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क्रांति कथा : सर्वेश तिवारी श्रीमुख

क्रांति कथा : सर्वेश तिवारी श्रीमुख
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बहुत पुरानी बात है, एकदम लॉन्ग लॉन्ग एगो टाइप। लगभग चार पांच दिन पहले की बात है। शाम का समय था और महान क्रन्तिकारी चुमण्डल बाबा क्रांति करने के लिए टायल्स वाले क्रांतिगृह में घुसे हुए थे। प्लास्टिल की बाल्टी में नल से जल बरस रहा था और बाबा के मूल में मूल निवासवाद चल रहा था। बाबा चुमण्डल ने क्रांति करने के जोर लगाया पर क्रांति नही हुई। बाबा चुमण्डल थोड़े बिचलित हुये, उन्होंने दोनों जांघो के निचे दोनों हाथों को डाला और पूरी ताकत लगा कर क्रांति का उद्घोस किया, पर यह क्या, क्रांति हो ही नही रही थी। बाबा ने दुबारा तिबारा क्रांति के लिए जोर लगाया पर कुंख के रह गए, क्रांति टस से मस नही हो रही थी। बाबा चुमण्डल परेशान हो गए, आखिर यह क्रांति हो क्यों नही रही? बाबा को रोज ही चार से पांच बार क्रांति करने की आदत थी, पर आज क्रांति सरक ही नही रही थी। बाबा चुमण्डल ने एक बार मार्क्स देवता का नाम लिया और फिर कुंखे, पर कोई फर्क नही पड़ा। बाबा ने फिर बारी बारी लेनिन, स्टालिन, चाओ, माओ, पियो खाओ सब का नाम ले कर देख लिया पर क्रांति नही हुई। हार कर बाबा चुमण्डल ने मोदी और शाह का नाम लिया कि क्या पता डर से ही कोई काम बने, पर कोई फायदा नही हुआ। बाबा चुमण्डल निराश हो कर सोचने लगे, आखिर क्या हो गया जो क्रांति एकाएक स्टालिन की तरह कठोर हो गयी? सोचते सोचते अचानक बाबा को याद आया, उन्होंने पिछले दस दिन से किसी पर कोई आरोप नही लगाया। दस पंद्रह दिन हो गए किसी को बुर्जुआ, शोषक या सामंत सिद्ध नही किया। बाबा चुमण्डल पल भर में ही सारा माजरा समझ गए। उन्हें स्मरण हो आया कि पिछले एक पखवाड़े से कोई मौखिक क्रांति नही करने के कारण पेट में बिचारों का स्टॉक ज्यादा हो गया है और सड़ कर संक्रमण पैदा कर रहा है, जिसके कारण क्रांति प्रभावित हो गयी है।
चुमण्डल बाबा ने जल्दी जल्दी ताजा तरीन खबरों को याद किया और दिमाग भिड़ाया कि कौन सा विषय जब्बरदस्त रहेगा। अचानक उन्हें दिखा कि क्रिकेट के सरताज सचिन तेंदुलकर के बेटे का चयन किसी लोकल मैच की टीम में हुआ है। चुमण्डल बाबा के रोम रोम में प्रगतिशीलता दौड़ गयी। उन्हें याद आया, सचिन तो पक्का सामंत है। हमेशा सर्वहारा गेंदबाजों पर अत्याचार करता रहा है। उन्होंने दिमाग भिड़ा कर यह भी देखा कि यदि सचिन पर कीचड़ उछाला तो एकाएक ज्यादा प्रसिद्धि मिल जायेगी। फिर क्या था, बाबा के अंग अंग थिरक उठे। उन्होंने कुछ क्षण में ही एक मनगढ़ंत कहानी बनाई और सचिन पर हमले की योजना बना डाली।
अचानक बाबा को अपना पेट कुछ हल्का महसूस होने लगा। उन्हें लगा जैसे अब क्रांति हो जायेगी। बाबा चुमण्डल ने मन ही मन अपने आराध्य का ध्यान किया और पूरी ताकत लगा कर बोले- मूल निवाशी जिंदाबाद। अद्भुत..... एकाएक AK56 की गोली की तरह तड़ तड़ तड़ तड़ आवाज हुई और झर झर झर झर क्रांति हो गयी। क्रांति ऐसी हुई कि छींटों से पीछे की दीवाल भर गयी।
बाबा क्रांति गृह से निकले,,,,,, और आगे की कथा सर्वविदित है।
हाँ एक बात और है- बाबा ने उसी दिन "क्रांति की सापेक्षता का सिद्धान्त" प्रतिपादित किया। बाबा चुमण्डल के अनुसार, यदि कोई क्रन्तिकारी मौखिक क्रांति करना बंद कर दे तो उसकी नित्य क्रांति भी प्रभावित हो जाती है।

बोलिये प्रेम से- बाबा चुमण्डल की.... जय।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज,
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