले दिन इंडियन ऐक्सप्रेस के पहले पेज में संपादकीय छपा। उन्होंने हिंदी में ऐसे संसदीय भाषण की भूरि−भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा कि हिन्दुस्तानी भाषाओं में भी ओज है। लोकसभा में लोहिया की तीन आना बनाम पंद्रह आना बहस बहुत चर्चित रही। उस समय उन्होंने 18 करोड़ आबादी के चार आने पर जिंदगी काटने तथा प्रधानमंत्री पर 25 हजार रुपए प्रतिदिन खर्च करने का आरोप लगाया। देश आज भी लोहिया की शुद्ध संसदीय बहस का कायल है। विपक्ष ही नहीं तत्कालीन सत्ता पक्ष के नेताओं ने भी लोहिया के तर्क पूर्ण भाषण की भूरी भूरी प्रसंशा की थी।
वर्ष 1960 के दशक में ही डॉ. लोहिया ने देश की भावी समस्याओं को बखूबी समझ लिया था। इसीलिए वह कहा करते थे− गरीबी हटाओ, दाम बांधो, हिमालय बचाओ, अंग्रेजी हटाओ, नदियां साफ करो, पिछड़ों को विशेष अवसर दो, बेटियों की शिक्षा व विकास का समुचित प्रबंध हों, गरीबों के इलाज का इंतजाम हो, किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य मिले, खेती और उद्योग में समन्वय बनाकर विकास का एजेंडा तय हो, गरीबी के पाताल और अमीरी के आकाश का फासला कम करने के जतन हों। लोहिया के उठाये मुद्दे आज भी प्रासंगिक और ज्वलंत हैं। देश की राजनीति आज भी उनके इर्द गिर्द चक्कर काट रही है। लोहिया का शरीर जरूर शांत हुआ मगर उनकी आत्मा आज भी जिन्दा है। उनके विचार आज भी जन जन के प्रेरणास्रोत हैं।
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