"बैना/बाएन"
BY Suryakant Pathak19 Jun 2017 7:56 AM GMT

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Suryakant Pathak19 Jun 2017 7:56 AM GMT
"ऐ भौजी चल! माई बोलवल सिह। बैना बाटे के बा" छांगुर के छोट लईका भोलवा, भुटेली बो से कहता।
ओकरा बड़का भौजी किहाँ से तीज आयिल बा।
जबाब में भुटेली बो मुँह बना देतारी। भुटेली बो के को लगे आजु तनिको सवास नईखे। आजु बाबू के माई किहाँ के बैना बाटे के बा अउरी उनकर बैना छोड़ के उ भला छांगुर के बैना बटिहें। बाबू के माई के सामने छांगुर के हैसियत मने राजा भोज के सामने गंगू तेली।
गांव के ही ना ही जवार के बड़का ह बाबू के माई के घर। छांगुर किहाँ के बैना, खलिहा उनका टोला में बटाई जबकि बाबू के माई घर के बैना सात आठ गांव में। अउरी उनका घर के बैना बटला के मतलब आज ढेर अनाज बदला में मिली। उ सवास ना भईला के जबाब भोलवा के दे देतारी।
बाबू के माई के बड़का लईका के अभी तीन महीना पहिले शादी भईल रहे अउरी अब उनकरा मेहरारू के तीज आयिल बा। तीज भी अयीसन के पूरा ज्वार में थेयि थेयि बोलता। सगरो जवार में शोर बा, अयीसन तीज केहू के ना आयिल रहल ह। पूरा २१ भार आयिल रहल ह। कवन अयीसन मिठाई बा जवन ना आयिल बा। खजुली, खाजा, लड्डू, गाजा, टिकरी, कसार। उहो गिनावै खातिर ना। झपोली भर भर के। मने ढक्कन से बाहर मिठाई झाकत रहे।
अब भुटेली बो के लगे दू तीन दिन तनिको स्वास न रही। आठ गांव में बैना बाटे के बा।
भुटेली बो घर के जरूरी काम निपटा के बैना खातिर चल दे तारी।
भुटेली बो के बाबू के माई के घर में घुसत दीपक भी देखतारे। पास ही उनकर बड़ बहिन अंजू भी बाड़ी।
भुटेली बो के देख के जवन ख़ुशी दीपक में मिलल बा ओके लिख के नईखे बतावल जा सकत।
"हउ देख दिदिया, भुटेली भाई बो बैना बाटे खातिर आईल बाड़ी। अब अपनो किहाँ मिठाई आई।" दीपक अंजू से कहतारे। ख़ुशी अंजू के चेहरा पर भी बा।
दुनू जाना के बीच 2 साल के अंतर बा। दीपक ६ साल के बाड़े अउरी अंजू ८ साल के। मने अभी भी दुनू जाना के ऊपर बालपन हावी बा।
"हां। हम त बस लड्डू खाएब" अंजू कहतारी। दुनू भाई बहिन मिठाई के कल्पना क के आनंदित बा लोग।
कुछ दूर ही लोग के माई खड़ा बाड़ी। इ बात सुनके उनके भी मन में संतोष बा। चल आजु कम से कम हमार लईका ना ललचिह सं।
काल्ह से लईका हहर तार सं मिठाई देख के।
बात इ बा कि तीज काल्ह के ही आयिल बा अउरी उनकर बड़ देयादिन जेकरा से बाबू के माई के भर ठेहुन चलेला उका लगे अपना सखियौरा में बाबू के माई काल्हिये मिठाई भेज देले रहली अउरी काल्ह से उ लोग, ऐ लोग के देखा देखा के खाता।
पट्टीदार से बढ़के हित अउरी पट्टीदार से बढ़के दुश्मन केहु ना होला। जब राई रही त पट्टिटार अपना पट्टीदार खातिर खून बहावे के तैयार रहेला अउरी जब दुश्मनी रहेला त फिर पट्टीदार के भूखे मरला पर ओकरा स्वर्ग के सुख जईसन आंनद आवेला।
दीपक के बाबूजी दू भाई बाड़े अउरी उनका बड़का बाबूजी के घर से ओ लोग के झगड़ा बा। घर एके में बा अउरी नहईला से लेके खईला तक हर चीज दुनू परिवार के एक दूसरा के सामने ही होला काहे कि पुरान खपड़ा के घर बा अउरी एके में बा।
