नाको, भाग-2...................: आलोक पाण्डेय
BY Suryakant Pathak18 Jun 2017 10:33 AM GMT

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Suryakant Pathak18 Jun 2017 10:33 AM GMT
सर्वेश को बेहोश देखकर सारी लड़कियाँ घबरा गयीं किंतु मानिनी निश्चिंत खड़ी मुस्करा रही थी। धीरे से अपने पैरों में से चमड़े का चप्पल निकाला और सर्वेश को सूंघाया। अरे यह क्या वह उठ बैठा। सर्वेश को जैसे संजीवनी बूटी मिल गयी। तबसे सर्वेश रोज 5-10 मूका पीटाता और जब भी उसका चप्पल सूंघने का मन करता, दिनभर में एकबार बेहोश भी हो जाता।
आप सभी सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि सर्वेश एकोबार एको मुक्का नहीं मारा? जी हाँ, एकोबार नहीं मारा। क्यों? क्योंकि वह मानिनी से मन ही मन प्यार कर बैठा था।
सर्वेश को कुछ आए चाहे न आए प्यार के लिए मौके और मुद्दे बनाने खूब आ गये थे पिछले एक सप्ताह से मानिनी को बताये जा रहा था कि और छै दिन हैं, पांच दिन हैं तो बस एक दिन हैं।
आज उससे नाको धराने की मैरिज एनवर्सरी थी। मानिनी को अपनी तरफ आता देखकर रोज की भांति सर्वेश दम भर साँस भरकर दूसरी ओर देखने में व्यस्त दिखाने लगा। मानिनी आई, होले से उसके पीठ पर हाथ रखी और बोली - तुम जान बूझकर मुझसे पिटते हो न?
सर्वेश भरभराकर गिरा फिर अचकचा कर उठा और बिना लाग लपेट के बोला- जी।
- क्यों?
- क्या कहूँ?
- कहो न क्यों पिटते रहे हो?
- आप अनराज हो गयीं तो?
- क्या?
- मने खिसिया गयीं तो?
- नहीं नहीं..... बेहिचक बताओ?
सर्वेश क्या बोले कि वह उससे प्यार कर बैठा है? कि उसका उसपर दिल आ गया है? कह दे कि हाँ उसे उससे मोहब्बत है मोहब्बत है मोहब्बत है... कि कह दे कि पिछले साल भर से रोज अपना बिछौना धूप में सुखाकर ही सो पाता है क्योंकि उसका बिछौना हर रात कमर के पास गीला हो जाता है।
कि मानिनी बोली - कहाँ खो गये पप्पू?
- क... क... क... कहीं तो नहीं।
- तो बताए नहीं?
- का नहीं बताए?
तो दांत पर दांत चढाकर सर्वेश का कान अपनी अँगूठे और तर्जनी में दबाकर गर्जनी राग में बोली कि मुझसे रोज क्यों पिटते हो मेरे राज्जा.... आ?????
राज्जा.....??? सर्वेश को तो चक्कर आने लगा। आरे ए तेलहवा बाबा? भोला बाबा? डीह बाबा? आरे ए हो काली माई? पीपरा तर के सती माई? ई हमारे मटकोड़ हो जाने का साफे नेवता है का? अपने शरीर के भीतर हो रहे आवेगों के कम्पन को छिपाने के लिए दूसरे कान को जोर-जोर से खुजलाने लगा कि मानिनी ने अपनी कुहनी से उसकी पसली में ठोका।
अगर प्रेमी नादान हो न तो प्रेमिकाओं द्वारा सताने का तरीका आश्चर्यजनक रूप से बढ जाता है। खिलखिलाकर बोली वह- बताते क्यों नहीं मेरे बौड़म 😘?
देहात के लड़के लड़कियों की हिंदी तो अपने धमाकेदार होती है। सिर को कपार, अंधेरा को अन्हार, पायल को छायगल, सब्जी को तरकरी, चेहरा को भुभून, खरीदना को कीनना, पैर को गोड़ कहते देर नहीं लगती तो पिछली साल हिन्दी में ही मैट्रिक में फेल हुए सर्वेश को बड़ी नजाकत के साथ कहे गये बौड़म को बलम समझने में तनिक भी देर कैसे लगती और भारी बरसात से सलसलाए बाँध की तरह इस हल्की मुस्कान में बह गया बेचारा... का कहूँ? मने गलत अरथ मत लगाइएगा बाकी जब भी आप हमारी तरफ अपना गोड़ दबाकर उचुक उचुक के आती हैं न। त हमरी जीयरा में धक-धक होने लगता है। अइसा लगता है न कि जइसे चारुओर अन्हार होगया है आ एगो चान के टुकुड़ा हमरा ओर धीरे-धीरे आ रहा हो। हमार देंह कांपने लगता है। खून जइसे बहुत तेज दउड़ने लगता है। आ जब आप जोर का मूका मारती हैं न, त हमरी कपार में अनगिनत जोन्हियाँ जइसे पँवरने लगती हैं। आज हीमत क के एगो बात पूछता हूँ? देखिए ना मत कहियेगा?
मानिनी सन्न रह गयीं काँपते स्वर में बोलीं- क्या?
- आपका नाम क्या है?
पीछे से आवाज आई-Lahari Guru Mishraa............
सरररररररर........ से भागी मानिनी और सर्वेश इनका इनसे आखिर क्या सम्बन्ध? पता नहीं क्या सुना और कितना सुना है। गुस्से का अंदाज लगाने के लिए उस ने उनसे कहा- गोड़ लागतानी गुरु जी?
पर वह कुछ बोले नहीं मननशील कदमों के साथ मानिनी की घर की ओर चल पड़े।
शेष अगले अंक मे.......
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
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