चाय के आखरी चुस्की- धनंजय तिवारी
BY Suryakant Pathak28 May 2017 5:50 AM GMT

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Suryakant Pathak28 May 2017 5:50 AM GMT
जईसे ही विजय ऑफिस जाए खातिरा घर से दरवाजा पर अयिले, उनकर मोबाइल बाजे लागल। उ रूक के मोबाइल जेब से निकलले अउरी नंबर देख के चिहा गईले। स्क्रीन पर संतोष भैया कालिंग आवत रहे। संतोष भईया काहे फ़ोन करतारे। पिछला पांच से साल से ओ लोग के बीच कवनो सम्बन्ध ना रही गईल रहे। बातचीत से लेके आईल गईल सब बंद हो गईल रहे। पुरनका रिस अउरी नफरत फेरु चेहरा पर उभर आईल। उ फ़ोन काट देंहले।
"केकर फ़ोन रहल ह जी?" पीछे से उनकर मलिकाईन पूछली।
उनका जबाब देबे से पहिले ही मोबाइल के घंटी फेरु बाजे लागल।
"संतोष भईया के फ़ोन ह। अब कौन रिश्ता बचल बा जे फ़ोन करतारे।"
"अच्छा एक बार देख त लीं। आखिर बात का बा।"
विजय फ़ोन रिसीव क लेहलें।
"भैया गोंड लागतानी" अपना रिस के दबावत विजय गाभी मरलें "का बात बा। तू त कबो फ़ोन ना करेल। आजू कवन काम पड़ गईल कि फ़ोन कईले बाड़े।"
"तहार भाभी बहुत सीरियस बाड़ी। डॉ जबाब दे देले बाड़े। बस कुछ समय के मेहमान बाड़ी। उनकर आखिरी इच्छा बाकि तहरा साथे एगो चाय के चुस्की ले लेस। एही खातिर उनकर प्राण अटकल बा।"
इ सुनके विजय के सारा रिस एक पल में फुर्र हो गईल। अईसन लागत रहे जईसे केहू सारा खून निचोड़ लेले बा। सांस ऊपर नीचे होखे लागल। भले संतोष भैया अउरी उनका परिवार से उनकर पांच साल पहिलें छुट्टा छुट्टी हो गईल रहे। पर संतोष बो भाभी या उनका परिवार के बारे में उ कबो बुरा ना सोचले रहले। आजू उनका मन में कही जरूर इ बात रहे कि फेरु पुरनका दिन वापस आई। भाभी के बारे में जान के त अब उनका पूरा दुनिया उलटत पुलटत लागत रहे।
"का भईल बा भाभी के हो?" विजय अपना के सम्हारत पूछ्ले।
"उनका कैंसर हो गईल बा" संतोष भैया रुआंसा हो गईलें "हम जानतानी तू बहुत दूर बाड़ अउरी ओयिजा से आईल बड़ा मुस्किल बा, लेकिन संभव होखे त अपना भाभी के आखरी इच्छा पूरा क द।"
कहिके ओने से फ़ोन कट गईल अउरी विजय धीरे धीरे सब बात अपना मलिकायिन के बता देहले।
काफी देर सोच विचार के बाद उनकर बैग तैयार हो गईल अउरी उ स्टेशन खातिर निकल पडले। बच्चा लोग के परीक्षा चलत रहे त पूरा परिवार के गईल संभव ना रहे। 11 बजे गांवे जाए वाला ट्रेन रहे।
ट्रेन नियत समय पर आईल अउरी ज्यादा भीड़ ना रहे। पेनाल्टी देके सीट मिल गईल।
चुकी दिन के समय रहे, अधिकतर सहयात्री लोग बईठल रहे पर विजय अपना सीट पर जाके लेट गईले। लेकिन उनका आंखी में नीनं कहाँ रहे। बस कुल पुरान बात चलचित्र खान चलत रहे।
