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भोजपुरी कहानिया

नाको-4................: आलोक पाण्डेय

नाको-4................: आलोक पाण्डेय
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आठ-आठ शालियों के कभी एकलौते जीजा रहे श्री Lahari Guru Mishra का भी वह एक जमाना था कि अस्सी गाँवों में जब कोई नौजवान किसी लड़की की तरफ आँख भी उठाकर देखता था तो उन लड़कों की माँ तो माँ, बाप भी कहते थे कि सुधर जा बेटा नहीं तो लहरी गुरु से कह दूंगा और कुँवारे ही रह जाओगे।
कभी किसी Lalit Kumar ने एकबार उनके खिलाफ बगावत का बिगुल फूँका था परिणाम यह हुआ कि जेएनयू में ऊँची डिग्री लेने के बाद भी, 14-15 देशों की खाक छानने के बाद भी, उनसे छिप छिपाकर कैसे शादी भी हुई तो परिणाम क्या हुआ कि ललित दिल्ली में तो उनकी पत्नी बंगलुरु में, चातकी जीवन जीने को विवश हैं।
अरुण कुमार ने उनकी शालियों पर एक दो नजर डालने की कोशिश क्या की कि इलाके के सब लोग जानते हैं कि उनपर लहरी गुरु का कोप ऐसा पड़ा कि वह दिन तो दिन रात में भी बिना चश्मे के नहीं चल सकते। अब लड़ाओ नजर।
ऐसे विकट तेजस्वी पुरुष के विरुद्घ सर्वेश के मुखरित होने की खबर सुनकर उसके दादाजी बेचैन हो उठे। काल की कुटिल कटारी के कोप से असमय कवलित हुए सर्वेश के पिता के बाद माँ ने जब पुत्र को ढाढ़स बँधाया था तो कहा था कि मैं तुम्हें पिता की कमी कभी खलने न दूँगी और तबसे नियमित इनकी त्रिसंध्या कुटाई, पिटाई और मड़ाई किया करतीं थीं। सर्वेश को अपनी पहली जबरदस्त ठुकाई याद है जब उसके पाॅकेट से एक प्रेम-पत्र प्राप्त हुआ था-
अक्षर बैठा-बैठाकर लिखा गया था-
आदरनिय मनओरामा जि!
सादर चरन असपर्स
ये दिल तूम बिन कहिं लागता नही हम का करे। पर आप के लिए जामाना से लड़ जाऊँगा। भुलीएगा जन की जब जब पेआर प पाहरा हूआ है पेआर अउर गाहरा हूवा है।
आपका अगियाकारी
अरबीन सींघ
प्रेम-पत्र की मात्रा ही विवाह की यात्रा निर्धारित करती है।
शिक्षिका माता ने पीटना शुरू किया। सर्वेश बहुत सफाई दिया पर माँ का कहना था कि लिखावट तो तुम्हारी है। मात्राओं मे ऐसी भयंकर त्रुटि। माँ जब-जब पिता का रूप धारण करतीं तो दादा जी ही बचाते थे। सर्वेश जानता था कि माँ यह सब सुनकर बहुत मारेंगी इसलिये सीधे दादाजी के पास पहुँचा। पर आज दादाजी भीष्म पितामह बनकर टूट पड़े माताजी ने जब यह सब सुना तो वह भी संग्राम में उतर पड़ीं। मेरे करन अर्जुन आएंगे का सीन उतर आया सर्वेश अमरीश पुरी की तरह कभी शाहरुख़ कभी सलमान के हाथों पिटे जा रहा था। तभी कोई सुभाष शर्मा ऊर्फ निंदक जी सर्वेश उन्हें यही कहता था, ने उसे बचाया। ठीक उसी समय सर्वेश की चीख पुकार को पपीता के पेड़ पर चढ के देख रहे Arvind Kumar Singh पर दादाजी की नजर पड़ी। अचकचा कर वह उतरना चाहे तो पेड़ ही टूट गया और वह बाहर गिरने के बजाय आंगन में गिर गये। सर्वेश पहले ही उनका कैरेक्टर गिरा चुका था। बस क्या था दादाजी और माता जी ने मिलकर 4-5 डंडा 8-10 छनौटा और गिरा दिया।
दादाजी सुभाष जी से कहने लगे कि सोचा था कि लहरी से कहूँगा कि इसके लिए एक सुयोग्य कन्या ढूँढ़ते जो इसके साथ-साथ बहू का भी खयाल रखेगी। तो पता नहीं क्यों यह जा के उनसे लड़ आया। आप तो जानते ही हैं नेता जी (सुभाष जी को वह नेता जी ही कहते थे) कि काशी का यह पंडित कुंवारे उदंड लड़कों के लिए शनिश्चर हैं। इसका तो ब्याह ही अब नहीं हो पाएगा।
माता जी घर में चली गयीं और उनका जाना उनकी चिंता को साफ दर्शा रहा था।
पर शोर सुनकर भी लहरी गुरु टस से मस नहीं हुए। मानिनी मन मसोस कर रह गयी। पर जाए कैसे? चार बजे भोर में जब लहरी लोटा लिए खेतों की ओर चले तो मानिनी सर्वेश के कोठरी की ओर लपकी। बेचारा नाक पर अँगुली रखे सो रहा था। लौटना चाही तो बोल पड़ा - नाको नहीं बोलेंगी?
- नाक पर ही जब अँगुली रखे हो तो क्या नाको बोलूँ? बहुत मार पड़ी न?
- पूछनहार आप-सा है तो हम कासमीर बन जाऊँ। नमवा बता दीजिये न अपना। जपता तो दरद नहीं होता।
-धत्त।
कहकर निकली मानिनी। पुकारा सर्वेश तो उसका कान पकड़ कर धीरे से बोली- जाने दो राजा। बाभन का पेट भरने में समय लगता है खाली होने में नहीं।
कल से कर लेना बातें चाहे जितनी.....

शेष अगले अंक मे़.......

आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
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