वइसे त झगड़ा बहुत दिन से चलता पर करीब एक महीना पहिले दीपक के माई के उनका बड़की माई से बरियार झगड़ा हो गईल।
लेकिन झगड़ा खाली उनसे ही ना भईल बल्कि बाबू के माई से भी झगड़ा हो गईल। जब दुनू जानी में झगड़ा होत रहे त बाबू के माई भी आ गईली अउरी उ अपना सहेली के छोड़ के दीपक के माई के पक्ष लेती एकर त सवाले ना रहे। बाबू के माई के पक्षपात जब दीपक के माई से ना बर्दाश्त भईल त झगड़ा स्वाभविक रहे अउरी फेरु झगड़ा हो गईल। ओईदिन के बाद से दुनू लोग में बातचीत बंद बा।
बात भले बंद बा पर तबो दीपक में माई के मालूम बा कि बाबू के माई बैना जरूर भेजिह। अमीरी गरीबी के अंतर भईला के वावजूद भी उ उनकर सगा पट्टीदार हई। ओ लोग के खानदान के बड़का। झगड़ा अउरी रिस रिसायिन अपना जगह पर बा पर इ कुल त रीती रिवाज बा। बैना त ओकरा किहाँ भी जाला जेकरा किहाँ से खाईल पियल ना रहेला। फेरु उ त उनकर कुल खानदान हई।
गांव में सब केहू के घर के नाम बता देले बाड़ी बाबू के माई पर दीपक घर के नाम नईखी बतवले। भुटेली बो एहि चिंता में बाड़ी अउरी जब उनसे नईखे बर्दाश्त होत त उ बाबू के माई से पूछ देतारी - दीपक बाबू किहाँ के त नामे रउवा ना बतवनी"
"उनका किहाँ बैना नईखे देबे के।" बाबू के माई बिहस के कहतारी।
आजु बाबू के माई के घमंड के कवनो धरान नईखे। ओईदिन के झगड़ा के बदला चुकावे के उनका लगे भरपूर मौका बा। केतना निमन लागी जब सगरी जवार मिठाई खायी पर दीपक के माई अउरी उनकर परिवार देख के हहरि अउरी इहे सबसे बड़ सजाई बा उनकर बड़ बडुआ के जबाब देबे के गलती के। सबके आपन आपन जबाब देबे के तरीका होला। एगो गरीब के अपना अमीरी के अहसास दियावल भी जबाब ह जवन बड़ा ढेर घाही करेला।
भुटेली बो उमिर, बुध्दि अउरी हर चीज में बाबू के माई से काम बाड़ी पर तबो उनका एतना समझ बा कि बैना लिहल दिहल ना छोड़े के।
लेकिन बड़ बडुआ के बात बा। उ उनकर बात के नईखी काट सकत। उ बैना के दउरी मूडी पर उठा के चल देतारी।
भुटेली भाई बो के अपना घर की ओर आवत देख दीपक अउरी अंजू ख़ुशी के धरान नईखे। दुनू जाना के मुँह में पानी आ गईल बा।
भुटेली बो उनका दुआर पर आगे उनका बड़की माई के हिस्सा वाला असोरा में बढ़ जातारी।
"ओने काहें गईलू ह हो भौजी। पहिले घर त हमार बा। पहिले हमरा किहाँ द।" दीपक उलाहना से कहतारे।
भुटेली बो के जबाब नईखे सूझत। दीपक के माई के अब अंदेशा होता कि शायद हमरा इहाँ बैना नईखे आयिल। भुटेली बो इशारा में कुछ कहतारी अउरी दीपक के माई सब समझ जातारी। बरसो से चलत आ रहल परम्परा के आजु बाबू के माई तूड़ देले बाड़ी। बैना त दुश्मन के घरे भी भेजल जाला पर उ त अपने खानदान के लोग के छाट देले बाड़ी।
भुटेली बो बैना देके चल जातारी अउरी दीपक के बड़की माई के घर के लोग मिठाई खाये लागता।
भुटेली बो के जाते दीपक के बचल खुचल उम्मेद खत्म हो जाता अउरी ढ़िमिलिया मार के रोवे लागतार। ६ साल के लईका के बुद्धि ही कहाँ कि उ दुनियादारी समझे। मन थोर अंजू के भी बा पर उ रोवत नईखी। आजु अपना गरीबी पर दीपक में माई मने मन कुहकतारी।
