Janta Ki Awaz
भोजपुरी कहानिया

नाको-8 पञ्चरात्रि

नाको-8    पञ्चरात्रि
X
मनुष्यों के जीवन में पाँच रात्रियों का विशेष महत्व है। जन्म की रात, यज्ञ की रात, विवाह की रात, मिलन की रात और विदा की रात।
इसमें जागने की कला योगियों या फिर सजग भोगियों को ही प्राप्त होती है।
सर्वेश निपटान काण्ड की घटना से जाग गया था। वह यह जान गया था कि विवाह मण्डप में उसे अत्यंत सावधान रहना होगा। शालियों, सरहजों, संगिनी की सहेलियों के हमलों से बच के रहना होगा क्योंकि उसके सभी अनुभवी सलाहकार तंबू के पीछे नंगे होकर हवा ले रहे थे। मण्डप में वह जब पहुंचा तो पुरोहितके चलते आठ-दस लोढा खाकर ही बच गया।
विवाहोपरांत जब वह कोहबर की ओर चला तो सहेली सालियों ने दरवाजा छेंक लिया- कुछ सुनाइए त भीतर ढूकने देंगे?
सर्वेश चुप।
- गूँग हैं का जी।
सर्वेश नीचे देखने लगा।
- आँख मिलाइए जी कान हैं का?
वह उनको देखने लगा।
- भटर भटर का देख रहे हैं कबो लइकी नहीं देखे हैं का? जीजाजी कुछु सुनाइए न ?
सर्वेश फिर चुप।
- ओ त मने तेतराह हैं?
पहली बार मुस्कुराया सर्वेश।
- एगो गाना ना सही सैर सुनाइए? देखिये दिल जन तोडिए।
सर्वेश फिर गम्भीर हो गया।
तब कोई एक सहेली बोली- बुझअउल बूझिएगा?
सर्वेश को यह ठीक लगा। उसने सहमति में सिर हिलाया। तो उस सहेली ने पहेली पूछा-
अरवट से जब करवट कइलीं
छेद में डंटा लगवलीं
दूनों हाथे गोलगोलवा धइलीं
जवन जवन मन करे
तवन तवन कइलीं। बताइए का है?
कुछ सहेलियों का मुख लाल हो गया तो कुछ खिलखिला के जोर से हँस पडी। सर्वेश तो चकरा गया। तब कोई और बोली- एगो दूसर पूछें?
सर्वेश के पास सुनने के अलावा विकल्प ही क्या था। उसने दूसरी पहेली पूछा-
मरदा डाले एकबार
मेहररुआ डाले बार-बार।
बताइए का है?
सर्वेश ने भौंहें सिकोडीं। तबतक तीसरी पूछी-
हई बताइए
धीरे-धीरे हिलाए
त हऊओ न आए
जोर से हिलाए
त बडा मजा आए। का है?
तब एक बूढी माता ने सबको डाँटा और सर्वेश की बाँह पकडे कोहबर में चली गयी। किसी ने दूल्हे को चिकोटी काटा तो किसी ने खोद दिया तो कोई गाली देने लगी आदि आदि। पर वह बोला कुछ नहीं।
सुबह बारात विदा हुई। शाम के दुश्मन सबेरे रिश्तेदार बन गये। एकदूसरे से परिचय लिया, गले मिले और उपहार, पाथेय दहेजादि के साथ सभी चल पडे।
आज मिलन की रात है। पर सर्वेश रोना चाहता है। मानिनी ने तो कहा था कि यदि हमारा प्यार सच्चा है तो हम जरुर मिलेंगे। तो क्या हमारा प्रेम झूठा था? या हमदोनों में से कोई साहसी नहीं था। क्या करुँ? जान दे दूँ? फिर माँ? और इस लडकी का क्या होगा? कि जैसे शिवजी ने सती का त्याग कर दिया वैसे ही "एहि तन भेंट सती अब नाहीं" मन से त्याग दूँ? पर इस कन्या का क्या दोष? हे आलोक बाबा कुछ करिये?
तभी एक बच्चे Nityanand ने उसको सूचना दी कि माँ बुला रही हैं जाइए घर में। वह घर की ओर लपका। किसी भौजाई से उसने पूछा कि माँ कहाँ हैं उन्होंने दुलहन के कमरे की ओर इशारा किया और जैसे ही वह उसमें घुसा भाभी ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया।
दुलहन के सामने सर्वेश ऐसे बैठा रहा जैसे थककर हारा शिकार शिकारी के सामने अपने आप बैठ जाता है। दुलहन ने सर्वेश को घूँघट में से ही देख लिया। उसका दिल जोर से धडका। कुछ देर में उसने खुद को सम्हाला। फिर वह उठी। टेबल के पास पहुँची, घूँघट में ही पानी पी और सर्वेश से जरा ज्यादा ही सट के बैठ गयी। सर्वेश को कैलास गौतम याद आ गये कि
पप्पू ओ के का छेडिहें
ऊ खुद छेडेले पप्पू के
जइसे फेरे पान पनहेरिन
ऊ फेरेले पप्पू के।।
सर्वेश सरकना चाहा तो उसने एक हाथ से पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपना घूँघट हटा दिया। सर्वेश चीख पडा- आआआआआआ...............प!
फिर दोनों बहुत रोए।
जब स्थिर हुए दोनों तब सर्वेश ने पूछा- आपका नाम क्या है?
उसने सर्वेश की बाँह मरोडी और हुँमच के एक जोर का मुक्का मारा- नाको।
सर्वेश अपनी नाक में अंगुली डाल लिया- बताइए न आपका नाम क्या है?
उसने कहा- यशोधरा। पर आज तुम मुझे अपना नाम दो। जो नाम दोगे वही रख लूंगी।
सर्वेश ने कहा- .........................पुनीता

।। इति ।।
नमस्कार!

आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
Next Story
Share it