"ई राशि ह, एके गोड़े ना बिटोरल जाला"
BY Suryakant Pathak7 Jun 2017 6:00 AM GMT

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Suryakant Pathak7 Jun 2017 6:00 AM GMT
"काहो राजू, गेंहू बटवावे जातार?" राम सागर काका के आवाज से हमार गोड़ ठिठक जाता अउरी फेरु हम अपना चौरी वाला खेत में ना जाके बगल के ही उनका खेत में चल जातानी। उनहु के खेत के दउरी भईल बा अउरी अब गेहू घरे ढोवाता। समय के साथै इहो आयोग बदलाव भईल बा गांव जवार में। अब अधिकतर लोग के दउरी खेत मे ही हो जाता।
प्रनामा पाती के बाद काका कहतारे -" झूठहू के तू आपन खेत, बटाही देले बाड़, साल में दू बार छुट्टी के लेके अईत अउरी आपन खेती खुदे करीत। बटाही में बहुत नुक्सान बा।"
"बात त सही कहतार काका" हम आपन मजबूरी बतावत कहतानी "लेकिन प्राइवेट नौकरी के त हाल तू जानते बाड़ अउरी उपर से खेती अकसरुवा आदमी खातिर थोड़े बा। एईमे स्वांगी के जरुरत बा। हमरा किहाँ त शुरुवे से खेत बटाही बा। बाबूजी भी खेत बटाही ही देले रहनी"
स्वांगी के नाम सुनके काका के घमंड अउरी ख़ुशी के मिश्रित चेहरा चमक आ जाता। मनुष्य के एगो स्वाभाविक गुण ह, अगर ओकरा लगे कवनो चीज होखे अउरी ओकर बड़ाई हो जाऊ, फेरु ओकरा से जवन ख़ुशी मिलेला ओकरा आगे दुनिया के सगरी सुख फेल बा। हमनी गांव जवार में इ बात ढेरे बा। हमनी के अपना तनिको सा निमन चीज के पोरसा भर बढ़ा के बतावेनि जा। काका के त ई सौभाग्य कुछ ज्यादा ही मिलल बा। पांच गो बेटा के बाप बाड़े। इनका से ज्यादा स्वांगी वाला केहू नईखे गांव में। अब जेकरा घर में एतना स्वांगी होखे ओकरा से ढेर ताकत भला केकरा लगे होइ। गांव के लोग इनसे तनी अलगे रहेला काहे बुद्धि से बैर अउरी स्वांगी के अधिकता इनका लगे कुछ ज्यादा ही बा अउरी एही से काका के लाठी बात बात पर निकलेला।
खैर स्वांगी के बात सुनके काका के छाती 56 इंच हो जाता अउरी उ बिहस के कहतारे "हाँ इ त बा। लेकिन खेती ही काहे, हर जगह स्वांगी के जरुरत बा, जेकरा घर में पांच जो लाठी होखे कुछु क सकेला।"
हम काका के बात खूब निमन से बुझतानी। उ स्वांगी के बात से आपन ताकत अउरी बड़का होखे के बात बतावल चाहतारे।
गेहू लगभग जा चुकल बा अउरी थोड़ा बहुत जवन बचल बाउ चट्टी पर चारु अउरी छितराइल बा।
उनकर 6 साल के नाती, जवन उनका सबसे बड़ लईका के बड़ बेटा ह, गेहू के गोड़ से बिटोरे लागता त काका - बिहस के कहतारे - ऐ गोलू बबुआ, ई राशि ह, एके गोड़े ना बिटोरल जाला। नात लक्ष्मी भाग जाली"
काका के बात सुनके हमरो आपन बचपन ईयाद आ जाता जब बटहिया के अनाज बटवावे हम बाबूजी के साथे जाई त हमहू बटहियादार के साथे गोड़े गेहू बिटोरे लागीं अउरी तब बटहियादार राम सनही भाई इहे कहस।
सच में खेती के पहिला अनाज के जवन महत्व एगो किसान के जीवन में होला, ऐ बात के उहे समझ सकेला जे किसान बा भा रहल बा।
हम आगे अपना खेत की अउरी बढ़ जातानि।
होत बिहाने राम सागर काका के बड़ बेटा गुड्डू हमार दुआर पर आयिल बाड़े। हम चिहाईल बानी कि अतना भोरे अईला के का वजह बा।
फेरु उ खुदे बतावतारे कि गोलू के बहुत तेज तबियत ख़राब बा अउरी कर्जा के दरकार बा। हमरा काका के काल्ह वाला बात अबहियो निमन से इयाद बा। जेकरा स्वांगी होखे कुछु क सकेला। ऊपर से उनका एतना गेहू भईल बा। अगर पईसा के सकिश्ती बा त गेहू बेच सकतारे। हमके सोचे में बिजी देखके गुड्डू बतावतारे कि काका उनके अलग क देले बानी अउरी अबे उनके आपन गेहू के हिस्सा नईखे मिलल। गेहू बटाते हम पईसा लौटा देब।