लेकिन उ दीपक खान रो नईखी सकत। उनके मालूम बा इहो दिन बीत जाई।
और साचो एक दिन उ दीन बीत जाता। आजु ओ बात के बीस बारिस बीत गईल बा। दीपक गबरू जवान हो गईल बाडे। इंजीनियर बन गईल बाड़े। पक्का घर बन गईल बा अउरी सबसे बड़ कि अब उनका माई अउरी बड़का माई के खूब राई बा। दुनू आदमी के एके में घर बनल बा अउरी दुनू घर के मालिकाई बड़की माई के लगे बा।
दीपक के तीन महीना पहिले ही शादी भईल बा अउरी अब पहिला तीज आयिल बा।
भुटेली बो के लगे आजुवो सवास नईखे। आजू दीपक के बैना बाटे जाए के बा।
लेकिन ऐ परिवर्तन के बीच जवन सबसे बड़का परिवर्तन भईल बा उ बा उनका बड़की माई के बाबू के माई से घनघोर दुश्मनी। अब दुनू लोग में बात चित आवाजाही सब बंद बा। कुछ पुरान जमीं के मामला उपटल बा अउरी तबसे दुश्मनी चलता दुनू परिवार में।
बाबू के माई के दुनू लईका लोग अपना परिवार के साथे बाहर रहेला अउरी अब माई के समय के हाल पर छोड़ देले बा। गांव के रही के उ अपना मऊत के राह देखतारी।
भुटेली बो के दीपक के घरे जात देख उ समझ गईल बाड़ी कि उ बैना बाटे जा तारी। कबो जेकरा लगे धन धान्य के कवनो कमी ना रहे आजु बेटा कुल के उपेक्षा से दू बेरा के रोटी खातिर मोहताज बा। कहल जाला कि बुढ़ापा दूसर लइकाई में बदल जाला। गांव के कई आदमी के मुँह से उन सुन चुकल बाड़ी के बड़ा ढेर मिठाई आयिल बा दीपक बो के तीज में अउरी मिठाई के नाम पर उनका मुँह में पानी आ जाता। फेरु उनके याद पड़ता कि उनका यहां से बैना के त छुट्टा छुट्टी हो गईल बा अउरी उनकर मन थोर हो जाता।
दीपक के बड़की माई भुटेली बो के सबके घर के नाम बता देले बाड़ी जेकरा घरे बैना बाटे के बा।
बाबू के माई के नाम नईखे ओइमे। भुटेली बो सब जानतारी पर तबो पूछ देतारी -बाबू के माई किहाँ नईखे देबे के ?"
"नामो मत लिह ओ मुदईन के" दीपक के बड़की माई रिसिया के कहतारी "बैना नाही अंगार भेजेब उनका किहाँ। उ हमनी के हिस्सा लूटस अउरी हम उनके मिठाई खियाई"
बानू अचरज के बात। पर इहे गांव के विशेषता ह। शहरन में रिश्ता एगो सीमा में रहेला। गांव में रिश्ता सगरो सीमा तूर देला। बात चाहे दोस्ती के होखो या दुश्मनी के।
तबहिए दीपक में माई डलिया में मिठाई लेहले आवतारी।
"तू जा गांव में बैना बाट द ठकुराइन। बाबू के माई के बैना हम लेके जाएब।"
"बाबू के माई किहाँ बैना जाई?" दीपक के बड़की माई चिहा के पूछतारी।
"जी दीदी। उहाँ के हमनी के बड़का हईं। बैना त मुदई किहाँ भी भेजे के परम्परा बा। आजु बरसो पहिले उहाँ के गलती कईले रहनी बैना देबे के परम्परा तूरे के। आजु हमहू उहे गलती करी त फेरु हमरा अउरी उनका में अंतर का बा"
कहिके उ डलिया लेहले बाबू के माई के घर की और बाढ़ जातारी अउरी भुटेली बो बैना के दौरि लेहले गांव में।
दीपक के माई बाबू के माई के सामने बाड़ी। अपना हाथ से उ उनके उनकर मनपसंद खाजा खिया रहल बाड़ी अउरी बदला में बाबू के माई के मुह से त कुछु नईखे नईखे निकलत पर उनका आँखि के लोर इ साफ़ साफ़ कह रहल बा कि उनका ओईदिन के गलती के अफ़सोस बा।
धनंजय तिवारी
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