बलिया के नामी प्रेमि पतितेश...
BY Suryakant Pathak6 Jun 2017 1:41 PM GMT

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Suryakant Pathak6 Jun 2017 1:41 PM GMT
अभी घड़ी में पाँच बजे हैं । शाम का समय हम फकीरो के
ध्यान स्नान का होता है। आज ध्यान में मन नहीं लग रहा । रह रहकर दिव्य दृष्टि संजय हो जाती है और अंधे
धृतराष्ट्र को युद्ध की दुंदुभी बजने की कथा सुनाती है।
मेरी निगाह मोतीझील में नहाकर नेत्रोपनिषद के पूण्य लाभ से कुटिल अक्षरों को सहज पहचान लेती हैं । ठीक उसी तरह जैसे सर्वेश तिवारी श्रीमुख को बबीतेश का सबकुछ साफ दिखता है, ल॔गटा पाकिस्तान भी।
खैर मोतीझील वाले बाबा अभी समाधिस्थ हैं। उनके पर्चे की चर्चा फिर कभीं।
आइये बलिया के नामी प्रेम पतितेश की ओर आपको लिए चलते हैं ।
जगत भसूर ! भूतो ना भविष्यत का वरदान प्राप्त
आलोक पाण्डेय की आँखें हैं साक्षात चलती फिरती
Xx मशीन! तुरंत ताड़ लेती है कि सामान का सम्मान कितना होना चाहिए । ये वो चक्षु हैं जो सूर को मिले होते तो शायद सूरसागर नहीं बबीतेशासागर लिख दिया होता महराज नें ।
बाबा चरणाश्रयी शाखा में दीक्षित होने के पहले कामेन्द्रानंद अमरेन्द्र के साथ नगरी नगरी वाला गीत गाते और अपने नवसिखिया शिष्य नीरज को चम्मसाटक जातक की कथा सुनाते चलते और जहाँ भी इशारा मिलता सारी ज्ञान गुदड़ी उड़ेल देते।
कालांतर बाद आज बाबा के दिल में मिलन अभी आधा अधूरा है वाला गीत गूँजने लगा । जाति के बाँभन किरान्तिप्रिय आलोक के दिल का भँवर करे पुकार
अबकी बार पूरा अभिसार, के लिए बेचैन है। यह प्यार का आंत्र ज्वर तब से बाबा को मदहोश कर गया जब करवतहीं से सर्वेश का नेह निमंत्रण आया है।
भैया बहन की शादी में जरूर आना है ! आप सपरिवार पहुँचे। बाबा को संत नरेंद्रानंद की टूटी टूटी लेकिन दुरूस्त पंक्तियों का स्मरण हो आईं -
प्यार की राह में चलते रहो अगर !
खुदा मिल लेगा महबूब बनके भी।।
बाबा का मन बबीतेशी है। आज जब पान वाले की दुकान पर तू किसी और से मिलने के बहाने आजा वाला गीत सुने तो
करेजा करेजा से मिलने को भहराने लगा ।
बाबा को कुमार अरविन्द से पक्की सूचना मिली थी कि बबीता भी सहेली की शादी में अकेले पास के गाँव आ रही है। फोन पर मिली इस सूचना ने बाबा का सीना ही नहीं पाकिस्तान को भी चौड़ा कर दिया ।
यायावर बाबा का शेर बाबा के दिल में हलचल मचा गया।
राहे मुहब्बत में इतफ्फाक ऐसा जुड़ता है।
रास्ता कोई भी हो बबीता के घर मुड़ता है।।
बाबा मतवारे हाथी के समान मुँह में पान दबाये मनियाते
रतसर कस्बे के एकलौते ठप्पा पड़े साँढ़ की तरह चले जा रहे हैं ।कस्बे की बकरियाँ मिमिया रही हैं! घरों के दरवाजे बंद हो रहे हैं ।
सारा कस्बा जान गया है आज बाबा किरान्ति करेगा।
त्राहि माम्।
जारी है -
नरेंद्र पाण्डेय
बलिया
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