"ऐ चाचा! मम्मी तःके बोलवली ह।" अंशु आके विजय से कहले। राती के करीब 11 बजत रहे। पूरा गाँव त सूत गईल रहे पर विजय अभी जागल रहले। ma, बी.एड. कईला के बाद अब फुल टाइम बेरोजगार रहले अउरी देर रात तक आपन रेडियो चालू क के प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी करस। घर में दुयिए लोग रहे। उ अउरी उनकर माई। बाऊजी बहुत पहले साथ छोड़ के जा चुकल रहनी अउरी दुगो बहिन रहे लोग ओ लोग के शादी हो गईल रहे।
बगल वाली खटिया पर उनकर माई भी सूतल रहली। उ अचके उठ गईली।
अंशु के आईला अउरी भाभी के बोलावा से विजय अचरज में रहले। वईसे त दुनु परिवार सगा पटीदार रहे लोग पर काफी दिन से झगड़ा चलत रहे। झगड़ा के मुख्य वजह एगो खूटा रहे। विजय के दुआर अउरी संतोष भैया के घर के देवाल एक में ही जुडल रहे। जमीं दुनु जाना के आधा आधा रहे पर पुरखा लोग में पहिले जबानी इ समझौता हो गईल रहे कि इ जमीं सहन खातिर इस्तेमाल होई। केहू अयिजा ना कुछु बनायीं ना गांडी। जमीं एकदम खाली रही।
जले संतोष के बाबूजी बाहर रहले तबले त इ निभल लेकिन रिटायर होके जब उ अयिले त उनका मन में लोभ आ गईल। फेरु का उ अपना हिस्सा वाला जमीं में खूटा गांड देहले अउरी जब ओने छाह होखे त आपन गाई ओयिजा बांधे लगले। दुनु परिवार में झगड़ा के शुरुआत एहिजा से भईल। अउरी फेरु एकरा बाद तीज त्यौहार, शादी बियाह, मरन जियन सबमे आना जाना बंद हो गईल। दुनु परिवार के बीच में जेतने नफरत रहे एक दूसरा के लेके ओतने घृणा। इहाँ तक कि छोट लईका कुल से भी बात न होखे। अब अयिमे अंशु के अयिला से उ हैरान रहलें।
"काहे खातिर हो?" विजय पूछले।
"बाबा के तबियत बहुत तेज ख़राब बा।"
विजय के समझ में ना आवत रहे कि का करे के चाही। उ अपना माई की ओर देखले।
"जाके देख त बाबू" माई कहली "केहू के सुख दुःख में कामे आवे के चाही।"
माई के आज्ञा पाके उ अंशु के साथे चल देहले।
"बाबू तनी डॉ के बोला दी ना।" संतोष बो भौजी चिरौरी करत कहली "बाबूजी के बहुत तेज बुखार बा। पिंटू बाबू, निकेश बाबू, सबके खबर कईनी ह पर केहू ना आईल ह। अब एगो रौवे से उम्मीद बा"
"ठीक बा" कहिके चल गईले गईले। ओ अन्हरिया रात में 4 किलोमीटर दूर जाके डॉ के बोला के लियावल बड बात रहे।
पिंटू अउरी निकेश पट्टीदारी मेके भतीजा रहे लोग। चुकी संतोष भैया बहरी नौकरी करस अउरी उनकर मेहरारू ससुर अउरी एगो बेटा अउरी बेटी के साथै रहस, उनकर सारा अझवल उहे लो करे लोग। विजय किहाँ से त झगड़ा ही रहे। उनका घर में मोटरसाइकिल रहे और उ दुनु जाना खूब लेके रौदे लोग। पिछला बार संतोष भैया आईल रहले त मोटर साइकिल बनवावे में काफी कईसा लागल अउरी अउरी खिशिया के उ मोटरसाइकिल अन्दर बंद क देले रहेले। एही बात के ऐ लोग के नाराजगी रहे अउरी ओही से उ लोग ना आईल रहे।
विजय अपना साइकिल से जाके डॉ के बोला लिययिले। डॉ सुई दवाई देके चल गईले।
सबेरे उठ क विजय अबे बईठल ही रहले कि अंशु फेरु बोलावे चल अयिले।
उ उनका पीछे चल गईले।
