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भोजपुरी कहानिया

पगला मास्टर ( कहानी )

पगला मास्टर ( कहानी )
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बिना पैरवी और घुस के नौकरी मिली थी गोपाल भगत को मास्टरी की , कंपटीशन से पास हुए थे । स्कूल दूसरे जिला में मिल गया था । रहने वाले तो गोपालगंज के थे , अब रसूलपुर ( छपरा ) में योगदान आरंभ हुआ । गणित के शिक्षक थे । बच्चों से स्नेह , कर्म के प्रति सजगता और देश बदलने की जिम्मेदारी का अत्यधिक बोध उन्हें लोकप्रिय बना रहा था । सुबह 10 बजे शुरू होते तो 4 बजे तक कोई भी घंटी नागा नही करते थे ।
साथी शिक्षक कभी 11 बजे आते तो कभी 12 बजे और 2 बजे या 3 बजे तक चले जाते थे । बीच का समय विद्यालय का प्रांगण राजनीतिक चौपाल बना रहता था । प्रधानाध्यापक श्रीवास्तव जी कुछ करते नही थे , बस मजलिस के प्रधान थे।उनका काम सिंह जी संभालते थे । कुछ शिक्षक अपने निजी स्कूल भी चलाते थे जी हाजिरी बना कर चले जाते थे । शिक्षिका 3 थी जो स्वेटर में उलझी रहती थी और रसिक गुरु जी के मनोरंजन का साधन बनी रहती थी ।
एक दिन प्रधानाचार्य जी ने बुलाया गोपाल जी को और कहा , "गोपाल जी इतने गंभीर न रहिये ।हम सब से कुछ सीखिये । मस्त रहिये । घरेलू काम हो तो अवकाश ले लीजिए । सब चलता है यहां पर , आप बच्चो की चिंता न कीजिये । भगवान के कृपा से उनका भविष्य उज्ज्वल ही होगा । यह विद्यालय के फंड के पेपर है । हस्ताक्षर कर दीजिए । 15 लाख का खर्च दिखाना है ।आपको आपका हिस्सा मिल जाएगा । "
गोपाल जी ने कहा ," सर ,लेकिन आपने यह रकम तो विद्यालय के लिए खर्च किया नही है और इस तरह बच्चो के भविष्य से न खेलिए । मैं आप सब की शिकायत बीडीओ साहब से करूँगा । "
बात बीडीओ तक पहुँची। नए बीडीओ साहब 5 लाख में मामले को रफा - दफा कर दिए । 25 लाख घुस देकर बने थे बीडीओ तो वसूली तो बनती है न ! गोपाल जी को कार्यवाही का आश्वाशन मिल गया ।
कुछ दिन बीत गए । प्रधानाध्यापक सहित गांव के मुखिया और सहायक शिक्षकों ने गोपाल जी को फँसाने का प्लान बनाया और प्यादा बनी अनुराधा देवी जो शिक्षिका थी ।
लंच का समय था । आपस मे विरोध के चलते गोपाल जी अकेले लंच करते थे ।ऑफिस के पीछे वाले किरानी रूम में जो की किरानी के नियुक्ति नही होने से खाली था , वही लंच कर रहे थे ।अनुराधा जी आयी तब तक लंच कर चुके थे गोपाल जी ।वह सहसा आके लिपट गयी और चिल्लाने लगी । पूर्वनियोजित प्लान के तहत सहयोगी शिक्षक और प्रधानाचार्य बच्चो के साथ कोलाहल सुन के आ गए । अनुराधा ने खुद को आपत्तिजनक बना रखा था । मुखिया भी पहुँच चुका था । गोपाल जी की पिटाई हो रही थी और अधमरे से हो गए थे ।
पूरे जिले में यह प्रसंग चर्चा में था । गुरुजी पर सब थूक रहे थे । मुकदमा भी हो गया । गोपाल जी के परिजन पहुचे लेकिन पत्नी न पहुची । कारण उसके पिता आ कर उसे अपने घर ले के चले गए थे । वह मुखिया से परिचित थे और मुखिया ने गोपाल जी के चरित्र का कुटिल सत्यापन उनके पत्नी और ससुर के सामने कर चुका था ।अब गोपाल जी की पत्नी भी उनसे कोई संबंध नही रखना चाहती थी ।
निलंबन की गाज गिर गयी । नौकरी और पत्नी दोनों के एक साथ जाने का दंश गोपाल जी झेल न पाए । कुछ साल तक डीएम साहब के पास और अदालत के चक्कर लगाते रहे । 5 साल बेरोजगारी , अपनो के दुत्कार के बाद अदालत ने भी जब दोषी होने का प्रमाण पत्र दिया तो गोपाल जी संभल नही पाए ।
माता तो पहले ही गुजर गई थी ,यह दाग पिता के अंत का कारण बनी ।
अब पत्नी के पास पहुँचे गोपाल जी तो पता चला की उनके अदालत से प्राप्त प्रमाणपत्र के बाद वह किसी और से विवाह करने जा रही है ।
अपील उच्च न्यायालय में कर आये थे और रोज विद्यालय के पास जा के बैठते थे । कहते थे कि मैं निर्दोष हूँ ।घर पर कोई और नही था और अकेलापन मति विक्षिप्त होने का कारण बन रही थी । ऊपर से लोगों का रिगाना ... अब 3 साल बाद सिवान जंक्शन पर गोपाल जी फटे कपड़ो में बीड़ी और सिगरेट के अधजले भाग को बिन कर पीते रहते है ।
कहते हैं ," मैं निर्दोष हूँ .. बच्चो को देखकर बीज गणित के सूत्र बताने लगते हैं ... बस कंकालतंत्र पर कुछ चमड़े की खाल सी बची है ..सिस्टम पर सवाल उठाते हुए ... न कोई धरने का दिन निर्धारित है .. न कोई विरोधा का खास तरीका ... मिल जाएंगे ... सिवान स्टेशन पर .....।


सुधीर पाण्डेय
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