सावन बरसे फागुन
BY Suryakant Pathak18 Jun 2017 10:29 AM GMT

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Suryakant Pathak18 Jun 2017 10:29 AM GMT
सावन से कभी भी कम सुंदर हरियाली फागुन की नहीं रही।भरे में खालीपन का एहसास है फागुन और खाली में भी भरेपन का एहसास है सावन।
सावन का हरापन बादलों का मोहताज होता है न बरसे तो खेतों में काम ही काम और कहीं टूट के बरस दे तो जीना हराम होता है। ऊपर से उमस भरी गरमी,संग में होते हुए भी असंगता मनाती है, कीट, पतंग, बाढ, रोग आदि के बढने का डर है सो अलग। पशुओं तक का भी अत्याचार बढ जाता है सावन में कुत्ते तक भी कुतिया सूँघना शुरू कर देते हैं, हाथियों का प्रणय काल होता है इसलिए इनके उत्पात से लोग बाग भयाक्रांत हो जाते हैं।
चैत, बैशाख और ज्येष्ठ की गर्मी से, आषाढ़ में बादल की नरमी से, घर में अन्न के भंडार की और द्वार के गोधन के दूध में कमी की भी चिंता सताने लगती है।
पत्नी मैके जा सकती है या उसका भाई राखी बँधाने आ सकता है, का आतंक है सो अलग है, कोई सुंदरी गहरी मुस्कान के साथ भी देखे तो भय लगता है क्या पता बुला के कहीं रक्षाबन्धनम् ही न कर दे,इसलिये कहा कि खाली में भी भरेपन का एहसास है सावन।
जबकि फागुन की बात ही निराली है सोने पर सुहागा है यह मौसम। बिन बादल चारो ओर हरियाली ही हरियाली होती है उनके संग-संग खिले रंग बिरंगे फूल, नयी नवेली लाल, गुलाबी, नीली, पीली धानी पत्तियाँ, सरसों, आम, महुआ की हिली मिली शीतल, मंद सुगंंधित हवा, अर्थात् त्रिबिध बयारी, फगुनी बयार बहने लगती है। ऐसे मौसम में सभी भ्रम में पड़ जाते हैं।
जाती हुई जाड़, डाँड़ (राह) पकड़ने से पूर्व हाड़ हिलाने लगती है और समझ में यह नहीं आता है कि वास्तव में ठंड लग कहाँ रही है, ओढो तो गरमी लगती है और छोड़ो तो सर्दी लगने लगती है। दो महीने की सर्द से सिमटी, शर्मायी, सकुचाई देह रूपी सुंदरी तेज धूप रूपी सखी का संग पाकर के उसके अंग से अंग लगा जा सखी के तर्ज पर एक-एक कर अपने शरीर के वस्त्रों को उतार के त्रिविध बयार रूपी यार को गले लगाने के लिये आतुर होने लगती है।
अंग होते हुए भी अनंग का होने की अनुभूति होने लगती है, ऐसे मौसम में भ्रमण को निकला पथिक बिखरे अनुपम सौंदर्य को देख अपना स्वभाव तक भूल जाता है कि क्या-क्या छोड़े और किसको बटोरे। पशु तक स्त्री पुरुष का भेद मिटा चहुँओर बिखरी हरियाली को चरना छोड़ कर धूप रूपी सौंदर्य की मलिका से आँख क्या, आँख मूंदकर अपना पूरा शरीर सेंकने लगते हैं मानो उसको दिखा रहे होते हैं कि देखो न तुम्हारे न होने पर उनके अंग-प्रत्यंग को कहाँ-कहाँ तक जकड़ रखा था इस जाड़े ने।
ऐसे मौसम में किसी का मुस्कुरा के देखना भी मन को मथ कर मनमथ बना देता है। घर, धन धान्य से और गोधन दूध से भरा होता है, रवि की किरणों से खेत हरा भरा होता है। ऐसे में आती मुस्कुराती तीर तिरछी नज़रों को जवानों से बचाकर, उछल उछल कर अपना हृदय उन तीरों पर फेंकते श्वेत श्याम केशधारी भूतपूर्व युवाओं को देखता हूँ तो लगता है कि ये अपनी साल भर की जमा पूँजी लूटाने को तत्पर हैं। जमा का बल नव निवेश को आतुरता प्रदान करता है। इसलिए कहा कि फागुन भरे हुए में भी खालीपन का एहसास है।
वैधानिक चेतावनी -
फागुनी हवा इज इंज्यूरिश टू हेल्थ।
किशोरों, नौजवानों के लिये तो यह फागुनी मौसम बहुत ही धोखेबाज होता है। इस मौसम के अचानक रंग बदलने की कला से अनजान ये नौजवान, नव युवान (युवक-युवती) शरीर से लेकर दिल की बिमारी के शिकार हो जाते हैं, इन दोनों परिस्थिति में अंग-प्रत्यंग टूटने की आशंका रहती है। अतः इन्हें फागुनी हवा से बचके रहना चाहिए।
नमस्कार!
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
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