आलोक कथा उर्फ़ जान बची तो लाखों पाए
BY Suryakant Pathak15 Jun 2017 11:47 AM GMT

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Suryakant Pathak15 Jun 2017 11:47 AM GMT
दिन भर की भयानक उमस के बाद शाम को हल्की फुहार पड़ जाए तो मन शीतल हो जाता है। और यदि मन किसी प्रेमी का हो तो शीतलता के क्या कहने, लगता है कि बूंदे आसमान से नही, प्रेमिका की भीगी जुल्फों से झर रही हैं। घर के ओसारे में बैठा प्रेमी बार बार चाहता है कि दौड़ कर बाहर निकल जाए और भीगते हुए झूम झूम कर गीत गाए। पर प्रेमी अगर शादीशुदा हो और पत्नी घर पर ही हो तो प्रेम काला धन की तरह गायब हो जाता है, और मन में उठते तमाम हिलोरों के बावजूद प्रेमी एक नई नवेली दुल्हन की तरह चुपचाप बैठ कर मन ही मन मुस्कुराता रहता है और कल्पना में ही तन को भिगाता रहता है। ऐसी ही एक भीगी शाम को घर के ओसारे में बैठ कर आलोक पाण्डेय बबिता की यादों से अपने तन मन को भिगो रहे थे कि तभी के एल शहगल की आवाज में मोबाईल की रिंगटोन बजी- जब दिल ही टूट गया.........
जाने क्यों झल्ला उठे आलोक ने मोबाईल को गाली दी, दूर सरवा.. कबो बजने लगता है। अनमने होकर मोबाईल रिसीभ किए पर उधर की एक आवाज सुनते ही आलोक पाण्डेय का मन जैसे उछलने लगा। उधर बबिता थी।
मन ही मन मोदी होते आलोक पाण्डेय ने जैसे ताना मारा- आज हमारी याद कैसे आ गयी बबिता? किसी जोतखी ने ब्राम्हण को हरा अंडरवियर दान करने के लिए कहा है का?
बबिता खिलखिला कर हँस उठी- आपके भाग्य में वह भी नही है पंडीजी, तनिक घर आइये न, आपसे कुछ काम है।
आलोक ने मन ही मन कहा, ठीक ही कहती है बबिता, ससुरा मेरे भाग्य में वह भी नही है। ऊपर कहा- कब आऊं?
बबिता फिर खिलखिलाई- आए हाय, बड़ी खलिहर हैं पंडीजी आप तो, अच्छा अभी चले आइये।
आलोक जी ने फोन रखा और एकाएक झूम कर गाने लगे- आज सजन मोहे अंग लगा ले, जनम सफल होइ जाय..........
आलोक जाने अभी कितना गाते, पर तभी अंदर से पत्नी की आवाज आई- बेटा देखिये तो बाहर कौन भिखमंगा गा कर भीख मांग रहा है। पापा के पॉकेट से सौ रुपया निकाल कर दे आइये तो..
अचानक सट से सटक गए आलोक- ये कमबख्त मेरे पॉकेट के पीछे ही क्यों पड़ी रहती है। जल्दी से घर में घुसे और अलमारी से कपडा निकाल कर पहनने लगे। दस मिनट में पुरे सज धज कर बाहर निकले और पत्नी से कहा- हम तनिक बाहर जा रहे हैं, डाइरेक्टर के यहां मीटिंग है, देर से आएंगे। पिलीज आप खिसिआइयेगा मत।
पत्नी ने नाक सिकोड़ते हुए कहा- वो तो ठीक है, पर यह छोरी वाले पैजामा में टीशर्ट इन करके बेल्ट लगाने का फैशन कब से आ गया?
आलोक ने चिहुक कर देखा तो पाया, बबिता से मिलने के उमंग में जल्दी जल्दी जीन्स की जगह पैजामा पहन कर उसी में टीशर्ट खोंस लिए हैं। लजाये हुए फिर कमरे में घुसे और जीन्स पहन कर निकल गए। आधे घंटे के अंदर वे बबिता की गली में थे।
आलोक पाण्डेय ने दरवाजे पर खड़े दरबान से अंदर खबर भिजवाया तो आधे मिनट के अंदर ही बबिता जैसे दौड़ते हुए बाहर निकली और लपक कर आलोक का हाथ थाम लिया। आलोक ने गौर से देखा बबिता को, सजने में सीरियल की हीरोइनों को पटखनी देती बबिता किसी अप्सरा जैसी लग रही थी। कुछ चिहुक से गए आलोक पाण्डेय। उन्हें इस भव्य स्वागत की उम्मीद नही थी, पर बबिता उनका हाथ पकडे अंदर खीच ले गयी, उनको सोफे पर बैठाया और पुरे ढाई इंच के फासले पर बैठ कर उनकी आँखों में आँख डाल कर पूछा- क्यों पंडीजी, कैसे हैं?