गुड्डू के काका अलग क देले बाड़े, इहो एगो अचरज वाला ही बात बा। माई बाप के ना रहला पर त अकसरहे परिवार अलग होला लेकिन अभिये एहि उम्र में अउरी अयीसन कमासुत लईका के, उहो जवन घर के मालिक होखे।
हमरा मन के बात बुझी के गुड्डू बतावतारे कि पिछले दू साल से गाँवे ही बाड़े अउरी एही के लेके घर में खटपट चलता। उनका से छोट दुगो अउरी भाई के बियाह हो गईल बा अउरी अब सास ससुर दुलरुआ उ कुल बाड़ सं काहे कि उ कुल कमा तार सं। माई बाऊजी कहता लोग कि तहरा परिवार के ढेर खर्चा बा काहे कि हमरा परिवार में 5 लोग बा अउरी हमनी से तह लोग के खर्चा ना चली।
हमरा पुरान बात मन परता। काका चाहे केतनो आपन मोछ स्वांगी के नाम पर अईठ लेस लेकिन सच त ई बाकि उनकर आर्थिक स्थिति बहुते ख़राब रहे। फेरु गुड्डू अठारह बरिस के उमीर कमाए चल गईले अउरी ओहि के बाद उनका परिवार के दू बेरा के खाना भेटाइल चालू भईल। गुड्डू अपने सेट भईले, फेरु घर बनववले, अपना से छोट दुगो भाई के काम सीखा के सेट कईले अउरी फेरु ओकनि के बियाह। काका बस सारा जिनगी मोछ पर ताव अउरी देहि पर पियरी धोती ही झारत रही गईले पर अपना हाथ से एगो ईटा भी ना ना रख पवले।
अपना मेहनत अउरी कमाई से घर के घर बनावे वाला गुड्डू के जब बुरा समय आयिल बा त आजु माई बाबूजी के ही तेवर बदल गईल बा।
खैर अइमे कुछु अचरज वाला बात नईखे। इ गांव के गांव के कहानी बा। हम गुड्डू के पईसा दे देतानी अउरी इ चल जातारे।
एक हफ्ता बाद गांव में बर्फ बेचे वाला आयिल बा। अभी बर्फ वाला काका के दुआर पर बा अउरी काका के नाती कुल ओके घेरले बाड़ सं। काका पईसा देबे खातिर खड़ा बाड़े। तनी सा दूरी पर गुड्डू के लईका गोलूवा भी खड़ा बा। ओहु के मन ललचता लेकिन अलगा भईला से ओके काका के लगे जाए में संकोच बा। मानव रिश्ता के केतना विरोधाभासी पहलू बानू ई। अबे कुछ दिन पहिले तक जवना नाती के अपना कान्हा पर लेके पूरा गाँवे काका घूमिहे उ उनका लगे जाए में सकुचायिल बा।
पर बा त उ लईका ही न। अपना चचेरा भाई कुल के बरफ खात देख ओकर प्रतिरोध कमजोर पड़ जाता अउरी काका के लगे जाके कहता - बाबा हमरो के बरफ चाही।
लेकिन काका के जबाब सुनके त हमके भरोसा ही नईखे होत। उ झारी के कहतारे- हम तहार कुछु ना हई। जाके अपना माई बाबूजी से ख़रीदवाव।"
गोलू रोवे लागता।
हमरा विश्वास नईखे होत। ई उहे काका हउवे जवन एक हफ्ता पहिले राशि के गोड़े ना बिटोरे के सीख देत रहले अउरी अपने भी त उहे करतारे।
"अरे काका! ईहो राशि ह, एके गोड़े ना बिटोरल जाला।" अब हमसे नईखे बर्दाश्त होत अउरी हम उनसे कहतानी। औलाद अउरी परिवार से बढ़ के राशि दूसर कवन होई। जे ऐ राशि के गोडे बिटोरी एक दिन ओकर भी लक्ष्मी भाग जयिहे।
काका हमरा बात के जबाब दिहले बिना अपना असोरा में चल जातारे। अयीसन नईखे कि उनका हमार बात नईखे समझ में आईल पर जेकरा ऊपर लालच, बेईमानी, स्वार्थ अउरी अज्ञानता के कब्ज़ा होखे, ओके ई राशि कहाँ लउकी।
दस बरिस बीत गईल बा. ऐ ह बात के। काका गोड से राशि बिटोरे के सजाई पा चुकल बाड़े। पाचू बेटा अलग हो गईल बा लोग अउरी साथे ही काका के अलग क देले बा लोग। काका एगो खटिया पर सड तारे। दिन भर खटिया पर बईठ के बोलावत रहेले लेकिन अब एको बेटा पतोह नाती लगे आ आवेल सन। टूटल फूटल जांगर से काकी उनका सेवा में लागल बाड़ी।
धनंजय तिवारी
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