नाको- 3........................: आलोक पाण्डेय
BY Suryakant Pathak18 Jun 2017 10:39 AM GMT

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Suryakant Pathak18 Jun 2017 10:39 AM GMT
परिचय
Lahari Guru Mishra जब भारी कदम से मानिनी के ही घर की ओर चल पड़े जहाँ वह सालभर से रह रही थी तो सर्वेश चिंता में पड़ गया क्योंकि लहरी गुरु प्रेमी-प्रेमिका रूपी क्षत्रिय के लिए साक्षात परशुरामजी थे। उनके बारे में यह सर्वविदित था कि जो कोई भी उनकी पत्नी को भौजी या भाभी कह दिया, वह उनका जन्म-जन्मांतर का शत्रु हो गया। उनके अपने सगे भाई तक भी उनकी पत्नी को गुरुआइन ही कहा करते थे।
वास्तव में लहरी गुरु का नाम दिलीप कुमार था कि राजकुमार था कि संतोष कुमार था यह कोई नहीं जानता पर जब उनका विवाह तय हुआ तो वह इस विचार में निमग्न हो गये कि राम के समय राम नाम का कोई नहीं था, इसलिए सीता जगत माता हैं। सत्यवान के समय कोई और सत्यवान नहीं था इसलिये सावित्री सती थी। अत: नाम ऐसा हो कि कोई उस नाम का दूसरा न हो, और कोई भाभी न कह सके इसलिये गुरु शब्द चुने और नाम रखे लहरी गुरु। किसी नारी के सतीत्व को जगाने का ऐसा परिवर्तनकारी बदलाव आसपास के इलाके के लिये उदाहरण ही था।
ऐसे विकट प्रतापी पुरुष का मानिनी से क्या सम्बन्ध हो सकता है? सर्वेश इस गुत्थी को सुलझाने चल पड़ा। लौकी के पौधे को पकड़ कर नीम के पेड़ पर जा बैठा और देखा कि वह बहुरिया जिसके खर्राटे भले ही सुनकर चोर तक रात होने का अनुमान किया करते थे पर उसकी बोली आजतक किसी ने नहीं सुनी थी, बेझिझक वह लहरी गुरु से हँस-हँस के बात किये जारही है- उमर बीत गयी, जमाना बदल गया पर आप नहीं बदले गुरुजी। क्या हुआ बात कर रही थी तो? हम उम्र हैं। ये नाम नहीं बताई न।
देखो मल्लिका, गुरु अब रौब में आ गये थे, जब गुरुआइन के साथ मेरा ब्याह हुआ था तब तुम्हारे पिता ने केवल उनका ही हाथ नहीं तुम्हारी आठों बहनों का भी हाथ मुझे सौपा था और निश्चिंत होकर स्वर्ग पधारे थे। तब से एक एक कर सात को पार लगाया कि नहीं? तुम सातों क्या किसी से कम हो? सब एक बराबर हो कि नहीं?
मल्लिका बोली- इसमें क्या संदेह है। आप जीजाजी होकरररर..... , लहरी ने भृकुटी तरेरी तो आँख नीचे कर गहरी मुस्कान के साथ बोली आप गुरुजी होकर भी हम सब के यौवन को सुरक्षित हमारे पतियों तक पहुँचाए ऐसा उदाहरण होगा क्या इस संसार में।
गुरुजी बेंग की तरह मने मेढक की तरह देंह फुलाकर बताशा पानी में भीगोते हुए बोले- पर यह नवमं सिद्धिदात्री च, तुम्हारी बहिन एकाएक कोसी के बाढ जैसे बढने लगी है। इसकी बढती देखकर तुम्हारे पड़ोसी गांव का वह अरुण कुमार शुक्लवा बड़े बड़े बाल बढाकर, एक्सीडेंट होगया रब्बा रब्बा..... गा रहा था तो इसे तुम्हारे पास पहुँचवाया कि जबतक तुम्हारे पतिदेव नहीं है तुम्हारा भी मन बहलेगा और तबतक इसके लिये मैं योग्य वर तलाश लूंगा। पर यहाँ तो????
सर्वेश को यह सब सुनकर ऐसा जोर का चक्कर आया कि वह भद से पेड़ पर से गिरा। तीनों चौंक पड़े। तेजी से दौड़ पड़ी मानिनी, मल्लिका बाहर जा नहीं सकती थी और लहरी कुर्ता निकाल चुके थे सो वह अटक गये।
अंधेरा था पर मानिनी की आशंका सत्य थी। लहरी कड़के क्या है?
सर्वेश पैर पकड़ कर लिपट गया। बचा लो सिद्धिदात्री, बंदर का जनम पाऊँ कि अब जो किसी पेड़ पर चढूँ। पर आपके नाम का पाता लगाने का हमारा बलिदान जाया मत करिए। हम आपको गोड़ लागते हैं।
सिद्धिदात्री जोर से बोली- लौका गिरा है।
हँसे गुरु - ले आओ उसे बनाया जाय।
जब आपको या आपके नाम को छिपाने की कोशिश की जाय तो इसे प्रेम की सहमति ही समझना चाहिए। सर्वेश समझ गया- हई आपके जीजा हैं?
- हाँ।
- बहार आने से पहले जिजा चली आई.....
- हहहहह...... जिजा नहीं फिजाँ।
- बै पेयार मे लोग सुना है कबी हो जाता है। हमार पहिला गीत सुइकार कीजिए। आपका नाम बहुत नीमन है। सुनते ही हीरदै में भक्ति उतपन हो जा रहा है।
- पर मेरा नाम सिद्धिदात्री नहीं है।
लहरी गुरु जोर से बोले- अरे क्या है?
सर्वेश कूद के लौकी की झाड़ में जा घुसा और सैकड़ों चींटियां उसकी प्रेम परीक्षा लेनी शुरु कीं।
मानिनी बोली - कहां क्या है लौका गिर के छितरा गया तो ले जा के वो तिवारी जी के बैल के आगे दे आई अब बैल जाने आ लौका जाने।
आईए...... आइए पूड़ी और आलू दम खाइए।
- चलो हम आते हैं। पर ये बताओ कि लौकी क्या अमरूद है जो चू जाएगा और इतने अंधेरे में इतनी सफाई से लौका उठाई कैसे?
सर्वेश को चींटियों का काटना अब सहन नहीं हुआ तो हाथ गोड़ झाड़ते हुए बाहर निकल आया। प्रेम ही क्या जो बगावत न कर दे, थोड़ा जोर ही से बोला- हमरी गांव में लउकी आमे महुआ जैसे चू जाती है ए महराज।
मल्लिका बड़े जोर से खिलखिलाई। मानिनी का जी धक्क कर गया।
लहरी सोच में पड़ गये.........
शेष फिर.........
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
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