गाँव की कहानियाँ यार की शर्त
BY Suryakant Pathak18 Jun 2017 11:43 AM GMT

X
Suryakant Pathak18 Jun 2017 11:43 AM GMT
बात तब की है जब गाँव में 'जहाँ सोच वहाँ शौचालय' की अवधारणा का विकास नहीं हुआ था तथा सच्चा मित्र उन्हें माना जाता था जो एक साथ घंटों शौच हुआ करते थे।
एक साथ मयदान (बलिया में शौच होने को यही कहा जाता है, दंतकथा यह है कि रावण का ससुर मयदानव का यही निवास स्थान था और बलिया में यह प्रथा है कि हम अपने शत्रुओं के नाम से शौचालय चलाते हैं जैसे पाकिस्तान भी) तो मयदान होने वालों की मित्रता गाँव में पक्की मानी जाती है।
ऐसे ही दो मित्र थे जो केवल सोने के लिए ही अलग थे, नहीं तो एक ही साथ खाना पीना, घूमना फिरना, यहाँ तक फेल पास होने से लेकर बिमार तक एक साथ पड़ते थे।
तारीफ़ यह कि दोनों दोस्तों की संगिनी भी एक ही थी, मोटर साइकिल- बुलेट। जो थी तो एक की लेकिन चलाता दूसरा था। दोनों खाना-पीना तक एक ही दुकान पर करते थे।
मतलब यह कि दोनों की दोस्ती एकदूसरे के विरुद्ध अंधी थी, बहरी थी।
दोस्ती इतनी पक्की कि दोनों के लिए निमंत्रण पत्र तक एक ही आता था, जहाँ से दोनों के लिए दो निमंत्रण पत्र आते थे वहाँ ये दोनों जाते ही नहीं थे क्योंकि ऐसा नेवता उनकी दोस्ती के लिए कलंक था।पता वही चाय की दुकान थी जहाँ दोनों एकसाथ अपना समय बिताया करते थे।
एकबार किसी बात को लेकर इन दोनों मित्रों में इतना भयंकर विवाद हुआ कि बोलचाल तक बंद हो गयी और शर्त यह लगी कि
"जो एकदूसरे से पहले बोलेगा सिद्ध होगा कि वही गलती पर था।"
पर जमाने को यह बात पता न चले इसलिये ये दोनों दिखावे के लिए ही सही अपना दैनिक क्रियाकलाप पहले जैसा ही बनाए रखे थे।
पर चाय वाला मोदीजी का चाचा था। वह भाँप गया कि दोनों में कुछ-न-कुछ गड़बड़ जरूर है।
अत: अब इन दोनों मित्रों के मध्य संवाद का माध्यम यह चायवाला हो गया।
चायवाला दोनों मित्रों के बीच एक माइक जैसा था।
आज सुबह-सुबह दोनों उसकी दुकान पर पहुँचे। एक ने चायवाले से पूछा कि आज कहीं का निमंत्रण है क्या?
बदले में चायवाले ने कुछ कार्ड टेबल पर रख दिये। एक उन कार्डों को पढने लगा तो दूसरा उन्हें निर्विकार देखने लगा। एकाएक एक ने चायवाले से कहा कि जाड़े का दिन है पहले फलाने के यहाँ फिर ढेमाके के यहाँ उसके बाद तेमाके के यहाँ चला जाएगा फिर अंत मे जमाके के यहाँ भोजन होगा।
और बोल देना कि ठीक 4बजे टाइम से निकलना है नहीं तो बेमतलब का लेट हो जाएगा।
रोज की तरह एक ने चाय वाले को पैसा दिया। चायवाला पैसा बक्से में डाला और अन्य ग्राहकों में मशगूल हो गया। दूसरे ने बुलेट की चाभी टेबल पर रखा और बाजार में चला गया शाम की तैयारी के लिए।
ठीक 4बजे दूसरा दुकान पर आ पहुँचा। एक भी कुछ देर में आ गया। चाभी टेबल पर रखा, दो ने उठाया गाड़ी स्टार्ट की और अपने गंतव्य के लिए दोनों निकल पड़े।
जमाके के यहाँ भोजन जमाकर जब दोनों मित्र घर की ओर निकले तो जल्दी घर पहुँचने के लिए दूसरे मित्र ने नहर का रास्ता पकड़ लिया।
कुछ दूर जाने के बाद किसानों नें सिंचाई के लिए नहर को थोड़ा-सा काट दिया था इसलिये दूसरे ने बुलेट को धीमा किया तो एक इतनी सफाई से उतरा कि दूसरे को पता ही नहीं चला। उधर दूसरा कटान पार कर गाड़ी लेकर चलता बना और सीधे आ के दुकान पर रुका। गाड़ी पर से पीछे से उतरने की कोई हलचल न पाकर बुलेट को एकबार कस के झाड़ा फिर भी कोई हलचल न पाकर जोर से बोला-
उतर साला मैं ही हारा.....
इतना कहके पीछे देखा और एक को न देखकर उसका कलेजा सन्न रह गया।
गाड़ी मोड़कर फिर नहर की राह पकड़ा।
उधर एक हनुमान चलीसा पढते
भूत पिसाच निकट.....
भूत पिसाच निकट.....
नहीं आवे..............
हनुमान.............
डरते, कुढते, गरियाते, गोहराते चला आ रहा था।
दूसरा एक को देखते ही गरमाया
- उतर गये थे तो मुंह में छेद नहीं था?
- नहीं था।
- चल बैठ।
- नहीं।
- क्यों?
- ससुर मारे डर के मयदान लग गया है।
.- मुझे भी।
दोनों नें अपनी पैंट उतारी बुलेट पर रखा और नहर के किनारे बैठ गये।
एक किसान बगल से गुजरा।
ये दोनों बड़े कब होंगे.....???
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश
Next Story