"आई बाबू चाय पी लीं" भाभी हसीं के कहली "राती अगर रउवा ना गईल रहिति त बाबूजी के साथे पता ना का भईल रहित"
"बड़का बाबूजी के अब कईसन तबियत बा" विजय पूछले।
"अब बोखार नईखे। अबे नाश्ता भी कईनी ह"
"अरे विजय के कुछ नाश्ता भी द" असोरा से बड़का बाबूजी भी भीतरी आ गईले अउरी अपना बहु से कहले।
विजय के मन त न करत रहे पर तबो उ चाय अउरी नाश्ता क लेहले।
कुछ दिन बाद संतोष बो भाभी के साथे सुबह अउरी शाम के चाय के चुस्की, विजय के दैनिक रूटीन में शामिल हो गयील। सब कुछ छूट सकत रहे पर भाभी के साथे चाय के चुस्की ना।
फेरु एक दिन उ हो गईल जवना के विजय या उनकर माई कबो कल्पना ना क सकत रहे लोग।
बड़का बाऊजी अपना हाथे खूटा उखार के फेंक देहले।
दुनु परिवार के रिश्ता के बीच उहे काँटा रहे अउरी ओ काँटा के निकलते सारा गिला शिकवा खत्म हो गईल।
बरसो के रिश्ता में जमल बर्फ अतना आसानी से पिघला जाई इ बात विजय कबो ना सोचले रहले।
पहिले रिश्ता सामान्य भईल अउरी फेरु फेविकोल के मजबूत जोड़ से चिपक गईल। विजय खातिर मोटरसाइकिल बहरी निकला गईल अउरी ना मन भईला के बादो भौजी अउरी बड़का बाबूजी के जिद पर उनका मोटर साइकिल सीखे के पडल। अब उ दुनु घर के जिम्मेदारी उठा लेले रहले।
लेकिन गाँव के लोग के बीच चर्चा के बात इ ना रहे। लोग के चर्चा के असली मुद्दा रहे एगो 35 साल के भाभी अउरी अउरी 22 साल के देवर के बीच के दोस्ती। अईसन दोस्ती, अईसन प्रगाढ़ रिश्ता के कवनो दुसर उदहारण ना रहे।
बहुत लोग रिश्ता में खराबी भी खोजे के कोशिश कईल, बहुत बार प्रयास भईल अउरी गांवे अयिला पर इ बात संतोष के कान में भी पहुचल। गाँव वाला लोग के जईसे ही उनके भी शक भईल, लेकिन कबो कुछ ना मिलल। फेरु सब लोग के साथे उनका भी यकीन हो गईल कि ओ लोग के रिश्ता सीता अउरी लक्षमण जईसन पवित्र रहे अउरी इहे सच भी रहे। एहू से बढ़ के देवर भौजाई कम, दोस्ती ज्यादा रहे। संतोष भैया से उ एक बार कवनो बात पर राय ना लेस पर विजय से जरूर लेस, अतना उनका विजय के ऊपर भरोसा रहे।
गाँव में अब इ बात सबके जुबान पर रहे कि भले दुनिया एने के ओने हो जाऊ पर ऐ देवर भौजाई के साथ कबो नईखे छूट सकत।
कुछ चीज जेतना बरियार होला ओतने कमजोर भी होला। जवना चीज के टूटे के बिलकुल सम्भावना ना होला, ओकरा टूटे के सबसे ज्यादा सम्भावना होला।
कुछ दिन बात विजय के बाहर नौकरी ह गईल, शादी भईल, कुछ दिन बाद माई के साथ छूटल अउरी फेरु उ परिवार के साथे बाहर बस गईले।
साल में जब भी गांवे आवास त भौजी के साथै चाय के चुस्की ओहिंगा लियाव। फ़ोन पर भी होखे। भौजी के व्यवहार में भी उहे अपनापन रहे जवन पहिले रहे।
लेकिन एक साल जब उ गांवे गईले त भौजी ना चाय के ही पूछली ना पानी। बात से भी साफ़ रहे कि अन्दर कुछ बात रहे। चाय के चुस्की के बंद भईला के साथे ही, विजय के आना जाना भी कम हो गयील।
