बाप!
BY Suryakant Pathak18 Jun 2017 8:29 AM GMT

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Suryakant Pathak18 Jun 2017 8:29 AM GMT
बाप अरे बाप रे बाप
चेताते दूसरों के बहकावोंं में
कभी भूल के भी मत आव
बाप अरे.....
जब तक आपका ये जूता
मेरे पैरों में नहीं आया
तबतक बेवजह बेधड़क मुझपर
नियमित गिराते रहे आप
बाप अरे....
चलते खेल को बीच में रुकवाना
गरज तरज कर बुलाना धमकाना
और जबरदस्ती खिला पिलाके
पढ़ने बैठा देते रहे हैं आप
बाप अरे....
हमको नहीं कभी
माना हर अगले को सयाना
और दूसरों के लहराने पर
लठियाते मुझको रहे आप
बाप अरे....
रह-रह बार-बार कहते हैं
करना सब जितना जी चाहे
खड़ा होकर अपने पावों पर फिर
होगी अपनी धरती और ऊपर आकाश
बाप अरे ....
वह डाँट डपट वह लपट झपट
रह रह कर वह झन्नाटेदार चपत
कभी यहा बैठ कभी वहाँ लपक
कर मत बक बक न मुँह लटकाव
बाप अरे.....
संसार के कड़वे-कड़े अनुभव से
बाहर के झंझट झंझावाती झपटों से
झूलते परिवार समाज के दायित्वों में
चलते मथते गुनते सिर धुनते थम थम
रुक-रुक चुपचाप
बाप अरे....
पिता हैं!
भय का प्रेम में
सत्य रूपान्तरण
माँ के हर रूप का
प्रथम अवतरण
श्रद्धा भक्ति अनुभूति
उदात्त आसक्ति
आश्वस्त क्षमा बल
संग्रह थाती
अजर अमर अचल
सम्पति के
संरक्षक, संवर्धक,
संवाहक
बाप का माल
आप हैं आप
बाप अरे बाप रे बाप!
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
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