"स्वार्थ "
BY Suryakant Pathak21 Jun 2017 8:46 AM GMT

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Suryakant Pathak21 Jun 2017 8:46 AM GMT
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिवार,समाज,रिश्ते-नाते एवं मित्रता सिर्फ स्वार्थ पे ही टिका है ।रामचरितमानस में भी तुलसीदास ने लिखा है,-
"स्वारथ लाय करे सब प्रीति ,
सुर नर मुनि सबके यह रीति,"।
मैंने जो अपना उपरोक्त विचार प्रकट किया यह सभी के लिए नहीं है कुछ लोग अपवाद भी हो सकते हैं ।
गुरू चाणक्य को भी स्वार्थी कहा गया है ।उन्होंने नंद वंश के अंतिम शासक घननंद के द्वारा अपमानित होनें के पश्चात उस वंश का समूल विनाश करने का प्रतिज्ञा लिया और चंद्रगुप्त जैसे साधारण व्यक्ति को अर्थशास्त्र का ज्ञान देकर घनानंद को न केवल पराजित किया बल्कि उसके पश्चात मौर्य वंश का स्थापना भी करवाया ।
मुझे तो लगता है कि न केवल मानव बल्कि जानवरों में भी स्वार्थ की प्रवृत्ति कुट-कुट कर भरा होता है ।जैसे ही गाय,भैंस, कुत्ता ,घोड़ा एवं अन्य पालतू जानवर अपने पुराने मालिक का घर छोड़कर नये मालिक के पास जाते हैं तबसे उनके लिए उनका सर्वे-सर्वा नया मालिक ही हो जाता है ।
स्वार्थी लोगों की भी बहुत प्रकार की कैटेगरी होती है । कुछ लोग वर्तमान में लाभ देखकर अगले व्यक्ति से निकटता स्थापित करते हैं कुछ लोग भविष्य में ।कुछ तो वैसे होते हैं जिन पर सोल्जर फिल्म का बाॅबी देवल का डायलॉग फिट बैठता है -,"काम खतम तो आदमी खतम"।
नीरज मिश्रा
बलिया (यू पी)।
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