अगिला साल जब उ गांवे गईले त देखले कि खूटा फेरु से गडा गईल रहे अउरी गाय बान्हल रहे।
फेरु से दुनु परिवार के पुनका स्टेटस हो गईल। बातचीत आना जाना सब बंद।
हालाँकि आज ले विजय के ना बुझाईल कि काहे अचानक भाभी के व्यवहार उनका प्रति बदल गईल रहे। इहे कुल बात सोचत विचारत उनकर सफ़र पूरा हो गईल अउरी जब उ गांवे पहुचले त अपना घरे ना जाके सीधे संतोष भैया के घर में घुसलें। दलानी में चौकी पर संतोष बो भाभी लेटल रहली अउरी गाँव के कुछ लोग के साथै संतोष भैया उनके घेर के बईठल रहले।
विजय के देखते भाभी के चेहरा के पर रौनक आ गईल।
"रउवा आ गईनी बाबू" भाभी उठे के बईठ गईली अउरी कहली "अब हम चैन से मर सकेनी। नात हमरा गलती के बोझ हमरा सीना पर बयिठल बा। इ हमके मरे नईखे देत।"
"तःके कुछु ना होई भाभी। तू एकदम ठीक हो जयिबू" विजय रूआंसा होके कहले।
"झूठा दिलासा मत दी बबूआ। हम जानतानी। बस रउवा साथै एगो चाय के आखिरी चुस्की हो जाऊ, बस हमके मुक्ति मिल जाई।"
"रुकी हम चाय बना के लेआव तानी" कही के उ किचेन में चल गईली। संतोष भैया मना करत ही रही गईले पर उ ना मानली।
कुछ देर में चाय के साथ वापस आईली।
"बबुआ हमके माफ़ करेब। हम लाला बो के झूठ के वजह से रउवा साथे बहुत गलत बर्ताव कईनी।" चाय के कप थमावत उ विजय से कहली।
"लाला बो ?" विजय चिहयिले।
"हां। उहे हमसे आके कहली कि रउवा हमके नकचिपटी कहत रहनी ह अपना मेहरारू के सामने। तबे से हमार दिल टूट गईल कि जेके हम अपना संघतिया खान मननी, उ हमके अईसन समझेला।"
"लेकिन हम त अईसन कबो नईखी कहले" विजय कहले।
"हाँ रउवा नईखी कहले। लाला बो मरे के समय हमसे कह गईली कि बाबू बो हम तःसे झूठ बोलनी। विजय तःके कुछु न कहले रहले।"
"लेकिन तू हमसे पूछ लेले रहीतु?"
"हमरा ओ बेरा होश ही कहाँ रहे। हम त खीस में रहनी इ सुनके। दूसरा के कहल बात पे भरोसा ना करे के, हमहू जानत रहनी, पर रउवा हमार बुराई करेब, इ हमके बर्दाश्त न भईल। जब आदमी कान के कच्चा हो जाला त ओकर बुद्धि विवेक सबसे पहीले मरेला"
"लेकिन चली बढ़िया भईल कि रउवा आ गईनी अउरी हम अपना गलती के प्रायश्चित क लेहनी। हमके काफ क देब" दुनु हाथ जोडत उ कहली।
"भौजी हमके नरक भेजबू का। तू हमसे बड हवू। हमके मार सकेलु। कुछु कही सकेलु"
"चाय कईसन बनल बा? ख़राब बानू?"
"तहार बनावल चाय अउरी ख़राब होखे" विजय आखरी चुस्की लेत कहले।
भाभी आगे कुछु ना कहली अउरी उनकर मुह खुला रही गईल। कुछ ही सेकंड बाद उ धम से चौकी पर गिर पडली अउरी सब केहू चिला पडल। चाय के आखिरी चुस्की के साथे भाभी दुनिया छोड़ देले रहली।
रोवन पीटन के साथै लोग अंतिम क्रिया के तैयारी में लाग गईले। विजय बहरी अपना दुआर की ओर अयिले त देखले कि संतोष भैया खूटा के फेरु से उखारत रहले।
धनंजय तिवारी
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