आलोक पाण्डेय की हालत तो उस नए क्लर्क की थी जो पहली बार घूस देख कर मन ही मन यह सोच कर कांपता है कि कहीं कोई निगरानी विभाग वाला तो नहीं है, और इसी कारण न लेना चाहता है न छोड़ना चाहता है। आलोक पाण्डेय गदगद हो कर बोले- स्वर्ग और नर्क के बीच खड़ा हूँ, आगे जैसा तुम कह दोगी वैसा ही मान लेंगे खुद को।
- झूठ न बोलिए पंडीजी, हमे तो लगता है आपको कभी हमारी याद भी न आती होगी।
- ऐसा कह कर हमारे दिल को मत झंउसो बबिता, एक भी दिन ऐसा नही जाता है जब तुम्हारी याद में कुछ अक-बक बड़बड़ा कर पत्नी की डांट न सुनता होऊं। कुछ लिखता हूँ तो लगता है कि तुमको लभ-लेटर लिख रहा हूँ। कुछ पढता हूँ तो लगता है कि तुम्हारा प्रेम पत्र पढ़ रहा हूँ। चलता हूँ तो लगता है कि तुम्हारी ओर आ रहा हूँ, कुछ गाता हूँ तो लगता है जैसे तुम सुन रही हो, कुछ खाता हूँ तो लगता है कि तुम्हारी मार.....
-बस बस.., आप तो पुराण लिखने लगे, रुकिए आपके लिए कुछ ले के आती हूँ।
बबिता किचेन में गयी और एक क्षण बाद एक प्लेट में मिठाई ले कर निकली, पर जाने कहाँ पैर उल्टा पड़ा कि भयानक रूप से फिसल गयी। पर धन्य धन्य आलोक पाण्डेय! इतनी फुर्ती तो किसी फ़िल्मी हीरो में नही होती जितनी फुर्ती से आलोक ने लपक कर बबिता को बाँहो में रोक लिया। आलोक ने जल्दी से बबिता को सोफे पर बैठाया और पूछा- कहीं मोच तो नही आई?
बबिता ने कराहते हुए कहा- लगता है दायें पैर में मोच आ गयी है, बड़ी दर्द कर रहा है।
आलोक जी ने लपक कर बबिता का पैर पकड़ लिया और सहलाते हुए मन्त्र पढ़ने लगे-
चंदनचर्चितनिलकलेवरपीतवसनबनमाली
केलिचलनमणिकुण्डलमण्डितगंडयुगस्मितशाली
और मन्त्र पढ़ते पढ़ते जैसे ही फूँक मारने के लिए मुह तनिक निचे किये, अचानक कुछ प्रकाश चमका जैसे किसी ने कैमरे से फोटो खींची हो। आलोक ने घबड़ा कर देखा, बबिता का बिडिओ पति हाथ में कैमरा ले के मुस्की मार रहा है। आलोक ने बबिता की ओर देखा तो वह भी मुस्कुराती हुई उठ खड़ी हुई और बोली- घबडाइये मत पंडीजी। वो क्या है कि अगले चुनाव में मुझे भी बलिया सीट से चुनाव लड़ना है। तो उसी के लिए पोस्टर बनवाने के लिए एक ऐसी तस्वीर चाहिए थी।
आलोक भौंचक हो कर मुह देखने लगे तो उसने आगे कहा- वो क्या है न कि पंडीजी, आप जानते ही हैं कि पंडितो ने हमेशा ही सबका शोषण किया है।
- हाँ तो इसमें मेरा क्या दोष बबिता?
- अरे आपका कोई दोष नही है पंडीजी, वो क्या है कि इस फोटो को छाप कर हम निचे लिखवायेंगे- "चरणों में ब्राम्हणवाद"। इससे हमको भोट ज्यादा मिलेगा।
आलोक पाण्डेय कांपते हुए बोले- तो इस काम के लिए तुमको मैं ही मिला था बबिता?
बबिता बोली- वो क्या है न कि आप पैर बड़ी खूबसूरती से पकड़ते हैं।
आलोक पाण्डेय गिड़गिड़ाने लगे- ए डार्लिंग माफ़ करो, हम बदनाम हो जायेंगे। ऐसा मत करो.....
अचानक पीछे से बिडिओ साहब गरज कर बोले- ऐ चरित्रहीन मास्टर, चुप्प! ख़बरदार जो हमारी पत्नी को डार्लिंग बोला तो...
आलोक जी ने गुस्से से देखा बिडिओ की ओर और भड़क कर उसकी ओर घूंसा चलाया पर घूंसा जा कर लगा दीवाल पर, और दर्द के कारण नींद खुल गयी। आलोक ने देखा- पत्नी मुस्कुराते हुए पूछ रही है, फिर बबितवासे थे क्या माट साहेब???
आलोक जी बोले- छोडो भी, जान बची तो लाखो पाये।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
जय बिहार।
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